Monday 19 March 2018

मेरे हृदय चंद्र ज्योत्सना से पुलकित हो तुम

मेरे हृदय चंद्र ज्योत्सना से पुलकित हो तुम
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मैंने चुनी थी एक विमलतम, शुभ्रतम, संगमरमर 
की पाटी जिसको मेरे मनोहर मन के निर्मल जल के 
समीप रख अपने सांसों की मधुर गुँजारव के बीच 
बैठकर हृदय चंद्र ज्योत्सना से पुलकित करू  
और ऐसा मैं अपना कर्म ही नहीं अपितु इसे 
अपना प्रेम धर्म मानकर करू और उस शीतल 
शुभ्र संगमरमर की पाटी का सारा खुरदरापन 
छील उसे इतना कोमल बना दू जितना 
होता है हृदय एक नवजात शिशु का और 
फिर उसमें से मेरे मन की हृदय साम्राज्ञी 
की वो हु-ब-हु मूर्ति निकाल अपने हृदय की 
धड़कन जोड़ दू और वो जी उठे जिसका स्वप्न 
मैंने अपने यौवन के प्रथम पायदान पर पांव 
रखते हुए देखा था एवं जिसके विशाल करुणामय नेत्र मेरे सर्वस्य अस्तित्व को खुद में समां ले वो और इस कार्य के बदले मुझे वो आशीर्वाद देती हुई दिखाई पड़े एवं उसे प्राप्त हो देवियों की वो शक्ति 
की वो जिसे छू ले उसे सौ गुना कर दे ऐसी भार्या 
मैंने अपने प्रेम की समर्पण से गढ़ी जिसके परिणाम 
स्वरुप आज तुम मेरी अर्धांगिनी हो 

Image Courtesy: google 

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !