Saturday, 4 January 2020

प्रेम का सागर !


प्रेम का सागर !

मैं जमा हुआ था ,
पर्वत हिमालय सा 
मेरे सीने में बर्फ ही 
बर्फ जमी हुई थी ! 
ना कोई सरगोशी थी , 
ना कोई हलचल थी ,
सब कुछ शांत स्थिर 
और अविचल था !
फिर तुम आयी और  
स्पर्श कर मेरे मन को 
उसमे अपने प्रेम की 
ऊष्मा व्याप्त कर गयी थी !
बूंद बन पिघल पड़ा था ,
बादल बन बरस पड़ा था , 
फिर ना जाने कब मैं ,
तुम्हारे ही प्रेम का सागर 
बन गया था !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !