लिए फेरे पुरे सात मेरी
अब्सार ने अश्रु के साथ
एक एक कर सातों वचन
निभाने का वादा भी किया
अश्रु ने मेरी अब्सार से
अब मेरे दिन सागर की
लहरों से और मेरी करूण
रातें उपांत सी खींची जा रही है
अब्सार पत्थर सी हो
टिक गयी है एक ही
राह के मुहाने पर जैसे
अहिल्या बैठी थी "राम"
के लिए पत्थर की होकर
उसके "राम" तो उसे छूकर
इफ़्फ़त कर गए अब बारी
है मेरे "राम" की
इफ़्फ़त-पवित्र
अब्सार-आंखें
उपांत-समुद्र सीमा
करूण-उदासीन
अश्रु - आँसू
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