Thursday, 31 August 2017
Wednesday, 30 August 2017
Tuesday, 29 August 2017
डूब रहा हूँ... मैं
वो भूरी-भूरी लहरें...
तुम्हारी आँखों की...
खींच ले जाती थी मुझे...
गहराइयों में
भूरी ...भूरी ...
कोई रंग नहीं भूरे के सिवा
और मेरे पास नहीं था
प्रेम का अनुभव...
और न ही थी नाव कोई ...
अगर मैं तुम्हें प्रिय हूँ
तो लो थाम मेरा हाथ
क्योंकि मैं सर से पैर तक...
चाह ही चाह था
और उसी चाहत में
डूब रहा हूँ मैं... अब
पानी के नीचे सांस ले रहा हूँ मैं!
डूब रहा हूँ... मैं
Monday, 28 August 2017
Saturday, 26 August 2017
Friday, 25 August 2017
तुम हो मेरी सखी ?
तुम हो मेरी सखी ?
तो मेरी मदद करो
ताकि मैं रह सकू
तुम्हारे बगैर अब
और अगर हो मेरी प्रेमिका ?
तो भी करो मदद तुम मेरी
ताकि जो तुम्हारी लत
लगी है मुझे उससे निज़ाद मिले
अगर मैं जानता की प्रेम का
समुद्र इतना गहरा और खारा
ही होगा तो इसमें कूदने की
नहीं सोचता मैं और अगर मैं जानता
की इतना प्रेम करने के बाद भी
अंजाम यही होगा तो सोचता मैं
हज़ार बार इसे आरम्भ करने से पहले
सच में अगर
तुम हो मेरी सखी ?
तो मेरी मदद करो
ताकि मैं रह सकू
तुम्हारे बगैर अब
Thursday, 24 August 2017
Wednesday, 23 August 2017
तुम्हारी आँखें
वो सिर्फ
तुम्हारी आँखें
ही थी जिसने भेद
दिया था मेरी आत्मा
पर लगे उस बड़े से
दरवाज़े को जिस पर
लिखा था अंदर आना
सख्त मना है और
जब भेद ही दिया था तो
ये तुम्हारी जिम्मेदारी
बनती थी की मैं फिर
ना रहु अकेला तुम्हारे
अंदर आने के बाद
पर ऐसा किन्यु किया
तुमने की दरवाज़ा
खोला भी और अंदर भी आयी
पर मेरा अकेलापन दूर
ना कर पायी तुम ?
तुम्हारी आँखें
ही थी जिसने भेद
दिया था मेरी आत्मा
पर लगे उस बड़े से
दरवाज़े को जिस पर
लिखा था अंदर आना
सख्त मना है और
जब भेद ही दिया था तो
ये तुम्हारी जिम्मेदारी
बनती थी की मैं फिर
ना रहु अकेला तुम्हारे
अंदर आने के बाद
पर ऐसा किन्यु किया
तुमने की दरवाज़ा
खोला भी और अंदर भी आयी
पर मेरा अकेलापन दूर
ना कर पायी तुम ?
Tuesday, 22 August 2017
साँझ का सुहानापन
अब जब तुम नहीं हो
साथ मेरे तो साँझ का
सुहानापन भी कंहा महसूस
कर पाता हु अब मैं वो तो
तुम्हारी तरह उड़ जाती है
फुर्र से आकाश के पार
फिर रह जाते है केवल बादल
वैसे पहले भी तुम
कंहा होती थी साथ मेरे
बस यु ही कुछ पलो के लिए
आती थी फुर्सत में
मिलने मुझसे
अब मैं और बादल
दोनों बतियाते है
अपने अपने प्रेम
के बारे
साथ मेरे तो साँझ का
सुहानापन भी कंहा महसूस
कर पाता हु अब मैं वो तो
तुम्हारी तरह उड़ जाती है
फुर्र से आकाश के पार
फिर रह जाते है केवल बादल
वैसे पहले भी तुम
कंहा होती थी साथ मेरे
बस यु ही कुछ पलो के लिए
आती थी फुर्सत में
मिलने मुझसे
अब मैं और बादल
दोनों बतियाते है
अपने अपने प्रेम
के बारे
Monday, 21 August 2017
Saturday, 19 August 2017
तुम्हारी ऊष्मा को मैं महसूसता हु
जैसे खिड़की के तरफ वाली
सीट को अक्सर छूती है सूरज की किरण
वैसे ही जब जब मैं होता हु अकेला
तब तुम्हारी तुम्हारी अनुपस्थिति में भी
मैं महसूसता हु तुम्हारी ऊष्मा को
उसी सिद्दत से जैसे तुम साथ होती थी
तब महसूसता था और अक्सर अँधेरी
रातों को तुम्हारे भीतर का कुछ
अब भी छूता है मुझे हलके से और
बहुत मनुहार करता है तुम्हारी
मज़बूरिओं को समझने के लिए
पर मैंने प्रेम की जितनी किताबें
पढ़ी है उसमें कभी नहीं पढ़ा
प्रेम को मज़बूर होते हुए इसलिए
मैं नहीं समझ पाया अब तक
तुम्हारी मज़बूरिओं को शायद
प्रेम जिन्दा रहे इसके लिए
सिर्फ स्मृति ही काफी नहीं होती ...
नाम लिखा मैंने अपनी सांसो पर
जिसको मैंने प्रेम
किया उसका नाम
लिखा मैंने अपनी सांसो पर
और लिखा अपने रक्त के
बूंदो पर भी किन्यु की
मैंने प्रेम किया था
पर साँस भी बनी है
हवाओं से और रक्त भी
बना है पानी से शायद
इसलिए पढ़ नहीं पायी वो
और सुन नहीं पायी वो
अपना नाम ठीक से
ठीक उसी तरह
जिस तरह हवाओं और
पानी पर लिखा नाम
दीखता नहीं किसी को
ये तो महसूसना पड़ता है
आत्मा से
किया उसका नाम
लिखा मैंने अपनी सांसो पर
और लिखा अपने रक्त के
बूंदो पर भी किन्यु की
मैंने प्रेम किया था
पर साँस भी बनी है
हवाओं से और रक्त भी
बना है पानी से शायद
इसलिए पढ़ नहीं पायी वो
और सुन नहीं पायी वो
अपना नाम ठीक से
ठीक उसी तरह
जिस तरह हवाओं और
पानी पर लिखा नाम
दीखता नहीं किसी को
ये तो महसूसना पड़ता है
आत्मा से
Friday, 18 August 2017
नींद में "प्रेम"
किन्यु मुझे ऐसा
लगता है जैसेतुम्हे मुझसे हुआ है
"प्रेम" नींद में
उठो तो आँखों में आँसू
इतना नहीं सोचा था मैंने
की किसी को इतनी सिद्दत से
चाहूंगा और कोई मुझे यु
नींदो में चाहेगी
जिसके पास न होगा समय
एक चुंबन का भी
ना ही देखने का की कैसा हु मैं
उसके बगैर अकेला
अब मैं काटता हु रातें
जागकर और जागते हुए
देखता हु स्वप्न उसके
Thursday, 17 August 2017
सब झूठा सा प्रतीत होने लगा है
प्रेम जो तुम देती हो
मुझे वो प्रेम तुम्हारा है
या है वो जो मैं देता हु तुम्हे
आज तक मुझे समझ नहीं आया
किन्यु की अगर मेरा दिया
तुम मुझे लौटती हो तो
मेरे ही प्रेम में कोई कमी है
और अगर तुम मुझे अपना
प्रेम देती हो तो फिर प्रेम के
बारे जितना कुछ आज तक
लिखा पढ़ा मैंने सब झूठा सा
प्रतीत होने लगा है की
स्त्री प्रेम पुरुष प्रेम से
श्रेस्ठ होता है जैसे
स्त्री हर मायने में पुरुष
से श्रेठ होती है
मुझे वो प्रेम तुम्हारा है
या है वो जो मैं देता हु तुम्हे
आज तक मुझे समझ नहीं आया
किन्यु की अगर मेरा दिया
तुम मुझे लौटती हो तो
मेरे ही प्रेम में कोई कमी है
और अगर तुम मुझे अपना
प्रेम देती हो तो फिर प्रेम के
बारे जितना कुछ आज तक
लिखा पढ़ा मैंने सब झूठा सा
प्रतीत होने लगा है की
स्त्री प्रेम पुरुष प्रेम से
श्रेस्ठ होता है जैसे
स्त्री हर मायने में पुरुष
से श्रेठ होती है
Tuesday, 15 August 2017
मेरे हिस्से का प्रेम
प्रेम तो किया
मैंने तुमसे
आँख और दिमाग
दोनों बंद कर
कई बार इन्द्रियां
सक्रिय होकर
जताती रही विरोध
परन्तु मैंने पढ़ा था
प्रेम में कभी तार्किक
नहीं हुआ जाता और
मैं कभी हुआ भी नहीं
परन्तु उसने कभी
कोई बात मानी ही नहीं
जब तक की उसे
आज़माया नहीं उसने
शायद तार्किक है वो
और प्रेम में तर्क की
कोई जगह नहीं
इसलिए मैंने मेरे
हिस्से का प्रेम किया
उसने बस तर्क किया
Monday, 14 August 2017
तुम्हारा अतीत
मैं चाहता था
मेरे आने के बाद
तुम्हारा अतीत
कंही खो जाए
चाहता था तुम
उसे छोड़ दो
किसी बेगाने रिश्ते
की तरह और
एक बार फिर से
तुम जिओ इस
नए रिश्ते को
मैं चाहता था
जानना तुम्हे
और तुम्हारे प्रेम को
जीवित था मैं
बस इस आश में
और चाहता था
तुम्हारा प्रेम पाना
पर शायद तुम्हारे
मन में कुछ और ही था
और सभी जानते है
एक तरफ़ा इश्क़ और
एक तरफ़ा ख्वाहिशें
अक्सर दम तोड़
दिया करती है
मेरे आने के बाद
तुम्हारा अतीत
कंही खो जाए
चाहता था तुम
उसे छोड़ दो
किसी बेगाने रिश्ते
की तरह और
एक बार फिर से
तुम जिओ इस
नए रिश्ते को
मैं चाहता था
जानना तुम्हे
और तुम्हारे प्रेम को
जीवित था मैं
बस इस आश में
और चाहता था
तुम्हारा प्रेम पाना
पर शायद तुम्हारे
मन में कुछ और ही था
और सभी जानते है
एक तरफ़ा इश्क़ और
एक तरफ़ा ख्वाहिशें
अक्सर दम तोड़
दिया करती है
Saturday, 12 August 2017
असभ्य हो जाऊ
क्या मिला सभ्य होकर
प्रेमियों को
कई बार ये सोचता हु
फिर से जंगली हो जांऊ
और महसूस करू एक बार
फिर से पीपल की छांव
ये सभ्यता का चोला उतारकर
बरगद सी लम्बी जड़ फ़ैलाऊ
और लपेट लाऊ उसमे तुम्हे
और फुस की एक झोपडी
बना उसके एक कोने में
उगाऊं तुलसी का पौधा
और रखु उसके किनारो पर
एक दीपक जिसको आकर
तुम जलाओ सुबह शाम
और तुम्हे साथ लेकर
लौटू इन हरी हरी घांसो पर
और एक बार फिर से
असभ्य हो जाऊ
प्रेमियों को
कई बार ये सोचता हु
फिर से जंगली हो जांऊ
और महसूस करू एक बार
फिर से पीपल की छांव
ये सभ्यता का चोला उतारकर
बरगद सी लम्बी जड़ फ़ैलाऊ
और लपेट लाऊ उसमे तुम्हे
और फुस की एक झोपडी
बना उसके एक कोने में
उगाऊं तुलसी का पौधा
और रखु उसके किनारो पर
एक दीपक जिसको आकर
तुम जलाओ सुबह शाम
और तुम्हे साथ लेकर
लौटू इन हरी हरी घांसो पर
और एक बार फिर से
असभ्य हो जाऊ
प्रेम कविता
कुछ ही दिनों में फिर
दिन छोटे और रातें
लम्बी होने लगेंगी और
फिर यादें तुम्हारी मुझे
इन लम्बी रातों में अकेले
जागने को मज़बूर करेंगी
और फिर मैं गुनगुनाऊँगा
तुम पर लिखी अपनी प्रेम कविता
और वो बनेंगे मेरे गीत
जिन्हे मैं माचिश की तीली
की तरह इस्तेमाल करूँगा
अँधेरी रातों में जागने के लिए
यु लम्बी रातें अकेले
जागी नहीं जाती
पता है ना तुम्हे
दिन छोटे और रातें
लम्बी होने लगेंगी और
फिर यादें तुम्हारी मुझे
इन लम्बी रातों में अकेले
जागने को मज़बूर करेंगी
और फिर मैं गुनगुनाऊँगा
तुम पर लिखी अपनी प्रेम कविता
और वो बनेंगे मेरे गीत
जिन्हे मैं माचिश की तीली
की तरह इस्तेमाल करूँगा
अँधेरी रातों में जागने के लिए
यु लम्बी रातें अकेले
जागी नहीं जाती
पता है ना तुम्हे
Friday, 11 August 2017
Thursday, 10 August 2017
आख़री प्रतीक्षा
मैं अपनी सभी
लिखी प्रेम कविता को
बचाना चाहता हूँ
वैसे ही जैसे बचाता आया हूँ
अपने प्रेम को
इस जीवन के हर
कठिन परिस्थितिओं में भी
लेकिन अब मैं अपने आप को
बचाते-बचाते
थक गया हूँ
मेरी ये आख़री प्रतीक्षा
मेरे प्रेम को आखिरी भेंट है
इसे स्वीकार करो
और आखरी बार
मुझसे आकर मिलो
उस घर में जंहा
कोने कोने में बचा
कर रखा तुम्हारा
एहसास
लिखी प्रेम कविता को
बचाना चाहता हूँ
वैसे ही जैसे बचाता आया हूँ
अपने प्रेम को
इस जीवन के हर
कठिन परिस्थितिओं में भी
लेकिन अब मैं अपने आप को
बचाते-बचाते
थक गया हूँ
मेरी ये आख़री प्रतीक्षा
मेरे प्रेम को आखिरी भेंट है
इसे स्वीकार करो
और आखरी बार
मुझसे आकर मिलो
उस घर में जंहा
कोने कोने में बचा
कर रखा तुम्हारा
एहसास
अनमोल है तुम्हारे उपहार
कई वर्षो बाद
महसूस हुआ मुझे
की तुमने जो कुछ
भी अब तक मुझे दिया
वो सब मेरे लिए उपहार
ही तो है तुम्हारे प्रेम का
मेरे प्रेम के बदले
वो जो अकेलेपन से
भरा संदूक दिया तुमने
वो भी तो उनहार ही है
मेरे लिए और वो जो
दर्पण भीगा हुआ दिया है
उसमें सदैव मेरी आँखें
भरी हुई नज़र आती है
अनमोल है तुम्हारे दिए
उपहार मेरे लिए
महसूस हुआ मुझे
की तुमने जो कुछ
भी अब तक मुझे दिया
वो सब मेरे लिए उपहार
ही तो है तुम्हारे प्रेम का
मेरे प्रेम के बदले
वो जो अकेलेपन से
भरा संदूक दिया तुमने
वो भी तो उनहार ही है
मेरे लिए और वो जो
दर्पण भीगा हुआ दिया है
उसमें सदैव मेरी आँखें
भरी हुई नज़र आती है
अनमोल है तुम्हारे दिए
उपहार मेरे लिए
Wednesday, 9 August 2017
Tuesday, 8 August 2017
कररर कररर की आवाज़ें
बरसात में
और तेज़ गर्मियों में
अक्सर दरवाज़े और
खिड़कियां स्वतः ही
छोटे और बड़े हो जाते है
देखा भी होगा और
सुना भी होगा सबने
मौसमो की मार सिर्फ
लकड़ी के इन दरवाज़ों
पर ही नहीं होती कई
बार रिस्तो में भी ऐसा
होता है और कान लगाकर
सुनो तो आवाज़ें उनमे से
भी आती है कररर कररर की
बस जरुरत होती है दरवाज़ों
और खिड़कियों की तरह
उनमे भी समय समय पर
तेल डालने की
Monday, 7 August 2017
अभी कंहा हो तुम?
मैंने सोचा
कैसे तुम्हे
ये बतलाऊ की
तुमसे कितना
प्रेम करता हु मैं
वो सुनने के लिए
तुम्हारे पास न
वक़्त था तब ना
वक़्त है अब
ऐसे में सोचा मैंने
किन्यु ना शुरू
करू अभिव्यक्त करना
प्रेम मेरा जिसको
पढ़ कर तुम्हे ऐतबार हो
तबसे लिख रहा हु मैं
कविता पर सोचा नहीं था
की तुम वंही बस जाओगी
मेरी कविताओं में
अभी कंहा हो तुम?
मेरी कविता में ?
अब बहुत वर्ष हुए
तुम्हे वंहा रहते हुए
चलो अब मेरी होकर रहो
बची ज़िन्दगी के लिए
कैसे तुम्हे
ये बतलाऊ की
तुमसे कितना
प्रेम करता हु मैं
वो सुनने के लिए
तुम्हारे पास न
वक़्त था तब ना
वक़्त है अब
ऐसे में सोचा मैंने
किन्यु ना शुरू
करू अभिव्यक्त करना
प्रेम मेरा जिसको
पढ़ कर तुम्हे ऐतबार हो
तबसे लिख रहा हु मैं
कविता पर सोचा नहीं था
की तुम वंही बस जाओगी
मेरी कविताओं में
अभी कंहा हो तुम?
मेरी कविता में ?
अब बहुत वर्ष हुए
तुम्हे वंहा रहते हुए
चलो अब मेरी होकर रहो
बची ज़िन्दगी के लिए
Saturday, 5 August 2017
तुम आसक्ति हो मेरी
इस मतलबी दुनिया
में तुम एकमात्र
आसक्ति हो मेरी
मुझे तो सांस लेने की भी
फुर्सत नहीं थी पहले
जबसे तुम मिली हो
खुशियां जंहा भी दिखती है
समेट लेता हूँ और चाहता हु
उन सबको तुम्हे सौंप देना
पर मेरे आने के बाद भी
फुर्सत तो तुम्हे भी नहीं मिली
अब तक ठीक से मुझे देखने की
फिर भी कनखियों से
देख कर मुझे प्राप्त
करना चाहती हो तुम
जाने कैसी तृप्ति...?
नफा और नुकसान
प्यार करना
आसान है पर
उसे निभाना
बहुत मुश्किल
जब खड़े होते है
" प्रश्न " उसी प्यार
पर तो अक्सर लोग
उस से होने वाले
फायदे और नुकसान
सोच कर कदम पीछे
खिंच लेते है
जबकि प्यार में
नफा और नुकसान
तो आप देख ही नहीं सकते
प्यार का अर्थ है
जब प्रश्न खड़े हो तो
सभी का जवाब उसी
दृढ़ता से दिया जाये
जिस दृढ़ता से प्यार को
हमे स्वीकार किया है
ना की फायदे और नुक्सान
आसान है पर
उसे निभाना
बहुत मुश्किल
जब खड़े होते है
" प्रश्न " उसी प्यार
पर तो अक्सर लोग
उस से होने वाले
फायदे और नुकसान
सोच कर कदम पीछे
खिंच लेते है
जबकि प्यार में
नफा और नुकसान
तो आप देख ही नहीं सकते
प्यार का अर्थ है
जब प्रश्न खड़े हो तो
सभी का जवाब उसी
दृढ़ता से दिया जाये
जिस दृढ़ता से प्यार को
हमे स्वीकार किया है
ना की फायदे और नुक्सान
मैं अब भी इंतज़ार में हु
हमदोनो को केवल
एक-दूसरे से प्रेम ही
तो करना था:
साथ लिए तुम्हारी
सभी मज़बूरियों को,
रिश्तों और नातों को,
और उस रज्ज को भी
जो उगाती है पेड़ो को,
और फिर उनपर खिलाती है
फूल और पत्तिओं को
पर इतना भी नहीं हो सका हमसे
जिम्मेदारियों की उलझन में
उलझ कर रह गया है तुम्हारा प्रेम
और मैं अब भी इंतज़ार में हु
तुम्हारे आने के
Friday, 4 August 2017
Thursday, 3 August 2017
तुम्हारी कल्पना करता हु
अक्सर ही मैं
तुम्हारी कल्पना
करता हु चाहे रहु
अकेला या फिर लोगो
के बीच पर मेरी
कल्पनाओं में सिर्फ
तुम ही होती हो ;
तुम्हारी छवि बारिश
की बूंदो की तरह
मेरी आँखों के सामने
बरसती रहती है ;
और तुम उस हिरन
की तरह कुलांचें भर
भागती रहती हो और
तुम्हारी नाभि में जो
केशर है उसकी खुसबू
मुझे तुम्हारी तरफ खींचती
रहती है पल-पल
तुम्हारी कल्पना
करता हु चाहे रहु
अकेला या फिर लोगो
के बीच पर मेरी
कल्पनाओं में सिर्फ
तुम ही होती हो ;
तुम्हारी छवि बारिश
की बूंदो की तरह
मेरी आँखों के सामने
बरसती रहती है ;
और तुम उस हिरन
की तरह कुलांचें भर
भागती रहती हो और
तुम्हारी नाभि में जो
केशर है उसकी खुसबू
मुझे तुम्हारी तरफ खींचती
रहती है पल-पल
देह सदैव याद रखती है
प्रेम की याददास्त
कमजोर होती है ;
और तन की याददास्त
तीक्ष्ण होती है और
सदैव तीक्ष्ण ही रहती है;
प्रेम का स्वाभाव चंचल है
वो भागता फिरता है ;
और देह का स्वाभाव है
स्थिर रहना वो कंही जाता नहीं ;
इसलिए प्रेम भूल जाता है और
देह याद रखती है सदैव;
प्रेम करता है कल्पनाएं और
देह पागलपन की हद्द पार करता है
इसलिए प्रेम में देह की महत्ता
कभी कम नहीं आंकी जा सकती
कमजोर होती है ;
और तन की याददास्त
तीक्ष्ण होती है और
सदैव तीक्ष्ण ही रहती है;
प्रेम का स्वाभाव चंचल है
वो भागता फिरता है ;
और देह का स्वाभाव है
स्थिर रहना वो कंही जाता नहीं ;
इसलिए प्रेम भूल जाता है और
देह याद रखती है सदैव;
प्रेम करता है कल्पनाएं और
देह पागलपन की हद्द पार करता है
इसलिए प्रेम में देह की महत्ता
कभी कम नहीं आंकी जा सकती
Wednesday, 2 August 2017
विरह की कहानी
कभी महसूसना
तुम भी सूखे पत्तों की
फड़फड़ाहट तुम्हे सुनाई देंगी
उनकी बेचैनी वो सूखे पत्ते
करहाते हुए कहते है
अपने विरह की कहानी
दर्द होता है सुनते ही
उनकी कराहटें मन होता है
उन्हें फिर से रोप दू
उसी पेड़ में जंहा से
अलग हुए है वो
और ये सोचते हुए
रुक जाता हु मैं भी
एक जगह पर जैसे
कई बार मौसम
ठहर जाता भूल कर
अपनी नियति
नहीं जाना चाहता
उन पत्तो की तरह
तुमसे अलग होकर
दूर अब मैं
तुम भी सूखे पत्तों की
फड़फड़ाहट तुम्हे सुनाई देंगी
उनकी बेचैनी वो सूखे पत्ते
करहाते हुए कहते है
अपने विरह की कहानी
दर्द होता है सुनते ही
उनकी कराहटें मन होता है
उन्हें फिर से रोप दू
उसी पेड़ में जंहा से
अलग हुए है वो
और ये सोचते हुए
रुक जाता हु मैं भी
एक जगह पर जैसे
कई बार मौसम
ठहर जाता भूल कर
अपनी नियति
नहीं जाना चाहता
उन पत्तो की तरह
तुमसे अलग होकर
दूर अब मैं
Tuesday, 1 August 2017
प्रेम कभी बतलाकर नहीं होता
पहले पहले किसी
को नहीं पता होता
की हम किसी को किन्यु
बार बार देखना चाहते है
और किन्यु किसी को नहीं
जाने देना चाहते खुद से दूर
पर वो चाहत कब दिल में
सेंध लगाकर घर बना लेती है
पता ही नहीं चलता हमे
तब लोग बताते है हमे
लगता है तुम "प्रेम" में हो
और तब तक हमारा वश ख़त्म
हो चूका होता है खुद के दिल पर से
शायद इसी लिए कहते है
प्रेम कभी बतलाकर नहीं होता
Subscribe to:
Posts (Atom)
प्रेम !!
ये सच है कि प्रेम पहले ह्रदय को छूता है मगर ये भी उतना ही सच है कि प्रगाढ़ वो देह को पाकर होता है !
-
भाविउ मेटि सकहिं त्रिपुरारी ___________________ बदल सकता है,प्रेम का रंग ; बदल सकता है ,मन का स्वभाव ; बदल सकती है ,जीवन की दिशा ; ...
-
तेरी याद जैसे ध्रुवतारा वयस्तताओं के महाजंगल में घोर उपेक्षाओं के सागर में निर्मम विरह औऱ तड़पते से तपते मरुस्थल में राह ...
-
मेरे अरमानों की भी तो जननी तुम हो ! _____________________________ आधी रात कौंधी उसकी चितवन और उसने दरवाज़ा अपने घर का खुला छ...