Saturday, 29 April 2017
ऐ जिंदगी
ऐ जिंदगी तुझे जीना
चाहता हूँ मैं
लबों से अपने तुझे
पीना चाहता हूँ मैं।
तेरे साथ ही चल
पड़ें है कदम मेरे
एक एक लम्हा तुझसे
चुराना चाहता हूँ मैं।
पलकों से चूम लूँ
तेरा हर वो शय ,
तुझसे ही रस्में उल्फत
निभाना चाहता हूँ मैं।
बीते रागिनी को दफ़न कर
अतीत के पन्नो में
तुझसे ही लिपट कर
रोना चाहता हूँ मैं।
सीने से लगा ले
मुझको तू अपने ,
तमाम उम्र तुझपे अपनी
लुटाना चाहता हूँ मैं।।
ये बारिश की बूँदें,
सब कुछ कह
लेने के बाद –
ये बारिश की बूँदें,
पत्तियों की सरसराहट,
ये महकी ठंडक,
मिटटी की खुशबू,
वो हलकी सी रौशनी,
इस भीगते बदन पर
एक हलकी सी सिरहन,
सब कितने अच्छे लगते हैं,
समय रुक जाता है,
एक नए प्रकाश में डूब
मन मंद-मंद मुस्काता है,
पत्थरों से भारी उन शब्दों का
सदियों का कुछ बोझ
सा उतर जाता है,
यूँ पट पर समक्ष खड़े हो
तुमसे सब कुछ कह लेने के बाद
बस कुछ अच्छा सा लगता है |
पलट के देखूँ
क़दम अब भी
उसी मोड़ पर जमे हैं
नज़र समेटे हुए
तब से खड़ा हूँ
जुनूँ ये मजबूर कर रहा है
पलट के देखूँ
ख़ुदी ये कहती है
मोड़ मुड़ जा
अंदर एहसास हो रहा है
खुले दरीचे के पीछे
दो आँखें झाँकती हैं
अभी मेरे इंतज़ार में
वो भी जागती है
कहीं तो उस के
दिल में दर्द होगा
उसे ये ज़िद है कि मैं पुकारूँ
मुझे तक़ाज़ा है वो बुला ले
क़दम उसी मोड़ पर जमे हैं
नज़र समेटे हुए खड़ा हूँ.
पढ़ लेना ख़ामोशी को
धीरे से छु लेना साँसे
कुछ ख्वाइशें किस
कदर मासूम होती है !!
चाँद मुट्ठी में
चाँद मुट्ठी में आ गिरा,
उसे उलट-पलट
के देखता हूँ,
उसकी पीली
खुरदरी सतह पर
अपना हाथ फेरता हूँ,
उसे ज़मीन पे रख
कभी इधर-तो
कभी उधर
धकेलता हूँ
हमेशा सोचता था
की वो क्या करता होगा
अकेले काले आकाश में,
आधा गायब
तो कभी पूरा शून्य
विचरता उस पीले लिबास में
पर आज उठा तो पाया
उसको बंद अपनी मुट्ठी में,
अब बस, अकेले बैठ
हाथों में लिए देखता हूँ
उसकी उधड़ी सतह को,
क्योंकि आज चाँद
बंद मेरी मुट्ठी में आ गिरा
तो पता चला
प्यार में होकर भी
कोई कैसे अकेला
रह सकता है
रात की कालिमा
क्यों रात की ये कालिमा है
क्यों रौशनी से तपता दिन
क्यों आसमा ओझल है
क्यों हवा सूखी मद्धम
क्यों लम्हे बिखरे हैं
क्यों यादों के प्रतिबिम्ब
क्यों आँहे कुछ हलकी सी
क्यों बीत गए वो दिन
क्यों सुबह की ख्वाइश है
क्यों लेटे रहना मुश्किल
क्यों चलते रहना भारी है
क्यों भटके ये पदचिन्ह
क्यों हर इक पल ओझल है
क्यों परछाइयाँ निश्चिल
क्यों तसवीरें चुभती हैं
क्यों सिमटे जीवन प्रतिदिन
एक सिर्फ तेरे बिना
सारी वादी सो रही है
सारी कायनात ..........
एक धुन्ध की चादर
में खो रही है
एक कोहरा सा ओढ़े ........
यह सारी वादी सो रही है
गूँज रहा है झरनो में
कोई मीठा सा तराना
हर साँस महकती हुई
इन की ख़ुश्बू को पी रही है
पिघल रहा है चाँद
आसमान की बाहो में
सितारो की रोशनी में
कोई मासूम सी कली सो रही है
रूह में बस गया है
कुछ सरूर इस समा का
सादगी में डूबी
यहाँ ज़िंदगी तस्वीर हो रही है
है बस यही लम्हे मेरे
पास इस कुदरत के
कुछ पल ही सही मेरी रूह
एक सकुन में खो रही है !!
कहाँ क्या दफ़न हुआ
कुछ लफ्ज़ ज़िन्दगी के
सिर्फ खुद से ही पढ़े जाते हैं
वही लफ्ज़ जो दिल
की गहराइयों में
दब गए कभी सोच कर
कभी भूल से
जैसे कुछ भूली
हुई सभ्यताएं
जो नजर आती है
सिर्फ जमीनों के
खोदने से
ठीक वैसे ही
"कुछ यादें "
जो दबी हैं
ज़िन्दगी के उन
पन्नो में
जो वर्जित है
सच जानने से पहले
दुनिया की नजरों में आना
और वो पन्ने पढ़े हैं
सिर्फ उन्ही ने
जो जानते हैं कि
" कहाँ क्या दफ़न हुआ था ?"
एक-एक बात याद है
उस दिन की एक-एक
बात याद है
देखते ही देखते फिर
दिन घिर आया,
भीनी-भीनी रोशनियों ने
रात के काजल को मिटाया
नींद की लुका-छुपी
कुछ चालू हुई
भारी होती पलकों को
सपनों ने हल्के
से खटखटाया
उस नींद से थके चेहरे से
मुस्का कर जब तुमने
आँखें बंद करते हुए
मुझको भी सो जाने को कहा
वो बात अब भी याद है मुझको
उस उस दिन की एक-एक
बात याद है
तेरे दिल की जमीन पर
तेरी सुरमई आंखों में
तलाश रहा हूं अपनी तस्वीर
तेरे दिल की जमीन
पर ढूंढ़ रहा हूं एक आशियाना
तुम्हारी मरमरी बांहों में बसाना
चाहता था अपनी एक अलग दुनिया
पर शायद ये मुमकिन नहीं क्योंकि
जगा चुकी तुम मुझे एक
गहरी नीन्द से लौट आया हूं मैं
ख्वाबों की दुनिया से
हकीकत की जमीं पर
एक पल को लगा
ऐसा जैसे सिमट गई हो
सारी दुनिया मेरे आगोश में
फिर से मैंने अपने आप को
पाया बिलकुल तन्हा और अकेला
मेरे पास बची थी कुछ यादें मेरे उन
सुनहरे ख्वाबों की उनको सम्भाले हुए
अपने जेहन में बढ़ चला
एक अनजानी मंजील की ओर अब
फूलों के बीज
मैंने सोचा तुम
फूल सी हो तो
तुम्हे फूल बहुत पसंद होंगे
और इसीलिए मैं
ढेर सारे फूलों के बीज
लेकर आ गया किन्तु
तुम्हारे पत्थर से दिल
को देखकर सोचता हूँ
इन बीजों को क्या करूं
अच्छा होता
मैं इन बीजों के साथ
मुठ्ठी भर मिट्टी
मेरे रूह की भी लाता
और अँजुरी हथेली में ही
हथेली की ऊष्मा तथा
मेरी आँखों की नमी से
अँजुरी भर फूल उगाता
तो शायद तुम्हारा दिल
पसीज गया होता
अपने जज्बात
मैनें लिख कर दी
तुम्हे अपनी चन्द
कविताएं
शब्दों की जगह
उकेरे थे मैनें
अपने जज्बात
निकाल कर रख
दिए थे मैनें कागज
के एक छोटे से टुकडे.
पर अपने दिल के
सारे अरमान
इस ख्याल में कि
शायद मेरी पाक मोहब्बत
तेरे दिल की गहराईयों
में पनाह पा ले
पर मेरे सारे जज्बात
हर्फ-दर-हर्फ
बिखरे पड़े है
जब मैंने ये जाना कि
तुम्हारी जिदंगी में
मुझसे भी जरुरी
बहुत सारे लोग है
जिन्हे तुम छोड़ मुझे
नहीं पाना चाहती
तेरे मेरे दरम्यॉं
कुछ तो है तेरे मेरे
दरम्यॉं जो हम कह
नही पाते और तुम
समझ नहीं पाती
या समझ कर भी
समझना नहीं चाहती
एक अन्जाना सा रिश्ता
एक नाजुक सा बंधन
गर समझ जाती तुम
तो मोहब्बत की तासीर
से बच नहीं पाती
ये कैसी तिश्नगी है
क्या कहु तुमसे
तसब्बुर में भी तेरे बगैर
मैं रह नहीं पाता
जी रहे है नदी के दो
किनारों की तरह
जो साथ तो चलते हैं
मगर एक-दूसरे से
कभी मिल नहीं पाते
कुछ तो है तेरे मेरे दरम्यॉं
जो मैं कह नही पाता
और तुम समझ नहीं पाती
सुबह की लालिमा
उसको देखता हूं
तो लगता है यूं जैसे
सुबह की लालिमा लिए
आसमां की क्षितिज पर
एक तारा टिमटिमा रहा हो
उसकी खामोश निगाहें
कुछ कहना चाहती है
मुझसे होठों पर है
ढेर सारी बातें फिर भी
न जाने क्यूं चुप है
हंसती है वो तो
चमन में फूल खिलते हैं
बात करती है तो लगता है
दूर कहीं झरने बहते हैं
उसकी शोख और चंचल
अदाएं मुझको दिवाना बनाती है
उसकी सादगी हर पल
एक नया संगीत सुनाती है
इतना तो पता है कि
उसको भी मुझसे प्यार है
कभी तो नज़र उठेगी मेरी तरफ,
उस वक्त का इन्तजार है।
गुलाबी गालों की रंगत
आओ मेरे साथ
तुम्हें लेकर चलता हूं मैं
सपनों से भी आगे
एक बिलकुल नई दुनिया में
जहां तेरा प्यार फैला है
आसमां की तरह
हवाओं की जगह फैली है
तेरे जिस्म की
भीनी-भीनी सी खुश्बू
आओ मेरे साथ मैं
तुम्हें लेकर चलता हूं
मैं सपनों से भी आगे
एक बिलकुल नई दुनिया में
जहां बादलों की जगह
लहरा रही है तेरी जुल्फें
तेरी आंखों जैसी गहराई है
समन्दर के फूलों में
चटख रही है तेरे सुर्ख
गुलाबी गालों की रंगत
तेरी पायल की रूनझुन
आओ मेरे साथ
तुम्हें लेकर चलता हूं मैं
सपनों से भी आगे
एक बिलकुल नई दुनिया में
जहां दिन शुरू होता है
तेरी एक अंगड़ाई से
पलकों की जुिम्बश से
जहां बिखर जाती है शाम
पंछियों ने सीखा है
गाना तेरी पायल
की रूनझुन से
पेड़ों ने फैला रखा है
जहां तेरे आंचल की छांव
आओ मेरे साथ
तुम्हें लेकर चलता हूं मैं
सपनों से भी आगे
एक बिलकुल नई दुनिया में
कोई भी रिश्ता टूटता नहीं
कुछ भी व्यर्थ
नहीं होता " यंहा "
कोई भी रिश्ता
टूटता नहीं " यंहा "
रिश्ता या तो जीता
है " यंहा " या मर जाता है
पर रिश्ता टूटता नहीं
चाहे बातें बंद हो जाए
चाहे मुलाकातें बंद हो जाए
या एक नज़र देखना भी
पर रिश्ते हमेशा
बने रहते है जीते हुए
आमने सामने और
मरने के बाद
मन में - स्मृति में - यादो में
पर कुछ भी व्यर्थ
नहीं होता " यंहा "
अनन्य भाव
हर बार जब
होता हु नाराज़ मैं
तुम झुकती हो
फिर संभालती हो
अपना आँचल,
देखती मेरी ओर,
भर आँखो मे
अनन्य भाव,
तब मैं सोचता ,
अब शायद
तुम उठाओगी
प्रेम पुष्प और
लगा लोगी
अपने सीने से,
तुम दोगी हवा
अपने आँचल की,
मन मे जलती
प्रेम चिन्गारी को
बना दोगी ज्वाला,
और फिर
कर दोगी शांत भर
आलिंगन मे मुझे ,
पर हर बार ही
कुचल कर मेरे
अरमानो को चल
देती हो अपने घर की ओर
विरह में अकेला
प्रेम है वो
जो प्रेमी के लिए
जलता है
प्रेम है वो
जो प्रेमी के लिए
जलता है
विरह में अकेला
जानते हुए की
वो चाहे तो ये
विरह अगले पल ही
मिलन में तब्दील
हो विरह की अग्नि
को मिलन की
ठंडी फुहार में
बदल सकती है
जब जानते हुए भी
वो रहता है
चाहता है
उसे यु जैसे
मरने वाला कोई
ज़िन्दगी चाहता हो
वैसे हम तुम्हे
चाहते है वैसे
फूल को मुस्काते हुए
तुम आयी
आकर चली गयी
कुछ कहा भी नही तुमने
और न सुना
जो मैने कहा था
उन कुछ पलो मे
सिमट कर रह गया हूँ मै
और मेरी जिन्दगी भी
उन पलो मे देखा है मैने
फूल को मुस्काते हुए
तारीफ सुनकर शर्माते हुए
फिर किसी डर से घबराते हुए
मन को आकाश मे घूमते
सपनो को बनते और
टूट जाते हुए
वैसे ही जैसे तुमने
किया आयी और
चली भी गयी
सही अर्थ प्रेम का
उन पलो से सीखा है मैने
सही अर्थ प्रेम का
परिभाषा जीवन की
और मजबूरिया इंसान की
जो रोकती है हमे
वो करने से जो हम चाहते है
उसे अपनाने से
जिसे हम चाहते है
वो पल
भूलाये नही भूलते
एक पल को भी नही हटता
वो दृश्य आँखो से
वो अपनी मुलाकात
जो आखिरी बन गयी
पर तुम ना छोड़ सकी
उन्हें मुझे अपनाने के लिए
शायद तुमने कभी मुझसे
प्यार किया की नहीं
Friday, 28 April 2017
सवालो की तरह
ज़िंदगी रोज़ गुजरती है
सवालो की तरह
हर बात का दू मैं जवाब
यह ज़रूरी तो नही ....
कर जाते हैं चाहने वाले
भी कभी कभी बेवफ़ाई
मैं भी कर जाऊ
तुझसे कुछ ऐसा
यह ज़रूरी तो नही
किस तरह मुकम्मल
हो रहा है ज़िंदगी का सफ़र
और कितना पाया है
मैंने दर्द तुम्हे बता दू
यह ज़रूरी तो नही
दिखता हु अपने चेहरे पर
हँसी हर वक़्त मैं तुम्हे
पर इसके पीछे छिपी
उदासी भी दिखा दू
यह ज़रूरी तो नही
इस तरह तो मैं कभी
कमज़ोर ना था ज़िंदगी में
पर तेरे कंधो पर
अपना सिर रख के
रो दे यह ज़रूरी तो नही?
सवालो की तरह
हर बात का दू मैं जवाब
यह ज़रूरी तो नही ....
कर जाते हैं चाहने वाले
भी कभी कभी बेवफ़ाई
मैं भी कर जाऊ
तुझसे कुछ ऐसा
यह ज़रूरी तो नही
किस तरह मुकम्मल
हो रहा है ज़िंदगी का सफ़र
और कितना पाया है
मैंने दर्द तुम्हे बता दू
यह ज़रूरी तो नही
दिखता हु अपने चेहरे पर
हँसी हर वक़्त मैं तुम्हे
पर इसके पीछे छिपी
उदासी भी दिखा दू
यह ज़रूरी तो नही
इस तरह तो मैं कभी
कमज़ोर ना था ज़िंदगी में
पर तेरे कंधो पर
अपना सिर रख के
रो दे यह ज़रूरी तो नही?
मेरे एहसास
ओ मेरे प्यार के हमराही ......
मुझे अपनी पलको में
बिठा के वहाँ ले चल
जहाँ खिलते हैं
मोहब्बत के फूल
गीतो से तू
अपनी नज़रो में
बसा कर वहाँ ले चल
जो महक रहा है
तेरा दामन
जिन पलो की ख़ुश्बू से
उन पलो में
एक बार फिर डुबो कर
मुझे वहाँ ले चल.........
जहाँ देखे थे
हमने दो जहान मिलते हुए
उस साँझ के आँचल तले
एक आस का दीप जला कर
बस एक बार मुझे वहाँ ले चल
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