Tuesday, 21 January 2020

सकूँ की तलाश !


सकूँ की तलाश !

दिन भर की भाग दौड़ 
के बाद जब घर लौटता हूँ ! 
तब तकरीबन सब कुछ घर 
में व्यवस्थित ही मिलता है !
हाँ रात ठंडी ठंडी होती है पर
बिस्तर मेरा नर्म नर्म होता है ! 
फिर भी रात मेरी पूरी की पूरी  
जैसे करवटों में ही गुजरती है !
जाने क्यों नींद आती ही नहीं 
शायद सकूँ को मैं खुद ही कहीं ; 
और छोड़ कर के आता हूँ फिर 
यहाँ आकर नींद को तलाशता हूँ !   

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !