Sunday, 12 January 2020

भाव भंगिमा !


भाव भंगिमा ! 

तुम कांपती सर्दी सी 
और मैं पसीने से 
लथपथ ग्रीष्म सा !
लगभग एक दूसरे 
के विपरीत भाव 
भंगिमा है हमारी !
पर एक दूसरे से 
कुछ ना कुछ तो 
चाहते है हम !
तुम्हे मुझसे प्रेम
की गर्माहट चाहिए 
ताकि तुम अपनी 
ठिठुरती देह को 
तपिश दे सको !
मुझे तुमसे शीत 
की वो लहर चाहिए 
ताकि सूखा सकू 
पसीने से लतपथ इस 
ग्रीष्म से देह को !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !