Friday, 3 January 2020

ये तो प्रेम है !


ये तो प्रेम है !

भूख होती तो उसे 
अपने उदर में ही 
कहीं छुपा लेती मैं  
पर ये तो प्रेम है 
इसको दबाऊँ भी 
तो कहाँ दबाऊँ मैं  
इसको छुपाऊँ भी 
तो कहाँ छुपाऊँ मैं  
फूलों की सुगंध सा है 
पाखी की चहक सा है 
जब भी कहीं तुम्हारा 
जिक्र होता है खुद-ब-खुद 
महकता है चहकता है 
इस की महक को छुपाऊँ 
भी तो छुपाऊँ कहाँ मैं   
इस की चहक को दबाऊँ 
भी तो दबाऊँ कहाँ मैं  
भूख होती तो उसे 
फिर भी अपने उदर 
में छुपा लेती मैं !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !