चिरैया !
ये जानने की क्या
जरुरत है कि एक
चिरैया अभी अभी
जो उड़कर गयी है !
अपना उजड़ा घौंसला
यही यूँ ही क्यों छोड़कर !
क्योंकि वो अच्छी से
जानती है कोई कितना
भी उजाड़ दे उसका ये
घरौंदा वो नए घरौंदे
की नीव की खातिर ही
तो लेने गयी है !
कुछ नए नए तिनके
नए घोसले के नव
निर्माण के लिए !
तब ही तो वो लौटती है
पहले से कहीं ज्यादा
और दृढ़ मज़बूती से !
शायद ये उसका धर्म है
जिसे निभाती है वो
चिरैया सदा समर्पण से !
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