Thursday, 31 October 2019

प्रेम !


प्रेम !

हां इन्हीं दहकते 
अंगारों के बीच 
मिलता है ; 
आश्रय प्रेम को 
जैसे इसका अर्थ 
भटकता है ;
निर्जन वनों में
ठीक वैसे ही प्रेम  
भी आता है ; 
और आकर जैसे 
ठहर जाता है ; 
वप प्रेम अद्भुत सा 
हमारी कल्पनाओं 
से भी लम्बा और 
ऊंचा भी है ; 
पर वही प्रेम ढूंढ 
ही लेता है ; 
अपना आश्रय
इन्ही दहकते 
अंगारो के बीच 
ही कंही !

Wednesday, 30 October 2019

सुरमयी एहसास !


सुरमयी एहसास !

तू ना देख यूँ फिर मुझे
घूरकर अपनी निगाहों से ;
कि मेरा इश्क़ कंही अपनी
हद्द से गुजर ना जाए ;
मेरे ज़ज़्बात कंही छलक 
कर बाहर ना आ जाये ; 
कि तू रहने दे भ्रम ये ज़िंदा 
कि तू मेरी रूह-ए-गहराई में 
दूर तलक है शामिल
कि रहने दे यु ही मुझे खोया
हुआ तू की तेरी पलकों के
सायों को छूते ही मुझे 
ये मेरे सुरमयी एहसास
कंही अब बिखर ना जाए
की अब और ना यु दूर
रहकर मुझे तू तड़पा कि
ये मेरा इश्क़ कंही अब
सारी हद्दों से गुजर ना जाये
तू ना देख यूँ फिर मुझे
घूरकर अपनी निगाहों से !

Tuesday, 29 October 2019

दिपावली को सार्थक बनाते हैं ।


आओ हम सब 
मिलकर
इस दिपावली को 
सार्थक बनाते हैं ;
गरीबों से मोल 
भाव करना
बंद करते हैं ;
खुशियों के लिए 
देश का द्वार
खोलते हैं ;
भुखमरी को इस 
देश से बाहर का 
रास्ता दिखाते हैं ;
कुछ इस तरह
 हम सब मिलकर
इस दिपावली को 
सार्थक बनाते हैं ।

Monday, 28 October 2019

उस रोज़ 'दिवाली' होती है !



उस रोज़ 'दिवाली' होती है !

जब मन में हो मौज बहारों की
चमक आये चमकते सितारों की,
जब ख़ुशियों के शुभ घेरे घेरते हों
तन्हाई में भी तेरी यादों के मेले हों,
उर में आनंद की आभा बिखरती है
मन में उजियारे की रोली फैलती है,

उस रोज़ 'दिवाली' होती है ;

जब प्रेम-प्रीत के डीप जलते हों
सपने सबके जब सच होते हों,
मन में उमड़े मधुरता भावों की
और लहके फ़सलें लाड चावों की,
उत्साह उमंग की आभा होती है

उस रोज़ 'दिवाली' होती है ।

जब प्रेम से प्रीत मिलती हों
दुश्मन भी गले लग जाते हों,
जब किसी से वैर भाव न हो
सब अपने हों कोई ग़ैर न हो,
अपनत्व की आभा फैलती हो;

उस रोज़ 'दिवाली' होती है ।

जब तन-मन-प्राण सज जाएं
सद्स-गुण के बाजे बज जाएं,
महक आये ख़ुशबू ख़ुशियों की
मुस्काएं चंदनिया सुधियों की,
हिय में तृप्ति की आभा फैलती है;

उस रोज़ 'दिवाली' होती है ।

Sunday, 27 October 2019

आओ हम दीप जलाएं !


आओ हम दीप जलाएं !

जंहा-जंहा है तम गहराया
वंहा-वंहा हम दीप जलाएं !

हर ओर है तम छाया
इतने दीप कंहा से लाएं ;
जंहा-जंहा है तम गहराया
वंहा-वंहा हम दीप जलाएं !

एक भाव के आंगन में
एक आस की दहलीज़ पर ;
एक निज हिय के द्वार पर
एक सत्य के सिंघासन पर !

तुम बनो माटी दीपक की
मैं उसकी बाती बन जाऊँ ;
जंहा-जंहा है तम गहराया
वंहा-वंहा हम दीप जलाएं !

एक देह के तहखाने में भी
स्वप्निल तारों की छत पर भी ;
एक प्यार की पगडण्डी पर भी
खुले विचारों के मत पर भी !

जले हम-तुम फिर बिन बुझे
तेल बन तिल-तिल जल जाए ;
जंहा-जंहा है तम गहराया
वंहा-वंहा हम दीप जलाएं !

एक यारों की बैठक में
एक ईमान की राहों पर ;
एक नयी सोच की खिड़की पर
एक तरह तरह की हंसी के चौराहे पर !

दीप की लौ जो कभी सहमे
तुफानो से उसे हम तुम बचाएं ;
जंहा-जंहा है तम गहराया
वंहा-वंहा हम दीप जलाएं !

बचपन की गलियों में भी
और यादों के मेले में भी ;
अनुभव की तिजोरी में भी
और दौड़ती उम्र के बाड़े में भी !

बाती की भी अपनी सीमा है
चलो उसकी भी उम्र बढ़ाते है ;
बाती को बाती से जोड़ देते है 
जंहा-जंहा है तम गहराया
वंहा-वंहा हम दीप जलाएं !

आज हार है निश्चित तम की
जग में ये आस जगा आएं ;
सुबह का सूरज जब तक आये
तब तक प्रकाश के प्रहरी बन जाए !

जंहा-जंहा है तम गहराया
वंहा-वंहा हम दीप जलाएं !

Saturday, 26 October 2019

तुम्हारे पास चला आता हूँ !


तुम्हारे पास चला आता  हूँ !

तुमसे दूर जाने की बहुत सी
वजहें थी मेरे पास और बहुत
सी वजहें आज भी है मेरे पास ;

पर जब भी पहले प्यार का जिक्र
होता है , तब तुम मुझे इस कदर 
याद आती हो कि सब-कुछ भुलाकर 
मैं दौड़ा-दौड़ा तुम्हारे पास चला 
आता हूँ ;

तुमसे दूर जाने की बहुत सी
वजहें थी मेरे पास और बहुत
सी वजहें आज भी है मेरे पास ;

पर जब भी पहले प्यार पर लिखी
लिखी खुद कि कविता अकेले में
गुनगुनाता हूँ , मैं तब तुम मुझे इस 
कदर याद आती हो कि सब-कुछ 
भुलाकर मैं दौड़ा-दौड़ा तुम्हारे पास 
चला आता हूँ ;

तुमसे दूर जाने की बहुत सी
वजहें थी मेरे पास और बहुत
सी वजहें आज भी है मेरे पास;

पर जब जब निहारा खुद को
आईने में मैंने तब-तब मेरी आँखों 
में छाया तुम्हारा वज़ूद देखकर , तुम 
मुझे इस कदर याद आती हो की 
सब-कुछ भुलाकर मैं दौड़ा-दौड़ा
तुम्हारे पास चला आता हूँ ;

तुमसे दूर जाने की बहुत सी
वजहें थी मेरे पास और बहुत
सी वजहें आज भी है मेरे पास ;

पर जब भी सोचा तुम्हारी वीरानियों 
के बारे में तब तुम मुझे इस कदर याद 
आती हो की सब-कुछ भुलाकर मैं 
दौड़ा-दौड़ा तुम्हारे पास चला 
आता हूँ !

Friday, 25 October 2019

बस यूँ ही !


बस यूँ ही !

कभी रतजगे करता है वो 
पूछती हूं...उससे मैं 
बंजर हुई नींदों की वजह
कहता है...बस यूं ही...
कभी बे-साख्ता कविता 
पढता है वो ..कभी ग़जलें 
गाता है वो ... पूछती हूं..
हवाओं पे सज़दे की वजह 
कहता है... बस यूं ही...
कभी बस मेरा दीदार किया 
जाता है वो ...कभी ख्वाबों में...
कभी तस्वीरों में...पूछती हूं..
खोयी-खोयी खामोशी..
का सबब...फ़िर वही 
कहता है वो ..बस यूं ही...
जो वजह है इन सबकी 
वजह वो ही पूछे तो उसे 
क्या बताया जाये... 
उसे कैसे दोषी ठहराया 
जाए जो सब जानती हो  !  

Thursday, 24 October 2019

मेरा प्रेम !


मेरा प्रेम !

मेरे लिए प्रेम 
नाभि से चलकर  
कंठ तक आकर 
गूंजने वाला "ॐ" है ; 
तुम्हारा प्रेम दस्तावेजों 
में दर्ज तुम्हारे ही अंगूठे 
की छाप सा है ; 
आधी रात का वो पहर 
जो तन की कलाओं का 
पहर होता है ;
तब अक्सर मेरे घर में 
लगे सारे दर्पणों में एक 
तुम्हारी ही तो तस्वीर 
उभर आती है ;
तब जा कर तुम होती 
हो पूर्ण और करती हो 
सारे श्रृंगार धारण ; 
ये जानते हुए की भी 
कि अगले ही पल ये 
सारे श्रृंगार होंगे एक 
सिर्फ मेरे हवाले ;
मेरे लिए प्रेम 
नाभि से चलकर  
कंठ तक आकर 
गूंजने वाला "ॐ" है !

Wednesday, 23 October 2019

प्रेमिकाओं की आँखें !


प्रेमिकाओं की आँखें !

प्रेमिकाओं की आँखें 
अब अँधेरे में भी भय 
नहीं खाती है !
ना ही सूरज की तपती 
किरणों से वो अब 
कुम्हलाती है ;
वो तो सूरज की किरणों 
को अपनी कमर में
लपेट लेती है ; 
और वो नहीं इंतज़ार 
करती किसी और के 
मार्गदर्शन का ;
वो तो बस अपनी चाल
चलती है देखती भी नहीं 
कि उनकी चाल 
सधी हुई भी है ; 
या नहीं बस चारो पहर 
के सांचे में गूंथती है 
अपना तन और गढ़ती है ; 
वो अपना और अपने प्रेम 
भविष्य खुद के हांथो ;
प्रेमिकाओं की आँखें 
अब अँधेरे में भी भय 
नहीं खाती है !

Tuesday, 22 October 2019

मोहब्बत लौट जाती है !


मोहब्बत  लौट जाती !

वो आकर मेरे दर पर
मुझे आवाज़ तो देती है , 
मगर फिर लौट जाती है ;
फिर उसकी याद आती है 
मगर आकर लौट जाती है ;
मेरी आँखों से आँखे मिलते ही 
उसकी ऑंखें नम हो जाती है , 
फिर वो मुझसे अपनी नज़रों 
को चुराती है और लौट जाती है ; 
ज़िन्दगी की ये भाग दौड़ मेरे 
बने बनाये काम बिगाड़ती है ,
फिर वो आकर मेरे काम बनाती है 
और चुपचाप लौट जाती है ;
मुझे चिढ़ाने के खातिर वो 
उस दूर बैठे चाँद के साथ 
अठखेलियाँ तो करती है , 
फिर चांदनी मेरा दर्द बढाती है 
और फिर आकर लौट जाती है ; 
ये मोहब्बत भी कितनी अजीब है 
मेरी शाम के चंद लम्हों को सजाती है , 
और फिर मुझे अकेला छोड़ लौट जाती है !

Sunday, 20 October 2019

तुम सिर्फ मेरी हो !


तुम सिर्फ मेरी हो !

एक बार नहीं
बार बार कहो 
तुम सिर्फ मेरी हो ; 
एक बार नहीं
बार बार इक़रार करो
तुम सिर्फ मेरी हो ;
क्यों खामोश हो 
इज़हार करो कि
तुम सिर्फ मेरी हो ;
मेरी ज़िन्दगी कि 
अँधेरी राहों में रोशनी  
बनकर अब तुम रहो ;
मंज़िल पर मेरी 
अपनी सबसे सुन्दर 
तस्वीर लगाओ तुम ; 
तुम सच्चाई की 
सच्ची मूरत हो 
उसी सच्चाई से 
बार बार कहो तुम कि  
तुम सिर्फ मेरी हो ;
एक बार नहीं
बार बार कहो 
तुम सिर्फ मेरी हो !

ए मोहब्बत !


ए मोहब्बत !

ए मोहब्बत तू सदा 
बस इश्क़ के साथ रहे !
एक यही आरज़ू है सारे 
के सारे आशिक़ों की !
दिन हो या रात तू बस 
उसके ही साथ रहे !
वो तेरे संग संग चले 
वो तेरा ही हमसफ़र रहे !
ना तेरे बिना दिन ही ढले  
ना तेरे बिना रात ही हो ! 
तू बन कर उसकी ज़िन्दगी  
सदा इश्क़ के ही साथ रहे !
यही एक दुआ है सारे 
के सारे आशिक़ों की !
बस ये एक दुआ तुम 
दोनों के साथ सदा रहे !     
ए मोहब्बत तू सदा 
बस इश्क़ के साथ रहे !

Saturday, 19 October 2019

चाहतों का गीत !


चाहतों का गीत !

मुझे बतलाओ तुम 
क्या मैंने स्वप्न में भी 
तुम्हारे अलावा किसी 
ओर को देखा है ;
आज तक मैंने सिर्फ 
तुम्हारी चाहतों का ही 
तो गीत गया है ;
अब तक मैंने अपनी 
प्यास को सुलाकर ही 
तो अपना जीवन जिया है ;
अब तक मैंने स्वर्ग से सूंदर 
एक संसार बसाने का ही तो 
एक सपना देखा है ;
जिसमे एक तुझे ही तो 
ईश समझकर पूजा है 
उसकी हर एक दिशा को 
तेरी झंकार से ही तो 
सजाया है ;
अब तक मैंने अपने यौवन 
की लहर में एक तुझे ही तो
नहलाया है ;
सिमटती बिखरती एक तुझ
को ही तो अपनी प्रवाह 
बनाया है ;   
अब एक तुझे ही तो बड़े 
मान मनुहार से अपनी 
चांदनी में नहलाया है ;
मुझे बतलाओ तुम 
क्या मैंने स्वप्न में भी 
तुम्हारे अलावा किसी 
ओर को देखा है !

Friday, 18 October 2019

करवाचौथ का चाँद !


करवाचौथ का चाँद !

मैंने तो उसी दिन  
रख दिया था चाँद
तुम्हारी हथेली पर   
जिस दिन तुमने
मेरे प्रेम को स्वीकारा था !
मैंने तो उसी दिन  
रख दिते थे कई चाँद
चाँद की चमकती चांदनी 
से तुम्हारे गालों पर
जिस दिन तुमने
मेरे प्रेम को स्वीकारा था !
मैंने तो उसी दिन  
रख दिए थे दो रक्तवर्ण   
चाँद तुम्हारे दोनों होंठों पर 
जिस दिन तुमने
मेरे प्रेम को स्वीकारा था !
करवा चौथ का चाँद तो  
उसी दिन रख दिया था 
तुम्हारी हथेली पर जिस 
दिन सहर्ष ओढ़ ली थी तुमने 
मेरे नाम की लाल चुनड़ी !
फिर तुम ही बताओ तुम  
क्यों देखती हो अपने 
प्रेम के आँगन में खड़ी 
होकर चलनी की ओट से  
उस दूर चाँद को आज भी !
जबकि तुम्हारी मुट्ठी में
तो कब से  कैद है 
तुम्हारा अपना चाँद !

Thursday, 17 October 2019

रूह को रोते देखा था !


रूह को रोते देखा था !

रात बहुत देर तक मैंने 
अपनी रूह को रोते हुए 
देखा था 
तब एक कविता उमड़ 
पड़ी थी मेरे मन के भावों 
में पर चेहरा उसका भी 
कुछ कुछ तुम जैसा था
पर आवाज़ उसकी हूबहू 
मुझ जैसी थी 
रात बहुत देर तक मैंने 
अपनी रूह को रोते हुए 
देखा था 
तूने ख्वाबों में खुद से  
जब लिपटकर उसको 
अपनी बाँहों में सुलाया 
था तब जा कर उसकी 
वो सुबकाई बंद 
हुई थी 
रात बहुत देर तक मैंने 
अपनी रूह को रोते हुए 
देखा था !

Wednesday, 16 October 2019

महकती भावनाएं !


महकती भावनाएं !

ये भावनाएँ जो 
उभरती है
और जो आगे भी 
उभरेंगी 
वो सिर्फ होंगी एक  
तुम्हारे लिए 
चाहे वो हो सूरज में 
झुलसती हुई 
या फिर हो बर्फ में 
पघलती हुई 
या फिर वो हो 
झमाझम बरसात में  
भीगती हुई 
पर ये मेरी भावनाएं 
सदा ही रहेंगी तुम्हारी 
बाहों के लंगर में 
समाती हुई  
और अपनी सौंधी 
सौंधी खुशबु से तुम्हें 
महकाती हुई !

Tuesday, 15 October 2019

चले आओ तुम !


चले आओ तुम 
मेरे इन आखरों को छू कर 
मुझे फिर से जिन्दा कर दो 
चले आओ तुम 
मुझमे भर कर अपनी 
महकती सांसें चहकती आहें
मुझे फिर से जिन्दा कर दो  
चले आओ तुम 
मेरी सिलवटों को छू कर 
मिला दो इसमें अपनी 
तमाम सिलवटें और  
मुझे फिर से जिन्दा कर दो 
चले आओ तुम 
मेरे हिस्से की धुप को छू कर 
उतार दो मेरे आँचल में और 
मुझे फिर से जिन्दा कर दो 
चले आओ तुम 
मेरे वज़ूद की सहर को छू कर 
इसमें अपनी खुशबू उतार कर 
मुझे फिर से जिन्दा कर दो 
चले आओ तुम 
मेरे जिस्म की मिटटी को छू कर 
उतार दो उसमे अपने पोरों का सुकूं
और मुझे फिर से जिन्दा कर दो  
चले आओ तुम !

Monday, 14 October 2019

एक तुम्हारे बिना


एक तुम्हारे बिना  

एक तुम्हारे बिना 
सूरज तो निकलता है 
पर दिन मेरा उगता नहीं है 
एक तुम्हारे बिना 
चाँद तो निकलता है 
पर रात गुजरती नहीं है 
एक तुम्हारे बिना 
घड़ियाँ चलती है है 
पर समय बीतता नहीं है 
एक तुम्हारे बिना 
दिल तो धड़कता है 
पर दिल बहलता नहीं है 
एक तुम्हारे बिना 
फूल तो खिलते है 
पर वो महकते नहीं है
एक तुम्हारे बिना 
पंछी तो चहचहाते है 
पर उनका यूँ बेसुरों में 
चहचहाना जंचता नहीं है
एक तुम्हारे बिना 
रातों को नींद आती नहीं है 
पर ये सपने दिन में सताते है 
एक तुम्हारे बिना 
मेरा मैं भीड़ में तो बैठा है
पर वो बहुत ही तन्हा है 
एक तुम्हारे बिना 
कितना कुछ छूटता जा रहा है 
एक तुम्हारे बिना ! 

स्मृति !


स्मृति तुम्हारी 
भोर की पुरवाई सी 
सदैव मुझे यूँ ही 
महसूस कराती सी  
जैसे हो वो अनछुई
और कुँआरी सी !

दिल !


चुपचाप बहलता है दिल 
तुम भी तो समझो जरा ;
किस मर्ज़ को कहते है इश्क़   
तुम भी तो समझो जरा !

Sunday, 13 October 2019

अश्क़ों की बूंदें !


अश्क़ों की बूंदें ! 

क्या देखते हो तुम 
मेरी इन लाल हुई आँखों में 
क्या देखते हो तुम
मेरे गालों पर सुख चुकी 
मेरी इन अश्कों की बूंदों में 
मेरा ये हाल तुम्हारी  
कमजोरियों की ही तो देन है 
मै बहा ही तो देती हूँ 
तुम्हारे दिए सारे दर्द   
को अपनी इन आँखों से
एक या दो बून्द छोड़कर 
अपनी इन आँखों में
इस उम्मीद में की वो 
एक और दो बची बूंदें
मिलकर आपस में बना 
लेंगी एक दरिया फिर से 
इन आँखों में
ताकि फिर से बहा सके 
वो तुम्हारी कमजोरी को 
अपनी इन आँखों से   
क्या देखते हो तुम 
मेरी इन लाल हुई 
आँखों में। 

Saturday, 12 October 2019

अधूरापन !


अधूरापन !
मैं अब तक हूँ 
अधूरा और इस 
अधूरेपन ने रखी है    
मेरी इस अतृप्त प्यास 
को अब तक अधूरी
इस प्यास ने मेरी  
हर एक आरज़ू को 
नहीं होने दी है पूरी
इस अधूरी आरज़ू ने 
रखी है मेरी जुस्तजू 
को भी अब तक अधूरी 
ना जाने वो कौन से 
जिस्म में कैद है जन्मों 
से बिछुड़ा वो मेरा अपना 
अधूरा टुकड़ा !

Friday, 11 October 2019

अदब !


लबादों पर लबादे 
जो चढ़े ;
अदब पर बेअदबी 
जा चढ़ी !

जमीं आसमां !


कल जो अज़ीज़ इस जमीं का था
आज वो अज़ीज़ आसमां का हो गया;
कल जो एक पूरा का पूरा आसमां था;
आज वो इस जमीं का हो गया !

पाकीज़गी !


कुछ इस कदर भी रखी
पाकीज़गी कायम मैंने ;
जब भी मन हुआ बैचैन 
देखने को तुझको दुर से 
ही देखा तुझको दर्पण में मैंने !

चुंबन !


प्यासे लेते और देते हैं
अपने अंधेरों से चुंबन ;
तृप्त लेते और देते हैं
अपने नैनों से चुंबन !

रूह कुंदन !


रूह कुंदन !

चलो सोहबत मोहब्बत 
की कर के देखते है; 
तरुणाई उसके साथ 
बिताकर देखते है;
दिल ने बड़ी तसल्ली 
रख कर भी देख ली; 
चलो दिल को थोड़ा  
और बैचैन कर के 
देखते है;  
जिस्म को सौ बार 
जला कर देखा है; 
वो तो मिटटी का 
मिटटी ही रहता है; 
चलो एक बार इस 
रूह को जला कर 
देखते है; 
सुना है ये जलकर 
कुंदन हो जाती है;
चलो सोहबत मोहब्बत 
की कर के देखते है !

Thursday, 10 October 2019

स्मृतियाँ !


स्मृतियाँ!
तुम्हारी स्मृतियाँ 
सर्दी की एक सुबह 
के कोहरे सी;
तुम्हारी स्मृतियाँ 
उस हिमालय की 
सबसे बर्फीली और 
कठोर चट्टान सी;
तुम्हारी स्मृतियाँ 
मेरे देह पर गोदी 
गयी गोदान सी; 
तुम्हारी स्मृतियाँ 
उस बून्द की सी
जो सिचित हो जाए 
तो तुम्हारा हूबहू 
अक्स पा लूँ मैं; 
तुम्हारी स्मृतियाँ 
उस भभकती आग सी
जिसने बर्षों साँझ ढले 
मानव सभ्यता की 
भूख मिटाई है !

Wednesday, 9 October 2019

रु-ब-रु !


रु-ब-रु ! 

चाह ही तो दो कदम 
और चलकर चाहत 
बन जाती है; 
चाहत जब दो कदम 
और चलती है तो 
वो फिर हिम्मत 
बन जाती है;
और वही हिम्मत 
जब दो कदम चल  ब
लेती है ; 
तो वो एक रूह से 
दूजी रूह को मिलवा  
देती है; 
और जब रूहें मिल 
जाती है; 
तो अद्वैत का भाव 
पा लिया जाता है; 
यही अद्वैत का भाव
हमें प्रेम से रु-ब-रु  
करवाता है ! 

Tuesday, 8 October 2019

विष या अमृत !


विष छुपा है 
या अमृत छुपा है
मेरे रसातल में  
उतरकर इसका 
निर्धारण तुम करो 
फिर अनवरत उसका 
चिंतन करो
मैं अल्हड नदियों   
की हलचलों से भरा 
समंदर हूँ !

जमीं और आसमां


जमीं और आसमां 
के ठीक बीचों बीच 
बांधेंगे हम दोनों एक मचान 
तुम अगर जाओ बात मेरी मान 
तो बे दरों दीवारों का बनाएंगे 
वही छोटा सा एक अपना मकान !

खुशियों के मोती


जब खुशनुमा लम्हों 
के समंदर में,
खुशियों के मोती 
मिलते होंगें,
उन खुशनुमा लम्हों 
में इश्क़ और मोहब्बत
अपनी पूरी ज़िन्दगी 
जी लेते होंगे !

इश्क़ और मोहब्बत


जहाँ इश्क़ और मोहब्बत  
दोनों मिलते होंगें ;
वहां बंदिशों की सारी दीवारें 
गिर जाती होंगी !

अश्क़ चुन लेते है !


अश्क़ चुन लेते है !

आँखों से कहती हैं 
ये मोहब्बत ;
दिल से सुन लेता हैं 
उसका इश्क़ !
पत्थरों के दिल जिनके 
होते है ; 
वो शीशों के घरों में 
रहने लगते है ; 
दीवार-ओ-दर भी 
सुन लेते है ;
जब इश्क़ और मोहब्बत
तन्हाईयों में आपस में 
बात करते है;
वो पलकों से भी  
अश्क़ चुन लेते है
जो दर्द अपने सीने में 
रखते है !

Monday, 7 October 2019

फिर क्यों !


दर्द के साथ पला बड़ा हुआ हूँ 
फिर क्यों ;
इनसे क्यों जुदा होना चाहता हूँ !
साहस और हौसले से लबरेज़ हूँ
फिर क्यों ;
परेशानियों से निज़ाद चाहता हूँ !
इस नफ़रत भरी दुनिया में प्रेम हूँ ,
फिर क्यों ;
मोहब्बत से जुदा होने से डरता हूँ !
सच्चाई को अपने दिल में पनाह देता हूँ 
फिर क्यों ;
दुनिया की कड़वी सच्चाईयों से डरता हूँ !
आज का ये वक्त यूँ ही बिता देता हूँ 
फिर क्यों ;
कल आने वाले वक़्त से मैं डरता हूँ !
प्रेम हूँ और अपनी प्रीत को साथ रखता हूँ 
फिर क्यों ;
मैं इन रातों की तन्हाईयों से डरता हूँ !

Sunday, 6 October 2019

मेरी आस !


मेरी आस !

जन्मों की ये आस  
जो मेरे दिल में बसी है,
क्यों ये आस अब तोड़ने 
से भी टूटती नहीं है,
रह जाती है ये अधूरी की अधूरी 
क्यों ये अब पूरी होती नहीं है, 
जैसे लग कर अपने ही  
किनारों से बहती है,
एक लहर जो सागर  
से मिलने को तरसती है,
वो जो मेरी नजरों में 
कोहिनूर सा चमकता है, 
वो पास आकर मेरे ताज
में क्यों नहीं जड़ जाता है,  
दूर मेरी आँखों से वो जो 
एक लौ सा टिमटिमाता है, 
पास आकर मेरे इन अंधेरों में,
क्यों इसे रौशन करता नहीं है !

Saturday, 5 October 2019

मेरी हीर !


मेरी हीर !

प्रेम तुमसे है 
मुझे कुछ कुछ
हीर-राँझा सा ही
अदृश्य अपरिभाषित
और अकल्पित है
जिसकी सीमायें 
और इसका आकर्षण 
भी कुछ ऐसा है  
जो विकर्षण की हर 
सीमा तक जाकर 
भी तोड़ आता है 
दूरियों की सभी 
बेड़ियाँ और अंततः 
समाहित कर देता है  
मुझे तुझमे कुछ ऐसे 
की सोचने लग जाता हूँ  
कि अब तुम्हे मैं पुकारू 
मेरी हीर कह कर !

Friday, 4 October 2019

तुम्हारे साथ !


तुम्हारे साथ !

वो अक्सर मेरे सीने से
लिपटकर रोया करती है;
और मैं अक्सर उस से 
बस यही कहा करता था;
मुझे तुम्हारा रोना बिलकुल 
अच्छा नहीं लगता है;
और वो ये सुनकर और फुट 
फुट रो लिया करती थी;
एक दिन जब मैंने उसे रोने  
के लिए अपना कांधा देने
से मना कर दिया था;
तब उसने मुझसे कहा
राम जो तुम्हारे साथ बैठ 
कर घंटों हंस सकती है ;
वो तुम्हारे साथ कुछ
घंटे ही बिता सकती है;
पर जो तुम्हारे साथ
खुलकर रो सकती है;
वो ही तुम्हारे साथ सारी
जिंदगी बिता सकती है;
फिर मैंने कभी उसे मना
नहीं किया अपना कांधा
देने और रोने के लिए।

Thursday, 3 October 2019

आत्म-मंथन !


आत्म-मंथन !

कही बाहर नहीं
बल्कि स्वयं के अंदर 
ही आत्म-मंथन 
चलता है,
तो कभी-कभी जैसे  
ज्वालामुखी सा 
फूटता है,
कभी-कभी दावाग्नि 
जलती है,
तो कभी-कभी बर्फ 
सी जमती है,
कभी-कभी मूसलाधार 
बरसात होती है,
तो कभी आँधी और 
तूफान आता है,
ये सब कुछ बाहर 
नहीं होता है,
बल्कि स्वयं के 
अंदर घटता है, 
बाहर तो सूरज 
अपनी किरण वैसे ही 
बिखेर रहा होता है 
जैसे वो रोज बिखेरता है !

Wednesday, 2 October 2019

मिलन !


मिलन !

मोहब्बत हंस रही है 
इश्क़ झूम रहा है 
मरुत गमक रही है 
वह्नि जाग रही है 
नीर गा रहा है 
नभ दमक रहा है 
जन्मों पहले बिछुड़े 
मोहब्बत और इश्क़   
आज यहाँ आकर 
मिल रहे है तो  
प्रकृति भी जैसे 
उत्सव मना रही है !

Tuesday, 1 October 2019

रत्ती भर प्रेम !


रत्ती भर प्रेम !

ज़िन्दगी के तराज़ू 
के एक पलड़े में कोई 
लाकर रख से दे भले   
ही पुरे संसार का वैभव 
ऊंचाई आकाश की 
चमक पुरे सूरज की   
चांदनी पूरी चंदा की 
भल मानसीहत पुरे 
के पुरे संसार की  
पर अगर किसी ने 
रख दिया दूजे पलड़े 
में रत्ती भर प्रेम भी 
चुपचाप तो पलड़ा 
झुका रहेगा हमेशा 
ही उस रत्ती भर
प्रेम के भार की
तरफ ही !  

प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !