Sunday, 14 October 2018

'अहं ब्रह्मास्मि'

'अहं ब्रह्मास्मि'
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तुम्हारे प्रेम के शब्दों को 
मैं मेरी देह में रमा लेती हु ;
तदोपरांत मैं आत्मनिर्भर हो 
अपने तमाम झूठे शब्दों को 
तुम्हारे प्रेम के उजियारे शब्दों 
से रंग लेती हु तब वो मेरी राह
में दीपक से जलकर मेरा मार्ग 
प्रशस्त करते है और मैं साहसी 
होकर के हमारे प्रेम के विरूद्ध 
उठती सभी अँगुलियों को ठेंगा 
दिखा कर तुम्हारे सिद्ध शब्दों में
 कहती हु उन सब से 'अहं ब्रह्मास्मि' 
और एक कोमल अनुभूति को महसूस 
कर खुद को यौवन की रोशनी में नहायी 
अनुभव करती हुई हमेशा के लिए तुम्हारे 
पास आने को निकल पड़ती हु !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !