मैं सूर्यमुखी सा
अपेक्षा के वशीभूत होघूम जाता हु तुम्हारी
ओर हर बार ....
कभी सौम्य
कभी मध्यम
कभी प्रखर
कभी तीक्ष्ण
तुम्हारी किरण ...
संतुलित,स्पष्ट,व
कभी कभी उन्नमादि
तुम्हारा ये आचरण
संवारता,मांजता,परिपक्व
करता है मुझे भीतर से
और मैं पहले से अधिक
सजीव,शोख,दीप्तमान
हो घूम जाता हु
तुम्हारी ओर
हर बार .... ...!
No comments:
Post a Comment