अक्सर अतृप्ति झूठी मुस्कान
बिखेरती है होंठो पर होंठो की मुस्कराहट
के मायने कई है जब वो मुझे कुछ
अनमनी सी लगी तो पूछा ठीक हो तुम ?
प्रतिउत्तर में होंठो से मुस्कुरायी वो और
जब थक हार कर लौटा घर को थकी थकी
सी लगी तो एक बार फिर पूछा कैसी हो तुम ?
प्रतिउत्तर में एक बार फिर मुस्कुरायी वो
आज आधी रात को उसकी अँगुलियों के
सारे नख जो उसने बढ़ा रखे थे कई सालों से कटे मिले मुझे वो बिस्तर पर
पूछा तो प्रतिउत्तर में एक बार फिर
मुस्कुरायी थी सारे सवालों के जवाब में
उसकी मुस्कराहट कहना कुछ और ही चाहती थी
और मैं समझता रहा सब ठीक है
आज नींद नहीं आ रही थी तो किताबो की
रेक में से एक किताब निकाल पढ़ने बैठा
शीर्षक था "कशिश" उसके पहले पन्ने पर
लिखी दो लाईने ने मुझे फर्क समझा दिया
देह की मुस्कराहट रिश्तों को बांधने
की वो डोर है जिसके गांठ कभी खुलती नहीं
होंठो की मुस्कराहट में गांठे नहीं लगती
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