Friday, 10 January 2020

प्रेम कविता !


वजह बेशुमार है मेरे पास , 
तुम्हे यूँ ही प्यार करने की ;
हाल-ए-दिल जब जब लिखती हूँ ,
स्याही होती है एक तेरे नाम की ;
जो इत्र लगाती हूँ ख़ुश्बू होती है ,
उस मे बस एक तेरे नाम की ;
जो रत्न पहना है वो झलकता है , 
बिलकुल तुम्हारे चमकते चेहरे सा ; 
जब संवरती हूँ तारीफ होती है ,
एक बस तेरे ही  कोहिनूर की ;
जब लिखती हूँ कविता प्रेम की , 
वाह निकलती है तेरे नाम की ;
अब तुम ही कहो और कितनी वजह ; 
मैं तुम्हे गिनाऊँ तुम्हे प्यार करने की !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !