भक्त और भगवान !
सब कुछ है तुझ में वैसा जैसा होता है ;
एक भक्त के लिए उस के ईश में !
जिसे देख कभी वो हँसता है ;
तो कभी वो आंसूं बहाता है !
बिना कुछ कहे ही वो सोचता है ;
कि वो सब कुछ समझते है !
बिना कुछ मांगें ही वो उसे वो सब ;
दें देंगे जिसकी उसे जरुरत होती है !
ये क्रिया निरंतर यूँ ही चलती रहती है ;
पर जब उस भक्त का दुःख और दर्द ,
यूँ ही बना रहता है तब वो चित्कारता है !
रोता है और खुद को कोसता भी है ;
लेकिन फिर जब वो खुद की भक्ति ,
पर खुद ही प्रश्न चिन्ह लगाता है !
तब वो प्रश्न चिन्ह उस के उस ईश पर
भी तो खुद-ब-खुद ही लग जाता है !
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