Tuesday 9 October 2018

बस सोचता रहा तुम्हे

बस सोचता रहा तुम्हे 
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तुम्हारे लिखे तमाम 
कागज़ों को लेकर अपने
हांथो में सोचता रहा मैं
बस दिन रात एक तुम्हे
फिर एक दिन खोला तो
पढ़ा उस पर लिखा था 
प्यार  
उसी प्यार के समंदर में
हम और तुम आये बहते 
हुए इतनी दूर दर्द-ए-दंश 
से हर मोड़ पर बचाया मैंने
तुम्हे अब मेरे पांव में छाले
है और और हाथ है बिलकुल 
पूरी तरह जख्मी उनको भी
प्यार 
के वास्ते सहेज कर रखा है 
मैंने की तुम आकर इन पर
मलहम लगाओगी बोलो 
आओगी ना तुम मलहम 
लगाने इन जख्मो पर !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !