मोहब्बत लौट जाती !
वो आकर मेरे दर पर
मुझे आवाज़ तो देती है ,
मगर फिर लौट जाती है ;
फिर उसकी याद आती है
मगर आकर लौट जाती है ;
मेरी आँखों से आँखे मिलते ही
उसकी ऑंखें नम हो जाती है ,
फिर वो मुझसे अपनी नज़रों
को चुराती है और लौट जाती है ;
ज़िन्दगी की ये भाग दौड़ मेरे
बने बनाये काम बिगाड़ती है ,
फिर वो आकर मेरे काम बनाती है
और चुपचाप लौट जाती है ;
मुझे चिढ़ाने के खातिर वो
उस दूर बैठे चाँद के साथ
अठखेलियाँ तो करती है ,
फिर चांदनी मेरा दर्द बढाती है
और फिर आकर लौट जाती है ;
ये मोहब्बत भी कितनी अजीब है
मेरी शाम के चंद लम्हों को सजाती है ,
और फिर मुझे अकेला छोड़ लौट जाती है !
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