Wednesday, 7 March 2018

अश्रु और अब्सार


तुमसे गठबंधन की आस ने
लिए फेरे पुरे सात मेरी 
अब्सार ने अश्रु के साथ  
एक एक कर सातों वचन 
निभाने का वादा भी किया 
अश्रु ने मेरी अब्सार से 
अब मेरे दिन सागर की 
लहरों से और मेरी करूण 
रातें उपांत सी खींची जा रही है
अब्सार पत्थर सी हो 
टिक गयी है एक ही 
राह के मुहाने पर जैसे
अहिल्या बैठी थी "राम"
के लिए पत्थर की होकर 
उसके "राम" तो उसे छूकर 
इफ़्फ़त कर गए अब बारी 
है मेरे "राम" की

इफ़्फ़त-पवित्र
अब्सार-आंखें
उपांत-समुद्र सीमा
करूण-उदासीन
अश्रु - आँसू



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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !