ज़िन्दगी अक्सर लगाती है
"अल्प विराम" तब भी जब हम
पहली बार प्रयत्न करने की कोशिश करते है
गर्भ द्वार से जल्द बाहर आने की
और रेंगते रेंगते करते है पहली बार
कोशिश घुटनो से उठ अपने पैरों से
धरा को मापने की और तब भी
अल्पविराम लगाती है ये ज़िन्दगी
जब हम पहली बार अपने युवा फेफड़ों
में भर एक लम्बी श्वास करते है प्रयत्न
सबकुछ उस एक ही दौड़ में पा लेने की
उस वक़्त भी ज़िन्दगी लगाती है अल्प विराम
जब चाहा सबकुछ पा लेने के बाद भूख देती रहती है
दस्तक हमारे अतृप्त पिपासा के द्वार और हम करते है
प्रयत्न फिर से नयी पिपासा की मांग को स्वीकार समझते हुए भी
की अपने लिखे भाग्य का सब कुछ कर लिया है
हासिल पर चंचल मन नहीं मानता उस लगाए
अर्ध विराम को अपनी हठधर्मिता में तब ज़िन्दगी लगाती है
अर्धविराम और तबभी अगर ना समझे हम तो ज़िन्दगी लगाती है
पूर्ण विराम और उतार देती है हमे अपनी गोद से
ठीक उस प्रकार जैसे माँ बच्चे के बड़े होने पर उतारती है
उसे ही गोद से निचे अकेले प्रस्थान करने के लिए..
"अल्प विराम" तब भी जब हम
पहली बार प्रयत्न करने की कोशिश करते है
गर्भ द्वार से जल्द बाहर आने की
और रेंगते रेंगते करते है पहली बार
कोशिश घुटनो से उठ अपने पैरों से
धरा को मापने की और तब भी
अल्पविराम लगाती है ये ज़िन्दगी
जब हम पहली बार अपने युवा फेफड़ों
में भर एक लम्बी श्वास करते है प्रयत्न
सबकुछ उस एक ही दौड़ में पा लेने की
उस वक़्त भी ज़िन्दगी लगाती है अल्प विराम
जब चाहा सबकुछ पा लेने के बाद भूख देती रहती है
दस्तक हमारे अतृप्त पिपासा के द्वार और हम करते है
प्रयत्न फिर से नयी पिपासा की मांग को स्वीकार समझते हुए भी
की अपने लिखे भाग्य का सब कुछ कर लिया है
हासिल पर चंचल मन नहीं मानता उस लगाए
अर्ध विराम को अपनी हठधर्मिता में तब ज़िन्दगी लगाती है
अर्धविराम और तबभी अगर ना समझे हम तो ज़िन्दगी लगाती है
पूर्ण विराम और उतार देती है हमे अपनी गोद से
ठीक उस प्रकार जैसे माँ बच्चे के बड़े होने पर उतारती है
उसे ही गोद से निचे अकेले प्रस्थान करने के लिए..
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