Thursday, 22 March 2018

तुम्हारी अपेक्षा के वशीभूत मैं

मैं सूर्यमुखी सा  

अपेक्षा के वशीभूत हो 
घूम जाता हु तुम्हारी 
ओर हर बार  ....
कभी सौम्य 
कभी मध्यम
कभी प्रखर
कभी तीक्ष्ण  
तुम्हारी किरण  ...
संतुलित,स्पष्ट,व 
कभी कभी उन्नमादि
तुम्हारा ये आचरण 
संवारता,मांजता,परिपक्व 
करता है मुझे भीतर से 
और मैं पहले से अधिक 
सजीव,शोख,दीप्तमान  
हो घूम जाता हु 
तुम्हारी ओर 
हर बार  .... ...!  

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !