सुरमयी एहसास !
तू ना देख यूँ फिर मुझे
घूरकर अपनी निगाहों से ;
कि मेरा इश्क़ कंही अपनी
हद्द से गुजर ना जाए ;
मेरे ज़ज़्बात कंही छलक
कर बाहर ना आ जाये ;
कि तू रहने दे भ्रम ये ज़िंदा
कि तू मेरी रूह-ए-गहराई में
दूर तलक है शामिल
कि रहने दे यु ही मुझे खोया
हुआ तू की तेरी पलकों के
सायों को छूते ही मुझे
ये मेरे सुरमयी एहसास
कंही अब बिखर ना जाए
की अब और ना यु दूर
रहकर मुझे तू तड़पा कि
ये मेरा इश्क़ कंही अब
सारी हद्दों से गुजर ना जाये
तू ना देख यूँ फिर मुझे
घूरकर अपनी निगाहों से !
No comments:
Post a Comment