सकूँ की तलाश !
दिन भर की भाग दौड़
के बाद जब घर लौटता हूँ !
तब तकरीबन सब कुछ घर
में व्यवस्थित ही मिलता है !
हाँ रात ठंडी ठंडी होती है पर
बिस्तर मेरा नर्म नर्म होता है !
फिर भी रात मेरी पूरी की पूरी
जैसे करवटों में ही गुजरती है !
जाने क्यों नींद आती ही नहीं
शायद सकूँ को मैं खुद ही कहीं ;
और छोड़ कर के आता हूँ फिर
यहाँ आकर नींद को तलाशता हूँ !
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