Saturday, 31 March 2018
Friday, 30 March 2018
मंदिर में बजती घंटिया
मंदिर में बजती घंटिया
--------------------
तुम गूंजने लगती हो
इस देह व आत्मा रूपी
मेरे समेत अस्तित्व के
ब्रह्माण्ड में मंदिर में
बजती घंटियों की तरह
और धरती की तरह
काटने लगती हो चक्कर
मेरे " मैं " के चारो ओर
मैं से हम बनाने की
उत्तकंठ अभिलाषा लिए
तुम उस पल में एक
योगाभ्यासिनी के स्वरुप
होती हो और मैं होता हु
तुम्हारा वैदिक मंत्र
जिसे उच्चारित कर तुम
पा लेती हो मेरा समूल
और एहसास भर देती हो
मेरे अंदर सम्पूर्णताः का
फिर सुबह स्वर गुंजारित
प्रतीक्षारत हो उठता हु
उसी मौन का जो मुझमे
जगाती है आकंठ प्यास ..
Thursday, 29 March 2018
तुम्हारा मेरे साथ होना
मेरे लिए जैसे रेगिस्तान
में खाक छानते हुए
को एक पानी से भरा
घड़ा पीने को दे देना ;
तुम्हारा मेरे साथ होना
मेरे लिए जैसे माइनस
बीस डिग्री में अचानक
से अलाव की तपिश मिल जाना ;
तुम्हारा मेरे साथ होना
मेरे लिए जैसे बरसो की
पूजा के बाद ईश्वर का
मेरे सामने प्रकट हो
पूछना मांगो वत्स और
मेरा उनसे सातों जन्मो का
तुम्हारा साथ मांग लेना;
तुमने मुझे अफसाना मान लिया
मैं तुमसे मोहब्बत करता हूं
तुम उनसे मोहब्बत करती हो
तुमको बारिश भाती है
मैं बारिश में अकेला भीगता हूं
मैं तुमसे मोहब्बत करता हूं
तुम उनसे मोहब्बत करती हो
हर ख्वाब तुम्हारे पूरे हो
बस यही मैने चाहा है
मैं तुमसे मोहब्बत करता हूं
तुम उनसे मोहब्बत करती हो
मैं कोई गुजरा कल नहीं
जिंदा एक हकीकत हूँ
मैं तुमसे मोहब्बत करता हूं
तुम उनसे मोहब्बत करती हो
मैने तुम्हें जिंदगी माना
तुमने मुझे अफसाना मान लिया
मैं तुमसे मोहब्बत करता हूं
तुम उनसे मोहब्बत करती हो
तुम उनसे मोहब्बत करती हो
तुमको बारिश भाती है
मैं बारिश में अकेला भीगता हूं
मैं तुमसे मोहब्बत करता हूं
तुम उनसे मोहब्बत करती हो
हर ख्वाब तुम्हारे पूरे हो
बस यही मैने चाहा है
मैं तुमसे मोहब्बत करता हूं
तुम उनसे मोहब्बत करती हो
मैं कोई गुजरा कल नहीं
जिंदा एक हकीकत हूँ
मैं तुमसे मोहब्बत करता हूं
तुम उनसे मोहब्बत करती हो
मैने तुम्हें जिंदगी माना
तुमने मुझे अफसाना मान लिया
मैं तुमसे मोहब्बत करता हूं
तुम उनसे मोहब्बत करती हो
Wednesday, 28 March 2018
तुम्हारी सहेली नींदिया
जिंदगी
हाँ मुझे पता है
जिस दिन मैं
तुमसे दूर जाऊंगा
बस उस एक दिन
तुम्हें नींद नहीं आएगी
बस एक दिन हां बस एक दिन
तुम करवटों और कराहों में
वो एक रात गुजारोगी
पर अगले ही दिन तुम
अपनी नित्य दिनचर्या में
लौट जाओगी और
देखो ना आज ग्यारह ही
बजे थे कि तुम अपनी प्रिय
सहेली नींदिया को अपनी
गोलाकार बाहों में समेट
उसका सानिध्य पा चुकी हो
क्योंकि तुम्हें सिर्फ मुझसे लगाव था
प्रेम तो मैने किया है और कहा भी
कई बार कि मैं यूं ही अनवरत करता रहूंगा
तुम्हें प्रेम और लिखता रहूंगा तुम्हें
क्योंकि मैने अपने प्रेम का नामकरण किया था "जिंदगी"
हाँ मुझे पता है
जिस दिन मैं
तुमसे दूर जाऊंगा
बस उस एक दिन
तुम्हें नींद नहीं आएगी
बस एक दिन हां बस एक दिन
तुम करवटों और कराहों में
वो एक रात गुजारोगी
पर अगले ही दिन तुम
अपनी नित्य दिनचर्या में
लौट जाओगी और
देखो ना आज ग्यारह ही
बजे थे कि तुम अपनी प्रिय
सहेली नींदिया को अपनी
गोलाकार बाहों में समेट
उसका सानिध्य पा चुकी हो
क्योंकि तुम्हें सिर्फ मुझसे लगाव था
प्रेम तो मैने किया है और कहा भी
कई बार कि मैं यूं ही अनवरत करता रहूंगा
तुम्हें प्रेम और लिखता रहूंगा तुम्हें
क्योंकि मैने अपने प्रेम का नामकरण किया था "जिंदगी"
मेरे हृदयतल में बीज तुम्हारे बोये हुए होते
मेरे हृदयतल में बीज तुम्हारे बोये हुए होते
तुम मेरी वो आस थीजिसके ऊपर टिकी थी
मेरी ज़िन्दगी की डोर
मेरे सारे सपनो मेरी
सारी उमीदों की साँस
सब जानते हुए भी
तुमने आखिर तोड़ ही
दी मेरी आशाएं फिर भी
मैं पागल सोच रही हु
कहु तुमसे क्या तुम
एक बार फिर से करोगे
वादा क्या तुम फिर से
जोड़ पाओगे मेरी उम्मीदों
की सांसें ये पागलपन
नहीं तो क्या है बोलो?
गर तुम रखते माद्दा
मेरे "जामीन " होने का
तो ये जो उम्मीदों के बीज
मैं खुद बो रही हु अपने
बंज़र हुए हृदयतल में
वो बीज तुम्हारे बोये हुए होते
Tuesday, 27 March 2018
अब कुछ लिखना चाहती हु
अब कुछ लिखना चाहती हु
------------------------------
उसने कहा "राम" मैंने सुना है इश्क़ में
लोग "कवि" या "शायर" बन जाते है चलो छोड़ो लोगो की बात तुम
खुद को ही देख लो गुमसुम सा रहने वाला
वो "राम" भी तो लिखने लगा है ,
मैं भी चाहती हु अब कुछ लिखना
मैंने कहा रहने दो बहुत दर्द से गुजरना
पड़ता है यु बरसने के लिए मेरा क्या है
मुझे तो तुमने बादल बना उसमे भर दी है
इतनी नमी की बरसना हो गयी है मेरी नियति
फिर ज़िद्द पकड़ कर बैठ गयी मुझे लिखना है
सिखाना ही होगा मुझे अब मैंने कहा ठीक है
एक काम करो तुम थोड़े ख्वाब देखो जिसमे हो
सिर्फ मैं और तुम थोड़ी ख्वाहिशें पालो जिसमे हो
थोड़ी प्यास और उन्हें सहेजो अपने यौवन में
और जब पौढावस्था की दहलीज़ चढ़ते वक़्त
अधूरे रह जाये वो ख्वाब और ना बुझे वो अतृप प्यास
तो इकट्ठे कर उन्हें एक एक कर जलना अपने इन हाथो से
वो जो धुंवा व अग्नि प्रविष्ट करेंगे तुम्हारी रूह में उस दिन
तुम मुझे लिखना राम मैं तुम्हे आज भी उतना ही प्रेम करती हु ?
Monday, 26 March 2018
रूह की कराह
रूह की कराह
__________
तुम बात करती हो मेरे
दरवाज़ों मेरी खिड़कियों
के खड़खड़ाने की जो
दिख जाती है तुम्हे
पर ये तो बताओ तुम
इस रूह की कराह तुम्हे
सुनाई नहीं देती या
इंतज़ार कर रही हो
मेरा की कब अपने
ही वक्ष को मैं अपने
ही हाथों चीरकर
नहीं दिखला देता तुम्हे
तुम बात करती हो मेरे
दरवाज़ों मेरी खिड़कियों
के खड़खड़ाने की जो
सुन जाती है तुम्हे
पर ये तो बताओ तुम
इस हृदय की पीड़ा
दिखाई नहीं देती तुम्हे
या इंतज़ार कर रही हो
उन धड़कनो का जो
धड़क धड़क कर
एहसास दिलाती है
मेरे जीवित होने का
उनके रुक जाने का
तुम बात करती हो मेरे
दरवाज़ों मेरी खिड़कियों
के खड़खड़ाने की जो
दिख जाती है तुम्हे
पर ये तो बताओ तुम
क्या तुम्हे नहीं दिखते
वो अधूरे स्वप्न जो
दिन ब दिन बूढ़े हो रहे है
क्या इन्हे तब चलने
कहोगी साथ अपने जब
इनके घुटनो को बदलवाने का
वक़्त आ जायेगा !
__________
तुम बात करती हो मेरे
दरवाज़ों मेरी खिड़कियों
के खड़खड़ाने की जो
दिख जाती है तुम्हे
पर ये तो बताओ तुम
इस रूह की कराह तुम्हे
सुनाई नहीं देती या
इंतज़ार कर रही हो
मेरा की कब अपने
ही वक्ष को मैं अपने
ही हाथों चीरकर
नहीं दिखला देता तुम्हे
तुम बात करती हो मेरे
दरवाज़ों मेरी खिड़कियों
के खड़खड़ाने की जो
सुन जाती है तुम्हे
पर ये तो बताओ तुम
इस हृदय की पीड़ा
दिखाई नहीं देती तुम्हे
या इंतज़ार कर रही हो
उन धड़कनो का जो
धड़क धड़क कर
एहसास दिलाती है
मेरे जीवित होने का
उनके रुक जाने का
तुम बात करती हो मेरे
दरवाज़ों मेरी खिड़कियों
के खड़खड़ाने की जो
दिख जाती है तुम्हे
पर ये तो बताओ तुम
क्या तुम्हे नहीं दिखते
वो अधूरे स्वप्न जो
दिन ब दिन बूढ़े हो रहे है
क्या इन्हे तब चलने
कहोगी साथ अपने जब
इनके घुटनो को बदलवाने का
वक़्त आ जायेगा !
Sunday, 25 March 2018
ज़िन्दगी को लौटना होगा
ज़िन्दगी को लौटना होगा
__________________ज़िन्दगी कुछ देती नहीं कुछ लिए बिना
ये महसूस किया है उस पहले ही दिन
जब था मैं सबसे महफूज़ माँ की कोख में
जंहा अपनी सारी फरमाईशें पूरी करवा लेता था
लात मार मार कर अपनी में के पेट पर
ज़िन्दगी ने तय की है समय-सीमा उस महफ़ूज़ियत
की भी चाहे हो गरीब-या अमीर नहीं रह सकता
महफूज़ नौ महीने से ज्यादा वंहा तब
छीन कर उस महफ़ूज़ियत को देती है
देती है वो बचपन जंहा सभी घरवालों को
घुटनो पर चलवाकर सीख लेता है उनकी
ही तरह अपने पैरों पर चलना फिर एक बार
छीनकर वो बचपन देती है किशोरावस्था
जो बीत जाता है खेल-कूद और सिखने सिखाने में
ये किशोरावस्था छीनकर देती है चीर प्रतीक्षित यौवन
वो यौवन जो घोड़े पर सवार होकर पा तो लेता है
देह पर कुछ अधूरेपन का एहसास रह जाता है
और सबसे लम्बा और तन्हा सफर तय
करना होता है रूह को पाने के लिए वो भी
सभी को मिले ये जरुरी नहीं उसकी नज़र में
हा इतना तो समझ आ गया है मेरे की रूह की
दहलीज़ को कोई जवान "जामीन" पार नहीं
कर सकता शायद रूह को पसंद है बृद्धावस्था
Saturday, 24 March 2018
गर तुम करो वादा
Picture courtesy: google
ख्वाहिश और ख्वाब
______________
गर तुम करो वादा मुझसे
मुझसा प्रेम करने का
मैं वचन देता हु तुम्हे
धुप और छाया को
एक दूसरे में घोलने का
गर तुम करो वादा मुझसे
मेरी तन्हाई को आबाद करने की तो
मैं वचन देता हु तुम्हे
तुम्हारे प्रेम को वो मुकाम देने की
जिसके घर के आंगन में साथ
साथ खेलेंगे ख्वाहिश और ख्वाब
गर तुम करो वादा मुझसे
मेरा दिल कभी ना दुखाने का
मैं वचन देता हु तुम्हे
वो जहां देने की जंहा दर्द
और हंसी एक दूजे पर मरते हो
गर तुम करो वादा मुझसे
मेरा प्रेम अमर कर देने का
मैं वचन देता हु तुम्हे
ले चलूँगा तुम्हे तुम्हारा हाथ
थाम कर वंहा जंहा अपने और
पराये एक साथ मिलकर
एक दूजे का त्यौहार मानते है
Friday, 23 March 2018
उसे पढ़ तो लिया करो
अभी जिसे देख रही हो
सिमटा-सिमटा सा जो
अक्सर रख देता है
खुद को पूरा का पूरा
खोलकर तुम्हारे आगे
कई बार-हर बार
वही जो खुला-खुला
सा बिखरा-बिखरा सा
पढ़ा था तुम्हारे घुटनो पर
कभी तुम्हारे कंधो पर
तो कभी तुम्हारी पलकों पर
तो कभी ठीक तुम्हारे पीछे
तुम्हारी उन्ही पलकों को
बंद कर तुम्ही से पूछता है
बताओ मैं कौन?
वही जो पूरा का पूरा
जी लेता है खुद को
तुम्हारे आगे बिखर-बिखर कर
तुम पढ़ तो लिया करो
उसको उसके चले जाने
के बाद उठा कर कभी
अपनी पलकों से
कभी अपने घुटनो से
कभी अपनी पलकों से
तो पता चलेगा तुम्हे
यु खुद को कर समर्पित
लौटने का दर्द क्या होता है
सिमटा-सिमटा सा जो
अक्सर रख देता है
खुद को पूरा का पूरा
खोलकर तुम्हारे आगे
कई बार-हर बार
वही जो खुला-खुला
सा बिखरा-बिखरा सा
पढ़ा था तुम्हारे घुटनो पर
कभी तुम्हारे कंधो पर
तो कभी तुम्हारी पलकों पर
तो कभी ठीक तुम्हारे पीछे
तुम्हारी उन्ही पलकों को
बंद कर तुम्ही से पूछता है
बताओ मैं कौन?
वही जो पूरा का पूरा
जी लेता है खुद को
तुम्हारे आगे बिखर-बिखर कर
तुम पढ़ तो लिया करो
उसको उसके चले जाने
के बाद उठा कर कभी
अपनी पलकों से
कभी अपने घुटनो से
कभी अपनी पलकों से
तो पता चलेगा तुम्हे
यु खुद को कर समर्पित
लौटने का दर्द क्या होता है
Thursday, 22 March 2018
तुम्हारी अपेक्षा के वशीभूत मैं
मैं सूर्यमुखी सा
अपेक्षा के वशीभूत होघूम जाता हु तुम्हारी
ओर हर बार ....
कभी सौम्य
कभी मध्यम
कभी प्रखर
कभी तीक्ष्ण
तुम्हारी किरण ...
संतुलित,स्पष्ट,व
कभी कभी उन्नमादि
तुम्हारा ये आचरण
संवारता,मांजता,परिपक्व
करता है मुझे भीतर से
और मैं पहले से अधिक
सजीव,शोख,दीप्तमान
हो घूम जाता हु
तुम्हारी ओर
हर बार .... ...!
Wednesday, 21 March 2018
गीली-गीली रज्ज
नैनो की गीली-गीली
रज्ज में बोये वो
कच्चे कच्चे सपने हैकण्ठ की मधुर मधुर
धुन से गुनगुनाये है
वो प्रेम क गीत
हृदय के नर्म नर्म
आँगन में सजाये
खुशनुमा लम्हे है
इन सबको मैं
टूटता बिखरता
करहाता बैचैन सा
सींचने सँवारने
और सहेजने की
कोशिश कर रहा हु
जब इनमे सुगंध फूटे
तो तुम आना मैं
ये सुगंध तुझमे
भरना चाहता हु
photo courtesy : google
Tuesday, 20 March 2018
मेरी उपस्थिति
बोलो क्या तुम्हे मिलता है
मुझसे भी ज्यादा चाहने वाला
"राम"जो ढूंढती हो तुम
मेरे ही लिखे अल्फ़ाज़ों में
या तुम्हे मुझसे ज्यादा
पसंद है मेरी परछाई
बोलो क्या तुम्हे मिलता है
मुझसे भी ज्यादा टूट कर
चाहने वाला "राम"
जो ढूंढती हो तुम
मेरी ही लिखी कविताओं में
बोलो क्या तुम्हे मिलता है
शुकुन मेरी लिखावट में
मेरी उपस्थिति से ज्यादा
बोलो क्या होता है तुम्हे
ऐतबार मेरे वादों से ज्यादा
मेरी नज़्मों पर गर हां तो
फिर मेरी उपस्थिति क्या
मायने रखती है तुम्हारे लिए
photo courtesy : google
Monday, 19 March 2018
मेरे हृदय चंद्र ज्योत्सना से पुलकित हो तुम
मेरे हृदय चंद्र ज्योत्सना से पुलकित हो तुम
_______________________________
मैंने चुनी थी एक विमलतम, शुभ्रतम, संगमरमर
की पाटी जिसको मेरे मनोहर मन के निर्मल जल के
समीप रख अपने सांसों की मधुर गुँजारव के बीच
बैठकर हृदय चंद्र ज्योत्सना से पुलकित करू
और ऐसा मैं अपना कर्म ही नहीं अपितु इसे
अपना प्रेम धर्म मानकर करू और उस शीतल
शुभ्र संगमरमर की पाटी का सारा खुरदरापन
छील उसे इतना कोमल बना दू जितना
होता है हृदय एक नवजात शिशु का और
फिर उसमें से मेरे मन की हृदय साम्राज्ञी
की वो हु-ब-हु मूर्ति निकाल अपने हृदय की
धड़कन जोड़ दू और वो जी उठे जिसका स्वप्न
मैंने अपने यौवन के प्रथम पायदान पर पांव
रखते हुए देखा था एवं जिसके विशाल करुणामय नेत्र मेरे सर्वस्य अस्तित्व को खुद में समां ले वो और इस कार्य के बदले मुझे वो आशीर्वाद देती हुई दिखाई पड़े एवं उसे प्राप्त हो देवियों की वो शक्ति
की वो जिसे छू ले उसे सौ गुना कर दे ऐसी भार्या
मैंने अपने प्रेम की समर्पण से गढ़ी जिसके परिणाम
स्वरुप आज तुम मेरी अर्धांगिनी हो
Image Courtesy: google
_______________________________
मैंने चुनी थी एक विमलतम, शुभ्रतम, संगमरमर
की पाटी जिसको मेरे मनोहर मन के निर्मल जल के
समीप रख अपने सांसों की मधुर गुँजारव के बीच
बैठकर हृदय चंद्र ज्योत्सना से पुलकित करू
और ऐसा मैं अपना कर्म ही नहीं अपितु इसे
अपना प्रेम धर्म मानकर करू और उस शीतल
शुभ्र संगमरमर की पाटी का सारा खुरदरापन
छील उसे इतना कोमल बना दू जितना
होता है हृदय एक नवजात शिशु का और
फिर उसमें से मेरे मन की हृदय साम्राज्ञी
की वो हु-ब-हु मूर्ति निकाल अपने हृदय की
धड़कन जोड़ दू और वो जी उठे जिसका स्वप्न
मैंने अपने यौवन के प्रथम पायदान पर पांव
रखते हुए देखा था एवं जिसके विशाल करुणामय नेत्र मेरे सर्वस्य अस्तित्व को खुद में समां ले वो और इस कार्य के बदले मुझे वो आशीर्वाद देती हुई दिखाई पड़े एवं उसे प्राप्त हो देवियों की वो शक्ति
की वो जिसे छू ले उसे सौ गुना कर दे ऐसी भार्या
मैंने अपने प्रेम की समर्पण से गढ़ी जिसके परिणाम
स्वरुप आज तुम मेरी अर्धांगिनी हो
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Sunday, 18 March 2018
इश्क़ में हो ?
इश्क़ में हो ?
तो सुनो सिर्फ
हवाओं से ना
फुलाओ इन गुब्बारों को
कुछ हसीं लम्हे थोड़ी सी
ख्वाहिशें और आधे अधूरे
सपनो को भी भर लो इन
गुब्बारों में ताकि आने वाली
गर्मियों में जब ये फूटे तो
तुम्हारे हाथों में सिर्फ
हवा ना आये
कुछ हसीं लम्हे थोड़ी सी
ख्वाहिशें और आधे अधूरे
सपने भी मिले तुम्हे जिसके सहारे
काट सको तुम अपनी तपती
जलती दोपहरियों को और
ठण्ड आते ही दोहरा सको वो
हंसी लम्हें पूरी कर सको अपनी
ख्वाहिशें और सपनो को फिर से
बो सको अपने हृदय की कोख में
ताकि वो जल्द ही हरी हो सके !
photo courtesy:google
तो सुनो सिर्फ
हवाओं से ना
फुलाओ इन गुब्बारों को
कुछ हसीं लम्हे थोड़ी सी
ख्वाहिशें और आधे अधूरे
सपनो को भी भर लो इन
गुब्बारों में ताकि आने वाली
गर्मियों में जब ये फूटे तो
तुम्हारे हाथों में सिर्फ
हवा ना आये
कुछ हसीं लम्हे थोड़ी सी
ख्वाहिशें और आधे अधूरे
सपने भी मिले तुम्हे जिसके सहारे
काट सको तुम अपनी तपती
जलती दोपहरियों को और
ठण्ड आते ही दोहरा सको वो
हंसी लम्हें पूरी कर सको अपनी
ख्वाहिशें और सपनो को फिर से
बो सको अपने हृदय की कोख में
ताकि वो जल्द ही हरी हो सके !
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Saturday, 17 March 2018
तुम्हारे एहसासो से भरे हर्फ़
सुनो तुम्हारी पसंद की
सभी साड़ियां गीली पड़ी है
आज तुम अपनी पसंद की
साड़ी में अगर ना देख पाओ
तो उत्तेजित ना होना
क्योकि इसमें मेरा कोई
दोष नहीं ये जो तुम्हारे
एहसासो से भरे हर्फ़ है
अक्सर ही चुभती सी दोपहरी में
सोच कर मेरा हित अपनी
ठंडी-ठंडी फुहारों से दिन में कई बार
मुझे भिगो कर चले जाते है
photo courtesy: google
सभी साड़ियां गीली पड़ी है
आज तुम अपनी पसंद की
साड़ी में अगर ना देख पाओ
तो उत्तेजित ना होना
क्योकि इसमें मेरा कोई
दोष नहीं ये जो तुम्हारे
एहसासो से भरे हर्फ़ है
अक्सर ही चुभती सी दोपहरी में
सोच कर मेरा हित अपनी
ठंडी-ठंडी फुहारों से दिन में कई बार
मुझे भिगो कर चले जाते है
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Friday, 16 March 2018
चुप रहने का अहंकार
अब जब तुमने कह ही दिया है
तुम्हारे उच्च रक्तचाप
की वजह मेरी ही वो बक-बक है
जो मैं सुबह शाम करता हु तुम्हारे साथ की क्या तकलीफ है तुम्हे बताओ मुझे अक्सर जब लगता है मुझे तुम कुछ
छुपा रही हो मुझसे तब करता हु मैं
ऐसी ही कई अनगिनत बक-बक
अब जब तुमने कह ही दिया है
तुम्हारे उच्च रक्तचाप
की वजह मेरी ही वो बक-बक है
तो अब सोचता हु चुप रहने का
अहंकार ही पाल लू कुछ हो ना हो
कम से कम तुम्हे इस उच्च रक्चाप से
तो छुटकारा मिलेगा और मेरे एहसास
लौट भी आएंगे मेरे पास की मैं अब भी
करता हु क़द्र तुम्हारी और तुम्हारे स्वास्थ की photo courtesy : google
तुम्हारे उच्च रक्तचाप
की वजह मेरी ही वो बक-बक है
जो मैं सुबह शाम करता हु तुम्हारे साथ की क्या तकलीफ है तुम्हे बताओ मुझे अक्सर जब लगता है मुझे तुम कुछ
छुपा रही हो मुझसे तब करता हु मैं
ऐसी ही कई अनगिनत बक-बक
अब जब तुमने कह ही दिया है
तुम्हारे उच्च रक्तचाप
की वजह मेरी ही वो बक-बक है
तो अब सोचता हु चुप रहने का
अहंकार ही पाल लू कुछ हो ना हो
कम से कम तुम्हे इस उच्च रक्चाप से
तो छुटकारा मिलेगा और मेरे एहसास
लौट भी आएंगे मेरे पास की मैं अब भी
करता हु क़द्र तुम्हारी और तुम्हारे स्वास्थ की photo courtesy : google
Thursday, 15 March 2018
चलो चलते है हम साथ साथ
दो कदम ही भले चलो चलते है
हम साथ साथ
चलो बढ़ाएं कदम साथ साथ
आँखों में भले निराशा ही सही
थामे हाथ एक दूजे का साथ साथ
दो कदम ही भले चलो चलते है
हम साथ साथ
ताल मिलाएं बिना पलकें झुकाये
देखें जरा पंख फैलाये परिंदो को
इन बादलों को जरा निहार ले
दिलासा दें आशाओं की दिल को
झूठी ही सही
दो कदम ही भले चलो चलते है
हम साथ साथ
ना सोचें कुछ बस चलते चले
हम रहेंगे सदा साथ साथ
मुस्कुरा जरा साथ साथ
दो कदम ही भले चलो चलते है
हम साथ साथ
कोशिश करें चाहे एक दूजे को
दिखाने ही सही चलो चलते है
हम साथ साथ भले दो कदम ही सही
भर देंगे उमीदें एक दूजे में हम साथ साथ
बस चले हम साथ साथ
दो कदम ही भले चलो चलते है
हम साथ साथ
हम साथ साथ
चलो बढ़ाएं कदम साथ साथ
आँखों में भले निराशा ही सही
थामे हाथ एक दूजे का साथ साथ
दो कदम ही भले चलो चलते है
हम साथ साथ
ताल मिलाएं बिना पलकें झुकाये
देखें जरा पंख फैलाये परिंदो को
इन बादलों को जरा निहार ले
दिलासा दें आशाओं की दिल को
झूठी ही सही
दो कदम ही भले चलो चलते है
हम साथ साथ
ना सोचें कुछ बस चलते चले
हम रहेंगे सदा साथ साथ
मुस्कुरा जरा साथ साथ
दो कदम ही भले चलो चलते है
हम साथ साथ
कोशिश करें चाहे एक दूजे को
दिखाने ही सही चलो चलते है
हम साथ साथ भले दो कदम ही सही
भर देंगे उमीदें एक दूजे में हम साथ साथ
बस चले हम साथ साथ
दो कदम ही भले चलो चलते है
हम साथ साथ
Wednesday, 14 March 2018
प्यार में फनाह होना
चाहती हु तेरे प्यार में फनाह होना
मैं कहा अभी नहीं थोड़ा रुको और
अपनी रातें बिताओ दिन सरीखी
दिन में देखो वो सारे ख्वाब जो मैंने बो दिए थे
तुम्हारी इन कजरारी आँखों में और
फिर करो मिन्नतें मुझसे मिलने की
ठीक वैसे ही जैसे मैं करता था तुमसे
और मैं गिनाऊ तुम्हे तुम जैसी ही
अनगिनत मज़बूरियां और तुम बिना
नाराज़ हुए समझो मेरी सारी मज़बूरियां
और जब फुर्सत मिले मुझे उस वक़्त तक
गर कुछ टुटा हो अंदर तुम्हारे उसे जोड़ो
और उन फुर्सत के छनो में आकर मिलो
तुम मुझसे जैसे कुछ हुआ ही ना हो
और इस तरह गुजारो अपने पांच
बसंत बचे यौवन के फिर गर कुछ बचे
प्रेम मेरे लिए तुम्हारे अंदर तो वादा
रहा आना पास मेरे दोनों होंगे हम
एक दूजे के प्यार में फनाह
मैं कहा अभी नहीं थोड़ा रुको और
अपनी रातें बिताओ दिन सरीखी
दिन में देखो वो सारे ख्वाब जो मैंने बो दिए थे
तुम्हारी इन कजरारी आँखों में और
फिर करो मिन्नतें मुझसे मिलने की
ठीक वैसे ही जैसे मैं करता था तुमसे
और मैं गिनाऊ तुम्हे तुम जैसी ही
अनगिनत मज़बूरियां और तुम बिना
नाराज़ हुए समझो मेरी सारी मज़बूरियां
और जब फुर्सत मिले मुझे उस वक़्त तक
गर कुछ टुटा हो अंदर तुम्हारे उसे जोड़ो
और उन फुर्सत के छनो में आकर मिलो
तुम मुझसे जैसे कुछ हुआ ही ना हो
और इस तरह गुजारो अपने पांच
बसंत बचे यौवन के फिर गर कुछ बचे
प्रेम मेरे लिए तुम्हारे अंदर तो वादा
रहा आना पास मेरे दोनों होंगे हम
एक दूजे के प्यार में फनाह
Tuesday, 13 March 2018
"अल्प विराम" अर्धविराम और पूर्ण विराम
ज़िन्दगी अक्सर लगाती है
"अल्प विराम" तब भी जब हम
पहली बार प्रयत्न करने की कोशिश करते है
गर्भ द्वार से जल्द बाहर आने की
और रेंगते रेंगते करते है पहली बार
कोशिश घुटनो से उठ अपने पैरों से
धरा को मापने की और तब भी
अल्पविराम लगाती है ये ज़िन्दगी
जब हम पहली बार अपने युवा फेफड़ों
में भर एक लम्बी श्वास करते है प्रयत्न
सबकुछ उस एक ही दौड़ में पा लेने की
उस वक़्त भी ज़िन्दगी लगाती है अल्प विराम
जब चाहा सबकुछ पा लेने के बाद भूख देती रहती है
दस्तक हमारे अतृप्त पिपासा के द्वार और हम करते है
प्रयत्न फिर से नयी पिपासा की मांग को स्वीकार समझते हुए भी
की अपने लिखे भाग्य का सब कुछ कर लिया है
हासिल पर चंचल मन नहीं मानता उस लगाए
अर्ध विराम को अपनी हठधर्मिता में तब ज़िन्दगी लगाती है
अर्धविराम और तबभी अगर ना समझे हम तो ज़िन्दगी लगाती है
पूर्ण विराम और उतार देती है हमे अपनी गोद से
ठीक उस प्रकार जैसे माँ बच्चे के बड़े होने पर उतारती है
उसे ही गोद से निचे अकेले प्रस्थान करने के लिए..
"अल्प विराम" तब भी जब हम
पहली बार प्रयत्न करने की कोशिश करते है
गर्भ द्वार से जल्द बाहर आने की
और रेंगते रेंगते करते है पहली बार
कोशिश घुटनो से उठ अपने पैरों से
धरा को मापने की और तब भी
अल्पविराम लगाती है ये ज़िन्दगी
जब हम पहली बार अपने युवा फेफड़ों
में भर एक लम्बी श्वास करते है प्रयत्न
सबकुछ उस एक ही दौड़ में पा लेने की
उस वक़्त भी ज़िन्दगी लगाती है अल्प विराम
जब चाहा सबकुछ पा लेने के बाद भूख देती रहती है
दस्तक हमारे अतृप्त पिपासा के द्वार और हम करते है
प्रयत्न फिर से नयी पिपासा की मांग को स्वीकार समझते हुए भी
की अपने लिखे भाग्य का सब कुछ कर लिया है
हासिल पर चंचल मन नहीं मानता उस लगाए
अर्ध विराम को अपनी हठधर्मिता में तब ज़िन्दगी लगाती है
अर्धविराम और तबभी अगर ना समझे हम तो ज़िन्दगी लगाती है
पूर्ण विराम और उतार देती है हमे अपनी गोद से
ठीक उस प्रकार जैसे माँ बच्चे के बड़े होने पर उतारती है
उसे ही गोद से निचे अकेले प्रस्थान करने के लिए..
Monday, 12 March 2018
तुम्हारी इतनी बेपरवाहियों
अब तो तुम्हे भी लगने लगा है
ना की स्वाभिमान का दम्भ भरने वाला
कैसे और किन्यु तुम्हारी इतनी बेपरवाहियों
के बाद भी बंधा हुआ है अब तक तुम्हारे साथ
कैसे और किन्यु तुम्हारी इतनी लापरवाहियों
के बाद भी उसके प्रेम का रंग फीका नहीं पड़ा
अब तक और तो और कैसे और किन्यु
तुम्हारी इतनी नज़रअंदाजियों के बाद भी
जब खफा होकर चला जाता है वो
कई कई दिनों तक तुमसे दूर पर फिर भी लौट कर
आता है तुम्हारे पास शायद उसने गिरा दी है
अपने स्वाभिमान की सारी दीवारें
शायद तुम्हारा सब कहा किया निकल जाता है
अब उस गिरी दिवार के उस पार पर सुनो
देखना कुछ शेष रहे उसमे अब भी पहले
जैसा कंही ऐसा ना हो एक दिन तुम ही उसे
पहचान ना पाओ इतने बदलाव के बाद
Sunday, 11 March 2018
देह की मुस्कराहट
अक्सर अतृप्ति झूठी मुस्कान
बिखेरती है होंठो पर होंठो की मुस्कराहट
के मायने कई है जब वो मुझे कुछ
अनमनी सी लगी तो पूछा ठीक हो तुम ?
प्रतिउत्तर में होंठो से मुस्कुरायी वो और
जब थक हार कर लौटा घर को थकी थकी
सी लगी तो एक बार फिर पूछा कैसी हो तुम ?
प्रतिउत्तर में एक बार फिर मुस्कुरायी वो
आज आधी रात को उसकी अँगुलियों के
सारे नख जो उसने बढ़ा रखे थे कई सालों से कटे मिले मुझे वो बिस्तर पर
पूछा तो प्रतिउत्तर में एक बार फिर
मुस्कुरायी थी सारे सवालों के जवाब में
उसकी मुस्कराहट कहना कुछ और ही चाहती थी
और मैं समझता रहा सब ठीक है
आज नींद नहीं आ रही थी तो किताबो की
रेक में से एक किताब निकाल पढ़ने बैठा
शीर्षक था "कशिश" उसके पहले पन्ने पर
लिखी दो लाईने ने मुझे फर्क समझा दिया
देह की मुस्कराहट रिश्तों को बांधने
की वो डोर है जिसके गांठ कभी खुलती नहीं
होंठो की मुस्कराहट में गांठे नहीं लगती
Saturday, 10 March 2018
यौवन बुनना चाहता है कुछ ख्वाब
कुछ ख्वाब बुनना
चाहता है ये यौवन
अपने कल के लिए
जिसके सहारे कट जायेगा
यौवन दोनों का तमाम
क्योकि जब ज़िन्दगी की
दौड़ की स्पर्धा में खड़े होंगे
हम-तुम और ये उम्र हमदोनो की
तो तुम नहीं दौड़ पाओगी हम
दोनों के साथ-साथ और फिर
तुम रह जाओगी दौड़ की स्पर्धा में
बहुत पीछे हम दोनों से और उम्र
ले जाएगी मेरा हाथ पकड़ अपने साथ
तुमसे बहुत दूर फिर ना कहना मुझे
"राम" तुम मुझे यु छोड़ कर अकेली
किन्यु इतनी दूर चले गए इसलिए
कह रहा हु चलो बुन लेने देते है
इस यौवन को कुछ ख्वाब आज
जिसके सहारे कट जायेगा
यौवन दोनों का तमाम
चाहता है ये यौवन
अपने कल के लिए
जिसके सहारे कट जायेगा
यौवन दोनों का तमाम
क्योकि जब ज़िन्दगी की
दौड़ की स्पर्धा में खड़े होंगे
हम-तुम और ये उम्र हमदोनो की
तो तुम नहीं दौड़ पाओगी हम
दोनों के साथ-साथ और फिर
तुम रह जाओगी दौड़ की स्पर्धा में
बहुत पीछे हम दोनों से और उम्र
ले जाएगी मेरा हाथ पकड़ अपने साथ
तुमसे बहुत दूर फिर ना कहना मुझे
"राम" तुम मुझे यु छोड़ कर अकेली
किन्यु इतनी दूर चले गए इसलिए
कह रहा हु चलो बुन लेने देते है
इस यौवन को कुछ ख्वाब आज
जिसके सहारे कट जायेगा
यौवन दोनों का तमाम
Friday, 9 March 2018
तृप्ति को आवरण पहना रखा है
तुम्हारी तृप्ति मेरी
अभिव्यक्ति में छुपी है और
मेरी तृप्ति तुम्हारे सानिध्य में
तुम्हे तुम्हारी तृप्ति
सुबह उठते ही मिल जाती है
मेरी तृप्ति रातों में
तड़प-तड़प कर जगती है
तुम्हे तृप्ति मेरी
महसूसियत से मिलती है
मेरी तृप्ति तुम्हारे पीछे-पीछे
दौड़ती भागती बैरंग लौट आती है
तुम्हारी तृप्ति तुम्हारे चारों ओर
फैले शोर के निचे दब जाती है
मेरी तृप्ति तुम्हारी दहलीज़ पर
तुम्हारा दरवाज़ा खटखटाती है
लेकिन मैंने तो सुना है
तृप्ति तो तृप्ति होती है
फिर किन्यु तुम्हारी तृप्ति
और मेरी तृप्ति अलग अलग
जान पड़ती है क्या तुमने अपनी
तृप्ति को ऊपर से एक
आवरण पहना रखा है क्या?
अभिव्यक्ति में छुपी है और
मेरी तृप्ति तुम्हारे सानिध्य में
तुम्हे तुम्हारी तृप्ति
सुबह उठते ही मिल जाती है
मेरी तृप्ति रातों में
तड़प-तड़प कर जगती है
तुम्हे तृप्ति मेरी
महसूसियत से मिलती है
मेरी तृप्ति तुम्हारे पीछे-पीछे
दौड़ती भागती बैरंग लौट आती है
तुम्हारी तृप्ति तुम्हारे चारों ओर
फैले शोर के निचे दब जाती है
मेरी तृप्ति तुम्हारी दहलीज़ पर
तुम्हारा दरवाज़ा खटखटाती है
लेकिन मैंने तो सुना है
तृप्ति तो तृप्ति होती है
फिर किन्यु तुम्हारी तृप्ति
और मेरी तृप्ति अलग अलग
जान पड़ती है क्या तुमने अपनी
तृप्ति को ऊपर से एक
आवरण पहना रखा है क्या?
Thursday, 8 March 2018
मोक्ष की कामना
प्रायः देखा है मैंने
उम्रदराज़ पुरुषो को
मोक्ष की कामना करते हुए
या तो ये कामना उन्हें धरती
पर जीये सारे बसंतो के अनुभवों
से प्राप्त हुई हो और वो अनुभव
हो कसैले या शहदयुक्त या फिर
ये भी हो सकता है की उन्हें
धरती के सारे बसंत देखने के बाद
ये याद आया हो की जो भी आता है
यहाँ उसे एक न एक दिन
जाना ही पड़ता है और इस सच
को स्वीकार करने के अलावा
कोई और रास्ता उन्हें ना दिखता हो
आगे पर तुमसे मिलने के बाद मैंने जाना
मैं मोक्ष की कामना करने की बजाय इसी धरती पर भटकता
रहना चाहूंगा अनंतकाल तक
तुम्हारी प्यास लिए मेरे नीले
कंठो में चाहे केतु बैठा हो
मेरी कुंडली के बारहवे घर में
जंहा से मिलती सीधी टिकट
मोक्ष की बिना किसी और स्टेशन पर रुके !
उम्रदराज़ पुरुषो को
मोक्ष की कामना करते हुए
या तो ये कामना उन्हें धरती
पर जीये सारे बसंतो के अनुभवों
से प्राप्त हुई हो और वो अनुभव
हो कसैले या शहदयुक्त या फिर
ये भी हो सकता है की उन्हें
धरती के सारे बसंत देखने के बाद
ये याद आया हो की जो भी आता है
यहाँ उसे एक न एक दिन
जाना ही पड़ता है और इस सच
को स्वीकार करने के अलावा
कोई और रास्ता उन्हें ना दिखता हो
आगे पर तुमसे मिलने के बाद मैंने जाना
मैं मोक्ष की कामना करने की बजाय इसी धरती पर भटकता
रहना चाहूंगा अनंतकाल तक
तुम्हारी प्यास लिए मेरे नीले
कंठो में चाहे केतु बैठा हो
मेरी कुंडली के बारहवे घर में
जंहा से मिलती सीधी टिकट
मोक्ष की बिना किसी और स्टेशन पर रुके !
Wednesday, 7 March 2018
अश्रु और अब्सार
लिए फेरे पुरे सात मेरी
अब्सार ने अश्रु के साथ
एक एक कर सातों वचन
निभाने का वादा भी किया
अश्रु ने मेरी अब्सार से
अब मेरे दिन सागर की
लहरों से और मेरी करूण
रातें उपांत सी खींची जा रही है
अब्सार पत्थर सी हो
टिक गयी है एक ही
राह के मुहाने पर जैसे
अहिल्या बैठी थी "राम"
के लिए पत्थर की होकर
उसके "राम" तो उसे छूकर
इफ़्फ़त कर गए अब बारी
है मेरे "राम" की
इफ़्फ़त-पवित्र
अब्सार-आंखें
उपांत-समुद्र सीमा
करूण-उदासीन
अश्रु - आँसू
Tuesday, 6 March 2018
अमृत बरसाता चाँद
अमृत बरसाते चाँद
को देख मेरी रूह भी
पुकारने लगती है तुम्हे
सुनो प्रिये कंहा हो तुम
आओ पास मेरे देखो
चाँद कैसे बरसा रहा है
अमृत अपनी धरा पर
सुन रही हो मुझे तुम
बोलो सुनो ना बोलो
कुछ तो बोलो कंहा हो
सुन पा रही हो मुझे
उसकी आवाज़ की
अधीरता को पहचान
मैं भी देने लगता हु
साथ उसके आवाज़ तुम्हे
पर तुमने शायद खड़ी
कर रखी है ऊँची ऊँची
दूरियों की दीवारें हम दोनों
के बीच तभी तो हमारी
दी हुई आवाज़ें टकराकर
उनसे बेरंग लौट आती है
मुझ तक और मुझे निरुत्तर
देख रूह चल पड़ती है
अकेली विरक्ति की राह पर
बोलो कैसे रोकू उसे मैं
उस राह पर जाने से ?
को देख मेरी रूह भी
पुकारने लगती है तुम्हे
सुनो प्रिये कंहा हो तुम
आओ पास मेरे देखो
चाँद कैसे बरसा रहा है
अमृत अपनी धरा पर
सुन रही हो मुझे तुम
बोलो सुनो ना बोलो
कुछ तो बोलो कंहा हो
सुन पा रही हो मुझे
उसकी आवाज़ की
अधीरता को पहचान
मैं भी देने लगता हु
साथ उसके आवाज़ तुम्हे
पर तुमने शायद खड़ी
कर रखी है ऊँची ऊँची
दूरियों की दीवारें हम दोनों
के बीच तभी तो हमारी
दी हुई आवाज़ें टकराकर
उनसे बेरंग लौट आती है
मुझ तक और मुझे निरुत्तर
देख रूह चल पड़ती है
अकेली विरक्ति की राह पर
बोलो कैसे रोकू उसे मैं
उस राह पर जाने से ?
Monday, 5 March 2018
मेरे चित्त की अशुद्धियों
तुम जब जब होती हो मेरे साथ
मेरे चित्त की अशुद्धियों का छय होने लगता है
और जब दूर होती हो तुम तब त्वरित गति से फैले
प्रकाश को अँधेरा अपना आवरण उढ़ा देता है और
चारों और छा जाता है घुप्प अँधेरा इस मनः
स्थिति में दुख ही दुःख पीडा ही पीड़ा छा जाती है
मेरी काया की चारो ओर ऐसे में जो बसंत द्वार पर
खड़ा दस्तक देता वो भी कहा सुनाई देती है मुझे
उसके फलस्वरूप लौट जाता है बसंत बैरंग मेरे
द्वार से और दो गतिओं पर घूमने वाली धरा
घूर्णन गति को त्याग परिक्रमण गति पर अटक
जाती है जिसमे नित्य की जगह वर्ष लगते है उसे
अपना ऋतू चक्र बदलने में तुम जब जब होती हो
मेरे साथ मेरे चित्त की अशुद्धियों का छय होने लगता है
घूर्णन गति -दैनिक गति
परिक्रमण गति -वार्षिक गति
मेरे चित्त की अशुद्धियों का छय होने लगता है
और जब दूर होती हो तुम तब त्वरित गति से फैले
प्रकाश को अँधेरा अपना आवरण उढ़ा देता है और
चारों और छा जाता है घुप्प अँधेरा इस मनः
स्थिति में दुख ही दुःख पीडा ही पीड़ा छा जाती है
मेरी काया की चारो ओर ऐसे में जो बसंत द्वार पर
खड़ा दस्तक देता वो भी कहा सुनाई देती है मुझे
उसके फलस्वरूप लौट जाता है बसंत बैरंग मेरे
द्वार से और दो गतिओं पर घूमने वाली धरा
घूर्णन गति को त्याग परिक्रमण गति पर अटक
जाती है जिसमे नित्य की जगह वर्ष लगते है उसे
अपना ऋतू चक्र बदलने में तुम जब जब होती हो
मेरे साथ मेरे चित्त की अशुद्धियों का छय होने लगता है
घूर्णन गति -दैनिक गति
परिक्रमण गति -वार्षिक गति
Sunday, 4 March 2018
मधुमास की संपूर्ण एकाकी रात
मधुमास की संपूर्ण एकाकी रात में
तारों की आँखों में जो झिलमिलाहट देखा करता था
मैं अकेला तो सोचा करता था काश मुझे भी
साथ मिले ऐसी ही टिमटिमाती दो आँखों वाली का
और फिर एक दिन अचानक मेरे धैर्य की दीवार ने
लाँघ कर तुम्हारी देहरी को छू लिया था तुम्हे
उस दिन वही तारों वाली टिमटिमाहट तो देखी थी
मैंने तुम्हारी आँखों में और उसी पल दे दिया था
अपना दिल तुम्हारी झिलमिलाहट भरी आँखों को
और देखने लगा था एक ख्वाब की एक दिन
मधुमास की संपूर्ण एकाकी रात में इन तुम्हारी
आँखों को दिखा कर बोलूंगा उन सितारों को की देखो
तुम जो चिढ़ाते थे मुझे अपनी आँखों की झिलमिलाहट
दिखा दिखा कर आज देखो मैंने भी पा लिया है
साथ तुमसे ज्यादा झिलमिलाहट भरी दो आँखों वाली का
लेकिन सुनो वो ख्वाब मेरा ज़िन्दगी के चालीस बसंत देखकर भी
अब तक कुंवारा है याद रखना कंही मेरे जीवन के सभी बसंत बीत ना जाये
तारों की आँखों में जो झिलमिलाहट देखा करता था
मैं अकेला तो सोचा करता था काश मुझे भी
साथ मिले ऐसी ही टिमटिमाती दो आँखों वाली का
और फिर एक दिन अचानक मेरे धैर्य की दीवार ने
लाँघ कर तुम्हारी देहरी को छू लिया था तुम्हे
उस दिन वही तारों वाली टिमटिमाहट तो देखी थी
मैंने तुम्हारी आँखों में और उसी पल दे दिया था
अपना दिल तुम्हारी झिलमिलाहट भरी आँखों को
और देखने लगा था एक ख्वाब की एक दिन
मधुमास की संपूर्ण एकाकी रात में इन तुम्हारी
आँखों को दिखा कर बोलूंगा उन सितारों को की देखो
तुम जो चिढ़ाते थे मुझे अपनी आँखों की झिलमिलाहट
दिखा दिखा कर आज देखो मैंने भी पा लिया है
साथ तुमसे ज्यादा झिलमिलाहट भरी दो आँखों वाली का
लेकिन सुनो वो ख्वाब मेरा ज़िन्दगी के चालीस बसंत देखकर भी
अब तक कुंवारा है याद रखना कंही मेरे जीवन के सभी बसंत बीत ना जाये
Saturday, 3 March 2018
चित्ताकर्षक दिनकर सा मेरा प्रेम
रंगो के इस फागोत्सव की हार्दिक बधाई
प्रभातकाल के चित्ताकर्षक दिनकर की तरह है मेरा प्रेम
जो आकांक्षा के अभीष्ट का रक्तवर्ण
लिये निकलता है प्रतिदिन
तुम्हारे अस्तित्व के आसमान पर
अपनी धरा को हरा करने की
अभिलाषा लिए हरित और गाढ़ा है
मेरे उमंगो का फागुन
तभी तो बहुत विचार कर नहीं
लगने दिया कोई और रंग तुमपर
इस दुनिया का क्योकि कि जो रंग
उतर जाए धोने से वह रंग भी भला
कोई रंग होता है?
मैं तो रंगूँगा तुम्हें अपने प्रेम के
सुर्ख रक्तवर्ण से जो कभी छूटेगा नहीं
आओगी तुम मेरे घर इसी सुर्ख रक्तवर्ण
के रंग में लिपट कर और जायेंगे भी दोनों
साथ इसी सुर्ख रक्तवर्ण के जोड़े में
ये रंग जो जन्मों तक अक्षुण्ण रहेगा
रंगो के अनगिनत समन्दर समाए होंगे
मेरी उस छुअन में जो तुम अपने कपोलों
पर हर दिन महसूस करोगी तब सैंकड़ो
इंद्रधनुष सिमट आऐंगे तुम्हारी
कमनीय काया पर और
मैं बजाऊँगा उस दिन चंग
तुम गाना अपने प्रेम का अमर फाग
लोग पूछे तो गर्व से कहना उस दिन
तुम प्रेम का रंग आज डाला है मेरे
"राम" ने मुझ पर
Friday, 2 March 2018
करे दहन आज अपने अपने अहम् का
आओ हम करे दहन आज अपने अपने अहम् का
जैसे प्रह्लाद भक्त ने किया था होलिका का
उसी अग्नि कुंड में जिसमे उसने अपने आशीर्वाद
का चादर ओढ़ कर सोचा था प्रह्लाद का दहन करने का
भूलकर उसकी सच्ची भक्ति जो की थी उसने अपने हिरण्यकशयप की
आओ हम पाए संकेत इस उठते इस अग्नि कुंड के धुंवे से
अपने अपने प्रदेश के भविस्य की तस्वीरें
गर देखो दहन के धुंवे को सीधा आकाश में जाता हुआ
तो समझ लेना होने वाला है सत्ता परिवर्तन
गर देखो दहन के धुंवे को दक्षिण दिशा की ओर जाता हुआ
तो समझना आने वाली है कोई विपदा अपने प्रदेश में
गर देखो दहन के धुंवे को पूर्व दिशा की ओर जाता हुआ
तो समझना होने वाली है अपने प्रदेश में सुख संपन्नता की बरसात
गर देखो दहन के धुंवे को उत्तर दिशा की ओर जाता हुआ
तो समझना सच के रास्ते पर यु ही चलकर पा सकते है हम सब
अकूत धन धान्य और स्वस्थ स्वास्थ बस करना
विस्वास वैसा ही जैसा किया था भक्त प्रह्लाद ने अपने हिरण्यकशयप पर
आओ हम करे दहन आज अपने अपने अहम् का
जैसे प्रह्लाद भक्त ने किया था होलिका का
जैसे प्रह्लाद भक्त ने किया था होलिका का
उसी अग्नि कुंड में जिसमे उसने अपने आशीर्वाद
का चादर ओढ़ कर सोचा था प्रह्लाद का दहन करने का
भूलकर उसकी सच्ची भक्ति जो की थी उसने अपने हिरण्यकशयप की
आओ हम पाए संकेत इस उठते इस अग्नि कुंड के धुंवे से
अपने अपने प्रदेश के भविस्य की तस्वीरें
गर देखो दहन के धुंवे को सीधा आकाश में जाता हुआ
तो समझ लेना होने वाला है सत्ता परिवर्तन
गर देखो दहन के धुंवे को दक्षिण दिशा की ओर जाता हुआ
तो समझना आने वाली है कोई विपदा अपने प्रदेश में
गर देखो दहन के धुंवे को पूर्व दिशा की ओर जाता हुआ
तो समझना होने वाली है अपने प्रदेश में सुख संपन्नता की बरसात
गर देखो दहन के धुंवे को उत्तर दिशा की ओर जाता हुआ
तो समझना सच के रास्ते पर यु ही चलकर पा सकते है हम सब
अकूत धन धान्य और स्वस्थ स्वास्थ बस करना
विस्वास वैसा ही जैसा किया था भक्त प्रह्लाद ने अपने हिरण्यकशयप पर
आओ हम करे दहन आज अपने अपने अहम् का
जैसे प्रह्लाद भक्त ने किया था होलिका का
Thursday, 1 March 2018
स्मृतियों की झालरों के साथ बातें करता हु
चांद की चांदनी के साथ वाली ठंडी रात में
अकेले बैठ तुम्हारी रेशम सी स्मृतियों की
झालरों के साथ बातें करता हु अक्सर मैं
वो कुछ बोलती तो नहीं पर हां सारे उलहाने
चुपचाप सुनती है मेरे और तो और तुम्हारी तरह
उल्टा जवाब भी नहीं देती हम्म हम्म
तुम्हारी ही तरह मेरे दिल में चुभती तो है
उसकी भी ख़ामोशी लेकिन वो पास होती है
तो सारे दर्द सहन कर लेता हु मैं भी चुपचाप
मेरा प्रेम उसके मन का सितार बनकर
कुछ इस तरह झनझनाता है जैसे
पिघलती चांदनी को देखकर चाँद मर मिटता है
अपनी चांदनी पर वैसे ही पूरी की पूरी रात
मैं भी अपनी लुटा देता हु तुम्हारी रेशम सी
स्मृतिओं की झालरों के और पता भी नहीं चलता
कब सूरज चढ़ आता है हम दोनों के सर
चांद की चांदनी के साथ वाली ठंडी रात में
अकेले बैठ तुम्हारी रेशम सी स्मृतियों की
झालरों के साथ बातें करता हु अक्सर मैं
अकेले बैठ तुम्हारी रेशम सी स्मृतियों की
झालरों के साथ बातें करता हु अक्सर मैं
वो कुछ बोलती तो नहीं पर हां सारे उलहाने
चुपचाप सुनती है मेरे और तो और तुम्हारी तरह
उल्टा जवाब भी नहीं देती हम्म हम्म
तुम्हारी ही तरह मेरे दिल में चुभती तो है
उसकी भी ख़ामोशी लेकिन वो पास होती है
तो सारे दर्द सहन कर लेता हु मैं भी चुपचाप
मेरा प्रेम उसके मन का सितार बनकर
कुछ इस तरह झनझनाता है जैसे
पिघलती चांदनी को देखकर चाँद मर मिटता है
अपनी चांदनी पर वैसे ही पूरी की पूरी रात
मैं भी अपनी लुटा देता हु तुम्हारी रेशम सी
स्मृतिओं की झालरों के और पता भी नहीं चलता
कब सूरज चढ़ आता है हम दोनों के सर
चांद की चांदनी के साथ वाली ठंडी रात में
अकेले बैठ तुम्हारी रेशम सी स्मृतियों की
झालरों के साथ बातें करता हु अक्सर मैं
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प्रेम !!
ये सच है कि प्रेम पहले ह्रदय को छूता है मगर ये भी उतना ही सच है कि प्रगाढ़ वो देह को पाकर होता है !
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