Tuesday, 22 October 2019

मोहब्बत लौट जाती है !


मोहब्बत  लौट जाती !

वो आकर मेरे दर पर
मुझे आवाज़ तो देती है , 
मगर फिर लौट जाती है ;
फिर उसकी याद आती है 
मगर आकर लौट जाती है ;
मेरी आँखों से आँखे मिलते ही 
उसकी ऑंखें नम हो जाती है , 
फिर वो मुझसे अपनी नज़रों 
को चुराती है और लौट जाती है ; 
ज़िन्दगी की ये भाग दौड़ मेरे 
बने बनाये काम बिगाड़ती है ,
फिर वो आकर मेरे काम बनाती है 
और चुपचाप लौट जाती है ;
मुझे चिढ़ाने के खातिर वो 
उस दूर बैठे चाँद के साथ 
अठखेलियाँ तो करती है , 
फिर चांदनी मेरा दर्द बढाती है 
और फिर आकर लौट जाती है ; 
ये मोहब्बत भी कितनी अजीब है 
मेरी शाम के चंद लम्हों को सजाती है , 
और फिर मुझे अकेला छोड़ लौट जाती है !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !