नव-नूतन प्रेम !
मैं प्रेम हूँ
अपनी प्रीत का
नव नूतन वर्ष का
यह पहला दिन मैं अपनी
प्रीत के नाम करता हूँ !
ठंड से ठिठुरती ये
मेरी ज़िन्दगी को मैं
अपनी प्रीत का सानिध्य
प्रदान करता हूँ !
सूरज जो अभी अभी
गर्म मुलायम धूप का
एक सबसे चमकीला
टुकड़ा मेरी पीठ पर डाल
कर गया है !
उस से उपजी समस्त
उर्मा को भी मैं आज
अपनी उसी प्रीत के
नाम करता हूँ !
वो उसे खुद में कर
के जज्ब करेगी उसे
पोषित करने को हमदोनों
के हम का विस्तार !
मैं प्रेम हूँ
जिस प्रीत का उसकी
ये लिखित परिभाषा भी
मैं आज उसी मेरी प्रीत
के नाम करता हूँ ।
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