Monday 12 March 2018

तुम्हारी इतनी बेपरवाहियों


अब तो तुम्हे भी लगने लगा है 
ना की स्वाभिमान का दम्भ भरने वाला 
कैसे और किन्यु तुम्हारी इतनी बेपरवाहियों  
के बाद भी बंधा हुआ है अब तक तुम्हारे साथ 
कैसे और किन्यु तुम्हारी इतनी लापरवाहियों   
के बाद भी उसके प्रेम का रंग फीका नहीं पड़ा 
अब तक और तो और कैसे और किन्यु 
तुम्हारी इतनी नज़रअंदाजियों के बाद भी  
जब खफा होकर चला जाता है वो 
कई कई दिनों तक तुमसे दूर पर फिर भी लौट कर 
आता है तुम्हारे पास शायद उसने गिरा दी है 
अपने स्वाभिमान की सारी दीवारें 
शायद तुम्हारा सब कहा किया निकल जाता है 
अब उस गिरी दिवार के उस पार पर सुनो 
देखना कुछ शेष रहे उसमे अब भी पहले 
जैसा कंही ऐसा ना हो एक दिन तुम ही उसे 
पहचान ना पाओ इतने बदलाव के बाद   

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !