यादें तेरी !
यादें तेरी अश्रुविहल है
कितनी असहाय कर
जाती है !
मेरी इन आँखों में कितनी
ही बारिशों का घर बना
जाती है !
गूंज गूंज कर ये मौन
तुझ को पुकारने लग
जाता है !
व्यथित हो कर सन्नाटें
भी मेरे सुर में सुर मिलाने
लग जाते है !
प्रतीक्षा के क्षण भी अधैर्य
होकर टूटती उखड़ती
सांसों से भी !
दुआओं में तेरे ही नाम
की रट लगाने लग
जाते है !
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