Monday, 9 July 2018

सच्ची लग्न और निष्ठां



सच्ची लग्न और निष्ठां
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जैसे मेरा दिल तुम्हारे लिए 
धड़कता है तुम्हारा दिल भी 
तो धड़कता होगा मेरे लिए 
पर ये तो बताओ की क्या  
कोई जुबान है तुम्हारे मुख 
में जिससे करती हो तुम भी 
मेरे नाम का उच्चारण ;
कहते है ढूंढो सच्चे लग्न 
और निष्ठा से तो भगवान 
भी मिल जाते है इंसान को 
शर्त एक होती है की भावो 
में धीरज के साथ-साथ 
होना चाहिए सच्चापन भी  
यही सोच कर तो तुम्हे बुलाने
अपने पास बनाये रखा धीरज 
और अपने सच्चे लग्न और 
निष्ठा को रखा कायम पर 
पांच साल बीत जाने के बाद 
भी तुम वंही हो जहा थी फिर 
क्या कमी है मेरे भावो में जो 
तुम से भी ज्यादा कठोर हो 
गयी हो मेरे लिए आज !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !