Thursday, 25 October 2018

चांदनी की शीतल छांव

चांदनी की शीतल छांव
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सुनो प्रिये आओ पास बैठों
अमृत बरसाते चाँद को 
देख मेरी रूह भी पुकारने  
लगी है आज तुम्हे...

सुनो प्रिये आओ पास बैठों 
मेरे हम और तुम चांद पर 
आज कुछ बात करें ...

सुनो प्रिये आओ पास बैठों 
मेरे और दूध धुली शरद 
चांदनी की शीतल छांव तले 
हम और तुम कुछ देर साथ
-साथ चलकर नया सृजन करे...

सुनो प्रिये आओ पास बैठों 
मेरे और देखो चाँद कैसे 
बरसा रहा है अमृत अपनी 
धरा पर आज...

सुनो प्रिये आओ पास बैठों 
मेरे और कुमुद को ताकते
अनझिप क्षण में तुम भी 
कुछ पल मेरे जीवन के 
आज जी लो जरा...

सुनो प्रिये आओ पास बैठों 
मेरे और अनवरत बरसती 
शरद चांदनी में मेरा अन्त:
स्पन्दन चखकर पि लो जरा

सुनो प्रिये आओ पास बैठों 
मेरे और आज मेरे इस प्रेम 
के एक-एक छन -छन जी 
भर कर जी लो जरा...

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !