अब तो तुम्हे भी लगने लगा है
ना की स्वाभिमान का दम्भ भरने वाला
कैसे और किन्यु तुम्हारी इतनी बेपरवाहियों
के बाद भी बंधा हुआ है अब तक तुम्हारे साथ
कैसे और किन्यु तुम्हारी इतनी लापरवाहियों
के बाद भी उसके प्रेम का रंग फीका नहीं पड़ा
अब तक और तो और कैसे और किन्यु
तुम्हारी इतनी नज़रअंदाजियों के बाद भी
जब खफा होकर चला जाता है वो
कई कई दिनों तक तुमसे दूर पर फिर भी लौट कर
आता है तुम्हारे पास शायद उसने गिरा दी है
अपने स्वाभिमान की सारी दीवारें
शायद तुम्हारा सब कहा किया निकल जाता है
अब उस गिरी दिवार के उस पार पर सुनो
देखना कुछ शेष रहे उसमे अब भी पहले
जैसा कंही ऐसा ना हो एक दिन तुम ही उसे
पहचान ना पाओ इतने बदलाव के बाद
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