Tuesday, 24 July 2018

गवाह बनना चाहता हु



गवाह बनना चाहता हु  

मैं चाहता हु बनना गवाह 
हमारे उन्मुक्त देह-संगम का 
मैं चाहता हु बनना गवाह 
उस परिवर्तन का जिसमे 
परिवर्तित होते देख सकू 
एक हिरणी को सिंघनी होते  
मैं चाहता हु बनना गवाह
प्रथम छुवन के स्पंदन का 
जो अभिव्यक्त कर सके 
तुम्हारी इंतज़ार करती 
धड़कनो की गति को  
मैं चाहता हु बनना गवाह
तुम्हारी तपती देह की से 
उठती उस तपन का जो 
पिघला दे लौह स्वरुप मेरे 
मैं को अपनी उस तपन से  
मैं चाहता हु बनना गवाह 
तुम्हारे होठों को थिरक थिरक 
कर यु बार बार लरजने को 
मैं चाहता हु बनना गवाह
तुम्हारी उष्ण देह से निकलती  
करहो को अपने कानो से सुनकर 
अपनी आँखों से देख सकू 
ठन्डे होते उसी तुम्हारे उष्ण 
देह को जिससे निकले तृप्ति 
का वो कम्पन जिसे पाकर 
तुम हो जाओ पूर्ण  !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !