कड़वी कल्पना की निशा
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जिस निशा का प्याला
पूरी की पूरी रात कलानिधि
के निचे पड़े रहने के बाद भी
हयात के मधु से नहीं भर पाता
वो निशा ही समझ सकती है
मधु का सही-सही अंशदान
क्योंकि उस निशा के प्याले
से उतर चुकी होती है...
कलानिधि की कलई भी तब
उस प्याले में पड़ी उस निशा
की कल्पना कितनी कड़वी हो
जाती है और उस कड़वाहट का
स्वाद भी वो ही समझ सकता है
जो उस कड़वी हुई निशा को एक
बार फिर से हयात के मधु में तर
बतर करने का माद्दा रखता हो
जबकि उसे खुद नहीं पता होता
की उसे कड़वी हुई निशा की
कल्पना के प्याले की कड़वाहट
कब तक पीते रहना पड़ेगा...
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