Friday, 31 January 2020

चिरैया !


चिरैया !

ये जानने की क्या 
जरुरत है कि एक 
चिरैया अभी अभी 
जो उड़कर गयी है !
अपना उजड़ा घौंसला 
यही यूँ ही क्यों छोड़कर !
क्योंकि वो अच्छी से 
जानती है कोई कितना 
भी उजाड़ दे उसका ये 
घरौंदा वो नए घरौंदे 
की नीव की खातिर ही 
तो लेने गयी है ! 
कुछ नए नए तिनके 
नए घोसले के नव 
निर्माण के लिए !
तब ही तो वो लौटती है 
पहले से कहीं ज्यादा 
और दृढ़ मज़बूती से !
शायद ये उसका धर्म है 
जिसे निभाती है वो  
चिरैया सदा समर्पण से !  

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !