तुम जब जब होती हो मेरे साथ
मेरे चित्त की अशुद्धियों का छय होने लगता है
और जब दूर होती हो तुम तब त्वरित गति से फैले
प्रकाश को अँधेरा अपना आवरण उढ़ा देता है और
चारों और छा जाता है घुप्प अँधेरा इस मनः
स्थिति में दुख ही दुःख पीडा ही पीड़ा छा जाती है
मेरी काया की चारो ओर ऐसे में जो बसंत द्वार पर
खड़ा दस्तक देता वो भी कहा सुनाई देती है मुझे
उसके फलस्वरूप लौट जाता है बसंत बैरंग मेरे
द्वार से और दो गतिओं पर घूमने वाली धरा
घूर्णन गति को त्याग परिक्रमण गति पर अटक
जाती है जिसमे नित्य की जगह वर्ष लगते है उसे
अपना ऋतू चक्र बदलने में तुम जब जब होती हो
मेरे साथ मेरे चित्त की अशुद्धियों का छय होने लगता है
घूर्णन गति -दैनिक गति
परिक्रमण गति -वार्षिक गति
मेरे चित्त की अशुद्धियों का छय होने लगता है
और जब दूर होती हो तुम तब त्वरित गति से फैले
प्रकाश को अँधेरा अपना आवरण उढ़ा देता है और
चारों और छा जाता है घुप्प अँधेरा इस मनः
स्थिति में दुख ही दुःख पीडा ही पीड़ा छा जाती है
मेरी काया की चारो ओर ऐसे में जो बसंत द्वार पर
खड़ा दस्तक देता वो भी कहा सुनाई देती है मुझे
उसके फलस्वरूप लौट जाता है बसंत बैरंग मेरे
द्वार से और दो गतिओं पर घूमने वाली धरा
घूर्णन गति को त्याग परिक्रमण गति पर अटक
जाती है जिसमे नित्य की जगह वर्ष लगते है उसे
अपना ऋतू चक्र बदलने में तुम जब जब होती हो
मेरे साथ मेरे चित्त की अशुद्धियों का छय होने लगता है
घूर्णन गति -दैनिक गति
परिक्रमण गति -वार्षिक गति
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