Saturday, 14 July 2018

बाँहों के दरमियाँ

बाँहों के दरमियाँ
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उसने कहा क्यों इतनी ज़िद्द करते हो तुम 
मुझे अपने पास बुलाने की क्या प्रेम की 
तपीश दूर रहकर नहीं पनपती ?अब तुम्हे 
कैसे समझाऊ की एहसासो को सहेज कर 
गुलाबो में रखा तो जा सकता है लेकिन वो  
एहसास तब तक ही महकेंगे उन गुलाबो में
जब तक उसमे ज़िंदा रहेगी उसकी खुसबू  
फिर जब वो सुख जायेंगे तो एहसास भी 
तड़प कर दम तोड़ देंगे उन्ही मुरझाते 
फूलो में जिन्हे आखिर एक दिन उठा कर 
फेंक दिया जायेगा कचरे के एक डब्बे में 
और जब एक दिन तुम आकर मांगोगी 
उन गुलाबो में लपेट कर रखे मेरे एहसासो 
को तो कुछ कहने की बजाय मेरे ये असमय 
बड़बड़ाते रहने वाले होंठ बेबस हो सुख कर 
तुम्हे चिल्ला-चिल्ला कर पूछेंगे की आज 
क्यों चाहती हो पास आकर महसूसना मेरे उन  
दम तोड़ चुके एहसासो को और अब जब आ ही   
चुकी हो तुम तो ये बताओ की तुमने जो कहा था 
प्रेम की तपीश दूर रहकर भी पनपती है तो फिर 
बाँहों के दरमियाँ आखिर पनपता क्या है? 

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !