रूह की कराह
__________
तुम बात करती हो मेरे
दरवाज़ों मेरी खिड़कियों
के खड़खड़ाने की जो
दिख जाती है तुम्हे
पर ये तो बताओ तुम
इस रूह की कराह तुम्हे
सुनाई नहीं देती या
इंतज़ार कर रही हो
मेरा की कब अपने
ही वक्ष को मैं अपने
ही हाथों चीरकर
नहीं दिखला देता तुम्हे
तुम बात करती हो मेरे
दरवाज़ों मेरी खिड़कियों
के खड़खड़ाने की जो
सुन जाती है तुम्हे
पर ये तो बताओ तुम
इस हृदय की पीड़ा
दिखाई नहीं देती तुम्हे
या इंतज़ार कर रही हो
उन धड़कनो का जो
धड़क धड़क कर
एहसास दिलाती है
मेरे जीवित होने का
उनके रुक जाने का
तुम बात करती हो मेरे
दरवाज़ों मेरी खिड़कियों
के खड़खड़ाने की जो
दिख जाती है तुम्हे
पर ये तो बताओ तुम
क्या तुम्हे नहीं दिखते
वो अधूरे स्वप्न जो
दिन ब दिन बूढ़े हो रहे है
क्या इन्हे तब चलने
कहोगी साथ अपने जब
इनके घुटनो को बदलवाने का
वक़्त आ जायेगा !
__________
तुम बात करती हो मेरे
दरवाज़ों मेरी खिड़कियों
के खड़खड़ाने की जो
दिख जाती है तुम्हे
पर ये तो बताओ तुम
इस रूह की कराह तुम्हे
सुनाई नहीं देती या
इंतज़ार कर रही हो
मेरा की कब अपने
ही वक्ष को मैं अपने
ही हाथों चीरकर
नहीं दिखला देता तुम्हे
तुम बात करती हो मेरे
दरवाज़ों मेरी खिड़कियों
के खड़खड़ाने की जो
सुन जाती है तुम्हे
पर ये तो बताओ तुम
इस हृदय की पीड़ा
दिखाई नहीं देती तुम्हे
या इंतज़ार कर रही हो
उन धड़कनो का जो
धड़क धड़क कर
एहसास दिलाती है
मेरे जीवित होने का
उनके रुक जाने का
तुम बात करती हो मेरे
दरवाज़ों मेरी खिड़कियों
के खड़खड़ाने की जो
दिख जाती है तुम्हे
पर ये तो बताओ तुम
क्या तुम्हे नहीं दिखते
वो अधूरे स्वप्न जो
दिन ब दिन बूढ़े हो रहे है
क्या इन्हे तब चलने
कहोगी साथ अपने जब
इनके घुटनो को बदलवाने का
वक़्त आ जायेगा !
No comments:
Post a Comment