Tuesday 14 January 2020

प्रेम की जरुरत !


प्रेम की जरुरत !

अभी उसमें कसमसाहट भी है 
और ना मानने की जिद्द भी है 
मूल्य परंपरा संस्कार के बारे 
वो अभी सोचती भी बहुत है 
अभी उसने जाना ही कहाँ है 
अभी उसने समझा ही नहीं है 
प्रेम की जरुरत को तब ही तो 
अब तक उसने रेगिस्तान में 
नहरों से आते पानी को ही पीया है
अब तक उसने गौमुख से आती 
धार से अपनी प्यास बुझाई नहीं है
ये अचकचाहट और उसका यूँ  बार 
बार चौंक उठना उसकी मज़बूरी नहीं है 
ये उसका प्रति रोध भी नहीं है
ये उसके समर्पण से पनपी और 
भावनाओं से जन्मी स्वीकृति है !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !