प्रेमिकाओं की आँखें !
प्रेमिकाओं की आँखें
अब अँधेरे में भी भय
नहीं खाती है !
ना ही सूरज की तपती
किरणों से वो अब
कुम्हलाती है ;
वो तो सूरज की किरणों
को अपनी कमर में
लपेट लेती है ;
और वो नहीं इंतज़ार
करती किसी और के
मार्गदर्शन का ;
वो तो बस अपनी चाल
चलती है देखती भी नहीं
कि उनकी चाल
सधी हुई भी है ;
या नहीं बस चारो पहर
के सांचे में गूंथती है
अपना तन और गढ़ती है ;
वो अपना और अपने प्रेम
भविष्य खुद के हांथो ;
प्रेमिकाओं की आँखें
अब अँधेरे में भी भय
नहीं खाती है !
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