तेरा भूरा-भूरा सा इश्क़
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वो भूरी-भूरी सी लहरें
खिंच ले जाती है मुझे
उन भूरी-भूरी आँखों की
भूरी-भूरी सी गहराईयों
में मुझे अब क्यों कोई
और रंग नहीं भाता मुझे
एक तेरे इस भूरे रंग के
सिवा वो ही भूरी-भूरी सी
लहरें एक दिन कब मुझे
अपने प्रेम के भूरे-भूरे से
ही समंदर में खिंच ले गयी
पता ही ना चला वो भी तब
जब मेरे पास नहीं था प्रेम
का कोई भी अनुभव और
ना ही थी पास कोई नाव
हां बस इतना ही कहा था
लो थाम लो मेरा हाथ तुम
मैं तो सर से पांव तक बस
चाह ही चाह थी अब तुम्हारी
और उसी चाह में अब डूबी हु
और अब उसी समंदर के अंदर
पानी के निचे साँस भी ले रही हु मैं
उन भूरी-भूरी सी लहरों में डूब रही हु मैं !
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