Friday, 31 January 2020

दो डबडबाई ऑंखें !


दो डबडबाई ऑंखें !

दूर-दूर तक विस्तारित 
ये रेगिस्तान पल-पल 
निरंतर फैलता रहता है  
और मैं उतना ही इसमें 
जल कर सजल होता हूँ 
मैं जो एक मात्र देह हूँ 
और पानी मेरा सपना है  
मैं जब भी सपना देखता हूँ 
तो डबडबाई वो तुम्हारी दोनों 
सजल ऑंखें दिख जाती है   
वो तुम्हारी दोनों ऑंखें जो 
कर देती है इस देह को फिर 
एक पल में पानी पानी !    

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !