Wednesday, 23 October 2019

प्रेमिकाओं की आँखें !


प्रेमिकाओं की आँखें !

प्रेमिकाओं की आँखें 
अब अँधेरे में भी भय 
नहीं खाती है !
ना ही सूरज की तपती 
किरणों से वो अब 
कुम्हलाती है ;
वो तो सूरज की किरणों 
को अपनी कमर में
लपेट लेती है ; 
और वो नहीं इंतज़ार 
करती किसी और के 
मार्गदर्शन का ;
वो तो बस अपनी चाल
चलती है देखती भी नहीं 
कि उनकी चाल 
सधी हुई भी है ; 
या नहीं बस चारो पहर 
के सांचे में गूंथती है 
अपना तन और गढ़ती है ; 
वो अपना और अपने प्रेम 
भविष्य खुद के हांथो ;
प्रेमिकाओं की आँखें 
अब अँधेरे में भी भय 
नहीं खाती है !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !