चीड़ों की चहचहाहट
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सुबह के कोहरे में
भले ही छुपा लो तुम
मेरी पहचान सबसे
और छुपा लो मेरी
उभरी आकृति अपनी
आँखों में से भी ना
मिलाकर अपने घर
वालों से भी अपनी
दर्पण से आँखें लेकिन
ये जो बिलकुल महीन सी
खून से खींची लकीर
मौजूद है तुम्हारी हथेली
के बिलकुल बायीं और
तुम्हारी मुठी से बाहर
निकली हुई उस पर लिखा
मेरा नाम तुम चाह कर भी
नहीं छुपा सकती अब किसी
से भी लेकिन सुनो गर तुम
चाहो जाहिर करना मेरी पहचान
अपने घर वालों के सामने तो
तो ढूंढने मत निकलना कंही
तुम तो उन्हें दिखा देना सुबह
उन चीड़ों की चहचहाट जो अपनी
अपनी चिड़ियों के आगे पीछे उड़ते फिरते
अपनी चहचहाहट से खुशनुमा कर
देते है अक्सर खुले घरों के बरामदे को भी !
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