Wednesday 28 March 2018

मेरे हृदयतल में बीज तुम्हारे बोये हुए होते



मेरे हृदयतल में बीज तुम्हारे बोये हुए होते 

तुम मेरी वो आस थी  
जिसके ऊपर टिकी थी
मेरी ज़िन्दगी की डोर  
मेरे सारे सपनो मेरी 
सारी उमीदों की साँस
सब जानते हुए भी 
तुमने आखिर तोड़ ही 
दी मेरी आशाएं फिर भी 
मैं पागल सोच रही हु 
कहु तुमसे क्या तुम 
एक बार फिर से करोगे
वादा क्या तुम फिर से 
जोड़ पाओगे मेरी उम्मीदों
की सांसें ये पागलपन
नहीं तो क्या है बोलो?
गर तुम रखते माद्दा 
मेरे "जामीन " होने का
तो ये जो उम्मीदों के बीज
मैं खुद बो रही हु अपने 
बंज़र हुए हृदयतल में   
वो बीज तुम्हारे बोये हुए होते

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !