Monday 20 January 2020

प्रेम का भूगोल !


प्रेम का भूगोल !

मुझे गणित नहीं आती है 
रिश्तों में जोड़ और घटाव 
स्नेह में लाभ और हानि 
मैंने सीखा ही नहीं है !
हां मुझे प्रेम का भूगोल 
जरूर बखूबी आता है ! 
शीत में धुप को प्रेम  
गर्मी में छांव को स्नेह 
कहना ही मैंने सीखा है !
तुम जुड़ी हो मेरी सांसों 
से जब तक तुम पर प्रेम 
कविता यूँ ही रचता रहूँगा 
मैं तब तक !
तुम्हारे आने की कुँवारी 
आस को यूँ ही गले लगाए 
तुम्हे यही खड़ा मिलूंगा 
जीवन प्रयन्त तक !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !