Wednesday 11 July 2018

प्रेम क्षुधा



प्रेम क्षुधा
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तुम्हारे प्रेम क्षुधा से 
व्याकुल मेरा हृदय 
तृप्ति की चाह सिर्फ 
एक तुमसे रखता है ; 
मेरे मन में जबसे तुम 
हुई हो शामिल ये दिल 
जिद्द पर अड़ा है बनने 
को तुम्हारे हवन कुंड 
की समिधा जो हर 
एक आहुति के साथ 
धधक कर पूर्ण होना
चाहता है सुनते ही स्वाहा 
ताकि तुझमे मिलकर   
प्रेम की समिधा सा 
वो हो जाए पूर्ण 
और मेरे मन की  
व्याकुल क्षुधा को 
यज्ञ की पूर्णाहुति के 
साथ चीर शांति मिले  ! 

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !