तुझे अपना बनाने का जो ख्वाब है ,
उसे अपनी आँखों में सजाये बैठा है वो ;
अपने हांथों की लकीरों में तेरे ही ,
नाम की एक लकीर बना रहा है वो ;
तुझे खोने के डर से ख़ौफ़ज़दा है वो ,
अश्क़ों को अपनी पलकों में सजाये बैठा है वो ;
बिखरे हुए ख़्वाबों के टुकड़े बटोरकर ,
नए ख़्वाबों को ढाढ़स बंधा रहा है वो ;
सिसकती अपनी सांसों को सीने में दबाये ,
नई उम्मीदों पर महल खड़ा कर रहा है वो ;
अपने ज़ज़्बातों से कुछ इस तरह लड़ रहा है वो ;
कि किस्तों में हंस रहा है किस्तों में रो रहा है वो !