Tuesday, 21 January 2020

प्रीत की प्रकृति !


प्रीत की प्रकृति !

प्रिय चलो आज तुम्हे दिखाऊं
हमारे प्रीत से सजी वो प्रकृति 
ये कलकल बहती नदी 
और शीतल सुसज्जित धरा 
उस दूर गगन के चाँद सितारे 
और कब से हमारी राह तकते 
खड़े वो ऊँचे ऊँचे पहाड़ व पर्वत  
वो ही तो अपनी प्रीत के प्रहरी है
निशा सुहानी जो हमें निहारे 
लेता चाँद सांसें गहरी गहरी 
तरुवर भी साक्ष्य बने है देखो 
इन नयनाभिराम दृश्यों को  
मिलन की बेला बीत ना जाय 
आकर मेरे इस जीवन में तुम 
इसे अब सुखांत बनाओ !       

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !