प्रेम का भूगोल !
मुझे गणित नहीं आती है
रिश्तों में जोड़ और घटाव
स्नेह में लाभ और हानि
मैंने सीखा ही नहीं है !
हां मुझे प्रेम का भूगोल
जरूर बखूबी आता है !
शीत में धुप को प्रेम
गर्मी में छांव को स्नेह
कहना ही मैंने सीखा है !
तुम जुड़ी हो मेरी सांसों
से जब तक तुम पर प्रेम
कविता यूँ ही रचता रहूँगा
मैं तब तक !
तुम्हारे आने की कुँवारी
आस को यूँ ही गले लगाए
तुम्हे यही खड़ा मिलूंगा
जीवन प्रयन्त तक !
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