Monday, 7 October 2019

फिर क्यों !


दर्द के साथ पला बड़ा हुआ हूँ 
फिर क्यों ;
इनसे क्यों जुदा होना चाहता हूँ !
साहस और हौसले से लबरेज़ हूँ
फिर क्यों ;
परेशानियों से निज़ाद चाहता हूँ !
इस नफ़रत भरी दुनिया में प्रेम हूँ ,
फिर क्यों ;
मोहब्बत से जुदा होने से डरता हूँ !
सच्चाई को अपने दिल में पनाह देता हूँ 
फिर क्यों ;
दुनिया की कड़वी सच्चाईयों से डरता हूँ !
आज का ये वक्त यूँ ही बिता देता हूँ 
फिर क्यों ;
कल आने वाले वक़्त से मैं डरता हूँ !
प्रेम हूँ और अपनी प्रीत को साथ रखता हूँ 
फिर क्यों ;
मैं इन रातों की तन्हाईयों से डरता हूँ !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !