अब कुछ लिखना चाहती हु
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उसने कहा "राम" मैंने सुना है इश्क़ में
लोग "कवि" या "शायर" बन जाते है चलो छोड़ो लोगो की बात तुम
खुद को ही देख लो गुमसुम सा रहने वाला
वो "राम" भी तो लिखने लगा है ,
मैं भी चाहती हु अब कुछ लिखना
मैंने कहा रहने दो बहुत दर्द से गुजरना
पड़ता है यु बरसने के लिए मेरा क्या है
मुझे तो तुमने बादल बना उसमे भर दी है
इतनी नमी की बरसना हो गयी है मेरी नियति
फिर ज़िद्द पकड़ कर बैठ गयी मुझे लिखना है
सिखाना ही होगा मुझे अब मैंने कहा ठीक है
एक काम करो तुम थोड़े ख्वाब देखो जिसमे हो
सिर्फ मैं और तुम थोड़ी ख्वाहिशें पालो जिसमे हो
थोड़ी प्यास और उन्हें सहेजो अपने यौवन में
और जब पौढावस्था की दहलीज़ चढ़ते वक़्त
अधूरे रह जाये वो ख्वाब और ना बुझे वो अतृप प्यास
तो इकट्ठे कर उन्हें एक एक कर जलना अपने इन हाथो से
वो जो धुंवा व अग्नि प्रविष्ट करेंगे तुम्हारी रूह में उस दिन
तुम मुझे लिखना राम मैं तुम्हे आज भी उतना ही प्रेम करती हु ?
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