साँझ की लाली
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जिस दिन चाहो तुम आना
सदा के लिए मेरे पास बस
मुझे एक आवाज़ दे देना
मैं लौट आऊंगा उन सपनो
की दुनिया से निकलकर
आज के वर्तमान में और
तुम्हारे साथ-साथ साँझ
की लाली भी उतर आएगी
मेरे आंगन में जिसे देखकर
वक़्त भी कुछ पलों के लिए
ठिठक जायेगा वंही और ठीक
उसी पल तुम्हे साँझ की सिन्दूरी
आभा छूने उतर रही होगी चुपचाप
तब मैं तुम्हारे सुर्ख होंठो सेथोड़ी
सी लाली चुराकर अपने घर के
आंगन में बिखेर दूंगा जो तुम्हारे
पांव को अलता से रंग में रंग देंगे
और उस घर के चप्पे-चप्पे पर
तुम्हारे पैरो के शुभ निशान अंकित
हो जायेंगे और ये सब होते देख
तुम्हारे होंठो पर वही चीर परिचित
हंसी बिखर जाएगी और उस हंसी को
सुनकर मैं भी लौट आऊंगा तुम्हारे
दिखाए उन सपनो में से जिसमे
इसी कल्पना को संजोकर रखा था मैंने
आज तक की एक दिन तुम आओगी
मेरे पास बची अपनी ज़िन्दगी जीने के लिए !
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