बिलकुल पागल हो तुम
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वो चाँद की रात और
तुम्हारी और मेरी बात
तुम कुछ भी कह रही थी
जैसी मंद-मंद ठंडी हवा
बह रही थी और मैं
वो सब लिख रहा था
जो तुम कही जा रही थी
सच कहो तो कोशिश कर रहा था
तुमको अपने शब्दों में पिरोने की
जिस बात पर तुम बीच-बीच में
नाराज़ भी हो रही थी की क्यों
बांध रहा हु तुम्हे अपने शब्दों में
और मैं पलट कर जवाब देता तुम्हे
की ये कोशिश है मेरी तुम्हे
अपने पास संजो कर रखने की
और इस बात पर तुम हंसकर
कह देती हो की बिलकुल
पागल हो तुम "राम"
और मैं भी बिना समय
गंवाए सहर्ष स्वीकार कर लेता हु अपना ये नाम "पागल"क्यों की
ये वो ही पागल था जिसके पागलपन ने मुझे कभी तुमसे एक
पल के लिए भी आज तक अलग नहीं होने दिया है क्यों सही कहा ना मैंने !!
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