Monday, 5 March 2018

मेरे चित्त की अशुद्धियों

तुम जब जब होती हो मेरे साथ 
मेरे चित्त की अशुद्धियों का छय होने लगता है
और जब दूर होती हो तुम तब त्वरित गति से फैले
प्रकाश को अँधेरा अपना आवरण उढ़ा देता है और
चारों और छा जाता है घुप्प अँधेरा इस मनः 
स्थिति में दुख ही दुःख पीडा ही पीड़ा छा जाती है 
मेरी काया की चारो ओर ऐसे में जो बसंत द्वार पर
खड़ा दस्तक देता वो भी कहा सुनाई देती है मुझे
उसके फलस्वरूप लौट जाता है बसंत बैरंग मेरे 
द्वार से और दो गतिओं पर घूमने वाली धरा 
घूर्णन गति को त्याग परिक्रमण गति पर अटक  
जाती है जिसमे नित्य की जगह वर्ष लगते है उसे 
अपना ऋतू चक्र बदलने में तुम जब जब होती हो
मेरे साथ मेरे चित्त की अशुद्धियों का छय होने लगता है


घूर्णन गति -दैनिक गति
परिक्रमण गति -वार्षिक गति  

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !