Tuesday, 7 January 2020

नियत और नियति !


नियत और नियति !

कभी सिहरता 
कभी महकता 
कभी तपता 
कभी भींगता 
कभी स्वतः यूँ ही 
पिघलता और मैं 
यूँ भी आनंदित था 
पर विचलित ना था 
जानता था कि ये  
तुम्हारी नियत न थी 
नियति के चक्र में 
तुम भी बंधी थी
पर दुखता ये था 
कि तुम ये भूल गयी थी  
कि तुम्हारे चक्र में मैं 
भी तो बंधा था !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !