अश्क़ों की बूंदें !
क्या देखते हो तुम
मेरी इन लाल हुई आँखों में
क्या देखते हो तुम
मेरे गालों पर सुख चुकी
मेरी इन अश्कों की बूंदों में
मेरा ये हाल तुम्हारी
कमजोरियों की ही तो देन है
मै बहा ही तो देती हूँ
तुम्हारे दिए सारे दर्द
को अपनी इन आँखों से
एक या दो बून्द छोड़कर
अपनी इन आँखों में
इस उम्मीद में की वो
एक और दो बची बूंदें
मिलकर आपस में बना
लेंगी एक दरिया फिर से
इन आँखों में
ताकि फिर से बहा सके
वो तुम्हारी कमजोरी को
अपनी इन आँखों से
क्या देखते हो तुम
मेरी इन लाल हुई
आँखों में।
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