Thursday 1 March 2018

स्मृतियों की झालरों के साथ बातें करता हु

चांद की चांदनी के साथ वाली ठंडी रात में 
अकेले बैठ तुम्हारी रेशम सी स्मृतियों की 
झालरों के साथ बातें करता हु अक्सर मैं 
वो कुछ बोलती तो नहीं पर हां सारे उलहाने 
चुपचाप सुनती है मेरे और तो और तुम्हारी तरह 
उल्टा जवाब भी नहीं देती हम्म हम्म 
तुम्हारी ही तरह मेरे दिल में चुभती तो है 
उसकी भी ख़ामोशी लेकिन वो पास होती है 
तो सारे दर्द सहन कर लेता हु मैं भी चुपचाप
मेरा प्रेम उसके मन का सितार बनकर 
कुछ इस तरह झनझनाता है जैसे 
पिघल‍ती चांदनी को देखकर चाँद मर मिटता है 
अपनी चांदनी पर वैसे ही पूरी की पूरी रात 
मैं भी अपनी लुटा देता हु तुम्हारी रेशम सी
स्मृतिओं की झालरों के और पता भी नहीं चलता
कब सूरज चढ़ आता है हम दोनों के सर 
चांद की चांदनी के साथ वाली ठंडी रात में 
अकेले बैठ तुम्हारी रेशम सी स्मृतियों की 
झालरों के साथ बातें करता हु अक्सर मैं 

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !