मौन ! !
अखर जाता है ,
अक्सर मौन हो जाना
टीस दर्द और कसक
करती तो रहती है ;
व्याकुल पर कितना
कुछ चलता रहता है ;
इस मन के भीतर
पर खालीपन अंतस
का जाने क्यों खुद को
भी अक्सर जाता है ;
क्यों अखर !
ये सच है कि प्रेम पहले ह्रदय को छूता है मगर ये भी उतना ही सच है कि प्रगाढ़ वो देह को पाकर होता है !
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