Saturday, 21 July 2018

आज भी वैसा ही हु मैं तुम्हारे लिए

आज भी वैसा ही हु मैं तुम्हारे लिए  
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हा मैंने सुना था खुदा के सिवा 
एक सा कोई नहीं रहता यंहा;
एक से नहीं रहते हालात भी यंहा 
एक से नहीं रहते ताल्लुकात भी यंहा  
एक से नहीं रहते सारे सवालात भी यंहा 
एक से नहीं रहते सारे जवाबात भी यंहा 
एक से नहीं रहते सारे तजुर्बात भी यंहा 
एक से नहीं रहते सारे दिन-रात भी यंहा 
हा ठीक ही सुना था मैंने एक खुदा के सिवा 
एक सा कोई नहीं रहता यंहा;
तो फिर मैं क्यों हु आज भी  
ठीक वैसा ही जैसा था उस पहले दिन  
जिस दिन मिला था तुमसे मैं पहली बार  
तो फिर तुम ही बताओ ना ऐसा क्यों है 
जब आज भी दो घडी तुम नहीं दिखती
मुझे तो मन मेरा क्यों बैचैन हो उठता है 
जब एक सा कुछ नहीं रहता यंहा तो फिर 
तुम्हारे लिए क्यों हु मैं
उस पहले दिन सा आज भी 
जिस पहले दिन मिला था मैं तुमसे  ...!  

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !