Friday, 31 January 2020

चिरैया !


चिरैया !

ये जानने की क्या 
जरुरत है कि एक 
चिरैया अभी अभी 
जो उड़कर गयी है !
अपना उजड़ा घौंसला 
यही यूँ ही क्यों छोड़कर !
क्योंकि वो अच्छी से 
जानती है कोई कितना 
भी उजाड़ दे उसका ये 
घरौंदा वो नए घरौंदे 
की नीव की खातिर ही 
तो लेने गयी है ! 
कुछ नए नए तिनके 
नए घोसले के नव 
निर्माण के लिए !
तब ही तो वो लौटती है 
पहले से कहीं ज्यादा 
और दृढ़ मज़बूती से !
शायद ये उसका धर्म है 
जिसे निभाती है वो  
चिरैया सदा समर्पण से !  

दो डबडबाई ऑंखें !


दो डबडबाई ऑंखें !

दूर-दूर तक विस्तारित 
ये रेगिस्तान पल-पल 
निरंतर फैलता रहता है  
और मैं उतना ही इसमें 
जल कर सजल होता हूँ 
मैं जो एक मात्र देह हूँ 
और पानी मेरा सपना है  
मैं जब भी सपना देखता हूँ 
तो डबडबाई वो तुम्हारी दोनों 
सजल ऑंखें दिख जाती है   
वो तुम्हारी दोनों ऑंखें जो 
कर देती है इस देह को फिर 
एक पल में पानी पानी !    

Thursday, 30 January 2020

अथाह की थाह !


अथाह की थाह !

नदियों को मिलना होता है ,
अपने उस अथाह सागर से ;
समा कर उस में बन जाती है , 
वो नदी भी फिर अथाह सागर ;
फिर उसका प्रवाह भी होता है ,
उसी दिशा में जिस दिशा में ;
उसका वो विस्तार बहता है ,
तब ही तो वो उसके समीप ;
आकर भी खुद को बाँट लेती है ,
स्वयं को कितनी ही धाराओं में ;
थाह अथाह की लेना चाहती है ,
शायद पहले सम्पूर्ण विलय के !   

Wednesday, 29 January 2020

तुम्हारा स्पर्श !


तुम्हारा स्पर्श !

दौड़ती भागती उम्र के 
व्यस्ततम पलों में भी , 
एक तुम्हारा ख़्याल 
एक तुम्हारा ज़िक्र ;
एक तुम्हारी फ़िक्र
मुझ में तरुणाई का 
संचार करती है !
एक तीव्र इक्षा मेरे 
इस मन में उठती है !
काश तुम होती अभी 
मेरे साथ अपनी बेशुमार 
चाहत के साथ तो इस 
तपते जलते प्रखर के 
चारों ओर फ़ैल जाती 
एक ठंडी बयार और 
उस से हो कर आने 
लगते सुगन्धित ठंडे 
ठंडे छींटे आह्ह कितनी 
पाक और रूहानी है !
ये तुम्हारी याद और 
जीवन देता हुआ है ; 
ये तुम्हारा स्पर्श !     

Tuesday, 28 January 2020

रूह का रुदन !

रूह का रुदन !

तन्हाईयों की चादर पर 
कोरी चांदनी छिटकी है ;
सन्नाटें में मेरे दिल की 
तमाम धड़कनें कैद है ;
मर्म में डूबे "प्रखर" ने  
ये प्रेम कविता लिखी है ; 
झुलसती ख्वाहिशों की 
अब मुँदती हुई पलकें है ;
प्रखर की सांसों की तमाम 
हलचलें जैसे नाकाम सी है ; 
पिघलती रूह का करुण 
व ख़ामोश ये रुदन है ;
ये सब तुम्हारी ही प्रतीक्षा  
में हिचकी बनकर अटके है ; 
तुम आकर इन सब को अपनी 
सांसों के क़र्ज़ से निज़ाद दिला दो ; 
यूँ क़र्ज़ तले इन सांसों के 
जीना भी कोई जीना है ! 

Sunday, 26 January 2020

मौन ! !


मौन ! !

अखर जाता है , 
अक्सर मौन हो जाना 
टीस दर्द और कसक 
करती तो रहती है ; 
व्याकुल पर कितना 
कुछ चलता रहता है ; 
इस मन के भीतर 
पर खालीपन अंतस 
का जाने क्यों खुद को 
भी अक्सर जाता है ;
क्यों अखर ! 


मेरे जीने का सहारा !


मेरे जीने का सहारा !

मेरे पास ये जो कुछ भी है , 
वो सब एक बस तुम्हारा ही  
तो दिया हुआ है ;
ये दर्द ये कसक और ये गुस्सा 
हो या हो फिर ढेरों नाराजगियाँ 
वो सब एक बस तुम्हारा ही  
तो दिया हुआ है ;
ये पल पल की बेचैनियां और 
दुनिया से उकताया ये मेरा 
उद्वेलित मन भी तो एक बस 
तुम्हारा ही तो दिया हुआ है ;
रातों में जगती हुई मेरी ऑंखें
तन्हाई में मचलता हुआ मन  
विरह में तड़पती मैं और मेरे 
ये टपकते आंसूं ये सब एक बस 
तुम्हारा ही तो दिया हुआ है ;
ऊपर से बैचैन ये मेरा तन और  
सीने में उठता ये दर्द ये सब एक 
बस तुम्हारा ही तो दिया हुआ है ;
ये आँखों की जलन और प्रेम विरह 
पर लिखी कविता ये सब कुछ जो है ,
एक मेरे जीने का सहारा ये सब भी 
तो बस एक तुम्हारा ही दिया तो है !

Friday, 24 January 2020

अधूरापन !


अधूरापन !

फूल तो जैसे मुरझा जाते है 
सूरज भी जैसे बुझ जाता है 
चिड़ियाँ भी हो जाती है गूंगी 
चारों ओर सन्नाटा फ़ैल जाता है 
सारी दिशाएँ सुनी हो जाती है
रंगों से भरा ये संसार भी जैसे 
फीका फीका सा हो जाता है 
तुम्हारे दूर जाने के बाद तो  
जैसे आती ही नहीं है बहार
तुम्हारे पास आने से जैसे 
फ़ैल जाती है हवाओं में 
महक और गुनगुना उठती है
पेड़ों की पत्तियाँ और लगने 
लगता है सारा का संसार अपना 
जगता है मन में अपने अस्तित्व 
के पूर्णताः का एहसास और लेकिन   
फिर एक बार अधूरा हो जाता हूँ 
एक बस तुम्हारे दूर जाने के बाद !  

धड़कनों के जुगनू !

धड़कनों के जुगनू !

मेरी धड़कनों के ये जुगनू  
कहाँ सब्र से काम लेते है
आठों पहर ये खुद से 
ही उलझते रहते है 
एक तेरे ही तो किस्से 
उनके पास होते है
लम्हा लम्हा तुम को 
ही दोहराना तो काम 
उल्फत का होता है 
हवाओं के परों पर 
पैगाम लिखना मगर 
मेरा काम होता है 
कभी शिकवे तो कभी 
शिकायत करना एक 
बस उसका काम होता है 
मेरी धड़कनों के ये जुगनू  
कहाँ सब्र से काम लेते है !

Thursday, 23 January 2020

मन परिंदा है !


मन परिंदा है !

मेरा मन एक परिंदा है 
जब तुझसे रूठता है 
तो वो उड़ जाता है 
और उड़ता ही जाता है 
फिर दूर कहीं जाकर 
वो रुकता है ठहरता है 
फिर अचानक रुकता है 
सोचकर व्याकुल होता है   
फिर आकुल हो उठता है
उसका मन नहीं मानता 
तो वो लौट आता है 
तेरी ही उस शाख पर 
जिस पर तुमने अपने  
विश्वास के तिनको से 
से एक घरौंदा बुना है 
उसमे आकर बैठ जाता है 
मेरा मन एक परिंदा है !

Tuesday, 21 January 2020

सकूँ की तलाश !


सकूँ की तलाश !

दिन भर की भाग दौड़ 
के बाद जब घर लौटता हूँ ! 
तब तकरीबन सब कुछ घर 
में व्यवस्थित ही मिलता है !
हाँ रात ठंडी ठंडी होती है पर
बिस्तर मेरा नर्म नर्म होता है ! 
फिर भी रात मेरी पूरी की पूरी  
जैसे करवटों में ही गुजरती है !
जाने क्यों नींद आती ही नहीं 
शायद सकूँ को मैं खुद ही कहीं ; 
और छोड़ कर के आता हूँ फिर 
यहाँ आकर नींद को तलाशता हूँ !   

प्रीत की प्रकृति !


प्रीत की प्रकृति !

प्रिय चलो आज तुम्हे दिखाऊं
हमारे प्रीत से सजी वो प्रकृति 
ये कलकल बहती नदी 
और शीतल सुसज्जित धरा 
उस दूर गगन के चाँद सितारे 
और कब से हमारी राह तकते 
खड़े वो ऊँचे ऊँचे पहाड़ व पर्वत  
वो ही तो अपनी प्रीत के प्रहरी है
निशा सुहानी जो हमें निहारे 
लेता चाँद सांसें गहरी गहरी 
तरुवर भी साक्ष्य बने है देखो 
इन नयनाभिराम दृश्यों को  
मिलन की बेला बीत ना जाय 
आकर मेरे इस जीवन में तुम 
इसे अब सुखांत बनाओ !       

Monday, 20 January 2020

प्रेम का भूगोल !


प्रेम का भूगोल !

मुझे गणित नहीं आती है 
रिश्तों में जोड़ और घटाव 
स्नेह में लाभ और हानि 
मैंने सीखा ही नहीं है !
हां मुझे प्रेम का भूगोल 
जरूर बखूबी आता है ! 
शीत में धुप को प्रेम  
गर्मी में छांव को स्नेह 
कहना ही मैंने सीखा है !
तुम जुड़ी हो मेरी सांसों 
से जब तक तुम पर प्रेम 
कविता यूँ ही रचता रहूँगा 
मैं तब तक !
तुम्हारे आने की कुँवारी 
आस को यूँ ही गले लगाए 
तुम्हे यही खड़ा मिलूंगा 
जीवन प्रयन्त तक !

Sunday, 19 January 2020

यादें तेरी !


यादें तेरी !

यादें तेरी अश्रुविहल है 
कितनी असहाय कर 
जाती है ! 
मेरी इन आँखों में कितनी 
ही बारिशों का घर बना 
जाती है !
गूंज गूंज कर ये मौन
तुझ को पुकारने लग 
जाता है ! 
व्यथित हो कर सन्नाटें 
भी मेरे सुर में सुर मिलाने 
लग जाते है !
प्रतीक्षा के क्षण भी अधैर्य 
होकर टूटती उखड़ती 
सांसों से भी !
दुआओं में तेरे ही नाम 
की रट लगाने लग 
जाते है !

Saturday, 18 January 2020

ख़्वाहिशों के प्रतिबिम्ब !

ख़्वाहिशों के प्रतिबिम्ब !

काग़ज़ की सतह पर बैठ
कर लफ़्ज़ों ने ज़ज़्बातों से 
तड़पने की दरख़्वास्त की है !
विचलित मन ने बेबस 
होकर प्रतीक्षा की बिखरी 
किरचों को समेट कर बीते 
लम्हों से कुछ गुफ़्तगू की है !
यादों के गलियारों से निकल 
कर ख़्वाहिशों के अधूरे 
प्रतिबिंबों ने रूसवा हो कर 
उपहास की बरसात की है !
फिर नहाई शाम सौंदर्य को
दरकिनार कर उड़ते धूल 
के चंचल ग़ुबार ने दायरों 
को लांघ दिन में रात की !

Friday, 17 January 2020

हंसी मुलाकात !


हंसी मुलाकात !

बस अब ऐसी झूम 
के बरसात हो , फिर 
दिलकश हसीं तेरी 
मेरी मुलाकात हो !
इस कदर मिले तड़प 
कर दो दिल , कि धड़कनो
पर ना कोई अब उनका 
इख्तयार हो !
एक एक बून्द समर्पण 
कि से सजी सारी ये 
कायनात हो !
आगोश में फिर मेरी 
सिर्फ एक वो ही 
पाक-ए-हयात हो !
फिर उन खामोश लबों की 
दास्तान वो रब भी सुने ,
निगाहों से प्रेम के जल 
की झमझम बरसात हो !

Thursday, 16 January 2020

विद्रोह !


विद्रोह !

विद्रोह कर आँसुओं ने 
नयनों को भिगोने का 
संकल्प लिया !
सिसकियाँ ने भी फिर  
कंठ को अवरूद्ध करने का 
फैसला किया ! 
स्वरों का मार्गदर्शन भी 
शब्दों ने ना करने का मन 
बना लिया !
भाव भंगिमाओं ने भी 
रूठ कर कहीं लुप्त होने 
का फैसला कर लिया !
अनुभूतियों के स्पंदनों ने 
भी तपस्या में विलीन होने
का निश्चय कर लिया !
विरह में दूरियों का एहसास 
हमारी इन्द्रियों में भी विद्रोह
भर देता है !

Wednesday, 15 January 2020

मकर सक्रांति !


मकर सक्रांति !

सूर्य ही अंधकार का नाशक है 
सूर्य ही प्रकाश का कारक है
सूर्य ही सृष्टि के सृजन की धुरी है   
सूर्य ही जमीं पर जीवन का आधार है 
सूर्य ही एकमात्र दृश्यमान देव है 
सूर्य ही देव शक्तियों का प्रतीक है
सूर्य से ही काल का निर्धारण होता है 
सूर्य से ही अयण ऋतू मास व समय 
कि कल्पना और गणना भी होती है 
सूर्य सुसंकृत संस्कृति का घोतक है 
सूर्य की ही हम सभी संताने है        
सूर्य ही अंधकार का नाशक है 
सूर्य ही प्रकाश का कारक है !

Tuesday, 14 January 2020

प्रेम की जरुरत !


प्रेम की जरुरत !

अभी उसमें कसमसाहट भी है 
और ना मानने की जिद्द भी है 
मूल्य परंपरा संस्कार के बारे 
वो अभी सोचती भी बहुत है 
अभी उसने जाना ही कहाँ है 
अभी उसने समझा ही नहीं है 
प्रेम की जरुरत को तब ही तो 
अब तक उसने रेगिस्तान में 
नहरों से आते पानी को ही पीया है
अब तक उसने गौमुख से आती 
धार से अपनी प्यास बुझाई नहीं है
ये अचकचाहट और उसका यूँ  बार 
बार चौंक उठना उसकी मज़बूरी नहीं है 
ये उसका प्रति रोध भी नहीं है
ये उसके समर्पण से पनपी और 
भावनाओं से जन्मी स्वीकृति है !

Monday, 13 January 2020

भक्त और भगवान !


भक्त और भगवान !

सब कुछ है तुझ में वैसा जैसा होता है ; 
एक भक्त के लिए उस के ईश में !
जिसे देख कभी वो हँसता है ;
तो कभी वो आंसूं बहाता है !
बिना कुछ कहे ही वो सोचता है ; 
कि वो सब कुछ समझते है !
बिना कुछ मांगें ही वो उसे वो सब ; 
दें देंगे जिसकी उसे जरुरत होती है !
ये क्रिया निरंतर यूँ ही चलती रहती है ; 
पर जब उस भक्त का दुःख और दर्द ,
यूँ ही बना रहता है तब वो चित्कारता है ! 
रोता है और खुद को कोसता भी है ;
लेकिन फिर जब वो खुद की भक्ति , 
पर खुद ही प्रश्न चिन्ह लगाता है !
तब वो प्रश्न चिन्ह उस के उस ईश पर 
भी तो खुद-ब-खुद ही लग जाता है !  

Sunday, 12 January 2020

भाव भंगिमा !


भाव भंगिमा ! 

तुम कांपती सर्दी सी 
और मैं पसीने से 
लथपथ ग्रीष्म सा !
लगभग एक दूसरे 
के विपरीत भाव 
भंगिमा है हमारी !
पर एक दूसरे से 
कुछ ना कुछ तो 
चाहते है हम !
तुम्हे मुझसे प्रेम
की गर्माहट चाहिए 
ताकि तुम अपनी 
ठिठुरती देह को 
तपिश दे सको !
मुझे तुमसे शीत 
की वो लहर चाहिए 
ताकि सूखा सकू 
पसीने से लतपथ इस 
ग्रीष्म से देह को !

Saturday, 11 January 2020

रूठा साजन !


रूठा साजन !

सुन तू अपने 
रूठे हुए साजन 
को अब बुला ले !
वो तुझ से रूठकर
अब भी यहीं कहीं  
छुपकर बैठा होगा ! 
वो तो बस उसी 
जिद्द पर ही तो 
अड़ा बैठा होगा !
सुन तू ही सब 
भुला कर अब 
उसे मना ले !
वर्ना तुम दोनों 
कि ये बेक़रार सी  
ज़िन्दगी बे-कार सी  
ना हो जाए !   
ये आज से पहले 
भी तुझे तेरे कई  
बुजुर्गों ने भी कहा 
ही होगा !

Friday, 10 January 2020

प्रेम कविता !


वजह बेशुमार है मेरे पास , 
तुम्हे यूँ ही प्यार करने की ;
हाल-ए-दिल जब जब लिखती हूँ ,
स्याही होती है एक तेरे नाम की ;
जो इत्र लगाती हूँ ख़ुश्बू होती है ,
उस मे बस एक तेरे नाम की ;
जो रत्न पहना है वो झलकता है , 
बिलकुल तुम्हारे चमकते चेहरे सा ; 
जब संवरती हूँ तारीफ होती है ,
एक बस तेरे ही  कोहिनूर की ;
जब लिखती हूँ कविता प्रेम की , 
वाह निकलती है तेरे नाम की ;
अब तुम ही कहो और कितनी वजह ; 
मैं तुम्हे गिनाऊँ तुम्हे प्यार करने की !

Thursday, 9 January 2020

प्रेम के रंग !


प्रेम के रंग !

मेरे शब्दों में बहती 
जो ये प्रीत है वो प्रीत 
तुमने ही तो दी है !
मेरे भावों से जो बनता 
चित्र है वो चित्र भी तो 
तुमने ही दिखाया है ! 
ये भाव ये भंगिमा 
ये राग ये मधुरता 
सब कुछ तो मुझे 
तुम से ही मिली है !
मेरे दिल के कोरे कागज़ 
पर जो ये रंग पीला नीला 
काला लाल और गुलाबी
भरा है ये सारे रंग भी तो 
तुमने ही भरे है ! 

Wednesday, 8 January 2020

हां तुम्हे प्रेम है !


शायद तुम्हे प्रेम है ; 
उन फूलों से जिनकी 
सांसों से तुम्हे मेरी 
महक मिलती है !
शायद तुम्हे प्रेम है ;
उस एक आईने से 
जिसकी आँखों में 
तुम्हे मैं नज़र आता हूँ !
शायद तुम्हे प्रेम है ;
उस सियाह रात से 
जिसकी ख़ामोशी में 
तुम मेरी आवाज़ अपनी 
देह पर लिखती हो !
शायद तुम्हे प्रेम है ;
उस एक खुदा से 
जिसकी इनायत से 
तुमने मुझे पाया है !
शायद नहीं अब तो 
यकीन हो गया है मुझे 
तुम्हे बेइंतेहा प्रेम 
हो गया है मुझ से !
तब ही तो मेरी एक 
आहट भंग कर देती है 
तुम्हारी सम्पूर्ण साधना !
मैं इसी यक़ीं पर 
रोज मांजता हूँ 
अपनी ये काया !
और रोज अपनी एक 
नई छवि बनाता हूँ
हर वो रूप धरता हूँ 
जो तुम्हे भाता है !     

Tuesday, 7 January 2020

नियत और नियति !


नियत और नियति !

कभी सिहरता 
कभी महकता 
कभी तपता 
कभी भींगता 
कभी स्वतः यूँ ही 
पिघलता और मैं 
यूँ भी आनंदित था 
पर विचलित ना था 
जानता था कि ये  
तुम्हारी नियत न थी 
नियति के चक्र में 
तुम भी बंधी थी
पर दुखता ये था 
कि तुम ये भूल गयी थी  
कि तुम्हारे चक्र में मैं 
भी तो बंधा था !

Monday, 6 January 2020

उदासी का सबब !


उदासी का सबब !

मैं किस किस को 
बताती अपनी इस 
उदासी का सबब !
मैं किस किस से 
पूछती एक ऐसी 
उदासी के बारे जिस  
में किसी तरह की कोई 
बेचैनी ही ना थी !
हर तरफ फ़ैली इस 
बिना वजह की उदासी 
भी तो एक तरह की 
रूमानी ही होती है ! 
मैं बस उसे एक टक 
देखती रही वजहों पर 
उस से बेवज़ह की 
बहस क्या करती ! 
कभी कभी बेवजह 
कुछ करने में भी इस 
दिल को बड़ा ही सकूँ 
मिलता है !

Sunday, 5 January 2020

बेनाम रिश्ता !


बेनाम रिश्ता !

तेरा मेरा ये रिश्ता 
लोगों के लिए बेनाम है
पर हम दोनों ने इस  
हमारे रिश्ते को सदा 
ही और सभी रिश्तोँ से 
ऊपर ही तो रखा है    
ये बात हम दोनों ही 
अच्छी तरह से जानते है 
पर हम दोनों के बीच 
ये जो इश्क़ है ना    
इसके ना होने का 
दिखावा भी तो 
हम दोनों ही करते है  
क्योंकि हम दोनों तो 
एक दूसरे को एक 
दूसरे की धड़कनो 
से ही तो जानते है 
शायद इसलिए ही 
तुमने मुझे इस रिश्ते 
को अब तक कोई नाम 
नहीं देने दिया है ! 

Saturday, 4 January 2020

प्रेम का सागर !


प्रेम का सागर !

मैं जमा हुआ था ,
पर्वत हिमालय सा 
मेरे सीने में बर्फ ही 
बर्फ जमी हुई थी ! 
ना कोई सरगोशी थी , 
ना कोई हलचल थी ,
सब कुछ शांत स्थिर 
और अविचल था !
फिर तुम आयी और  
स्पर्श कर मेरे मन को 
उसमे अपने प्रेम की 
ऊष्मा व्याप्त कर गयी थी !
बूंद बन पिघल पड़ा था ,
बादल बन बरस पड़ा था , 
फिर ना जाने कब मैं ,
तुम्हारे ही प्रेम का सागर 
बन गया था !

Friday, 3 January 2020

ये तो प्रेम है !


ये तो प्रेम है !

भूख होती तो उसे 
अपने उदर में ही 
कहीं छुपा लेती मैं  
पर ये तो प्रेम है 
इसको दबाऊँ भी 
तो कहाँ दबाऊँ मैं  
इसको छुपाऊँ भी 
तो कहाँ छुपाऊँ मैं  
फूलों की सुगंध सा है 
पाखी की चहक सा है 
जब भी कहीं तुम्हारा 
जिक्र होता है खुद-ब-खुद 
महकता है चहकता है 
इस की महक को छुपाऊँ 
भी तो छुपाऊँ कहाँ मैं   
इस की चहक को दबाऊँ 
भी तो दबाऊँ कहाँ मैं  
भूख होती तो उसे 
फिर भी अपने उदर 
में छुपा लेती मैं !

Wednesday, 1 January 2020

नव-नूतन प्रेम !


नव-नूतन प्रेम !
  
मैं प्रेम हूँ 
अपनी प्रीत का 
नव नूतन वर्ष का 
यह पहला दिन मैं अपनी 
प्रीत के नाम करता हूँ !

ठंड से ठिठुरती ये 
मेरी ज़िन्दगी को मैं 
अपनी प्रीत का सानिध्य 
प्रदान करता हूँ !

सूरज जो अभी अभी  
गर्म मुलायम धूप का 
एक सबसे चमकीला 
टुकड़ा मेरी पीठ पर डाल 
कर गया है !

उस से उपजी समस्त 
उर्मा को भी मैं आज 
अपनी उसी प्रीत के 
नाम करता हूँ !

वो उसे खुद में कर 
के जज्ब करेगी उसे 
पोषित करने को हमदोनों  
के हम का विस्तार !

मैं प्रेम हूँ  
जिस प्रीत का उसकी 
ये लिखित परिभाषा भी  
मैं आज उसी मेरी प्रीत  
के नाम करता हूँ ।

प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !